इस बार ठंड ठीक से शुरू भी नहीं हुई थी कि राजधानी ने काला कंबल ओढ़ लिया।वह पहले कूड़े के पहाड़ों के लिए जानी जाती थी,अब उस पर रोज़ाना आसमान से काले पहाड़ टूट रहे हैं।जहाँ कूड़े के पहाड़ से कुछ लोग ही लाभान्वित हो पा रहे थे,वहीं आसमानी-पहाड़ सभी को समान अवसर दे रहे हैं।यहाँ तक कि राजधानी से निकटता रखने वाले मनुष्य भी स्वर्गिक-सुख का उतना ही आनंद उठा रहे हैं।यहाँ अब कोई ख़ास नहीं रहा, सब ‘आम’ हो गए हैं।समाज में जो समानता सरकार नहीं ला पाई,उसे इस नश्वर धुंध ने साकार कर दिया है।
राजधानी की हवा में ऑक्सीजन के अलावा सब कुछ है।जानकार कहते हैं इसकी हवा में ही ज़हर है।मौक़े का फ़ायदा उठाकर कुछ अफ़वाहें भी इसमें शामिल हो गईं हैं।बड़ी बात यह कि वे सच भी हो रही हैं।हालाँकि ‘धुंध में साँस लेना दूभर है’ जैसी बेसिर-पैर की अफवाहें भी फैलाई जा रही हैं जबकि गद्दियों में बैठे जनसेवक सरे-आम सुकून की साँस लेते देखे जा सकते हैं।कई नेता नए ठिकानों में ‘एडजस्ट’ हो रहे हैं।जिस दल में उनका दम घुटने लगता है,उसे झट से छोड़ देते हैं।यह सुभीता भी उन्हें धुंध दे रही है।उनके चेहरों में जो कालिख़ पुती है वह महज़ धुंध की वजह से बताई जा रही है।इसका अनैतिकता,भ्रष्टाचार या कदाचार से कोई संबंध नहीं है।
धुंध सबके लिए बड़े काम की चीज़ है।उसने सबको काम पर लगा दिया है।बच्चे स्कूलों से मुक्त होकर मोबाइल से खेल रहे हैं।उनकी माताएँ ऑफ़िस के बजाय घर पर ही रील बना रही हैं।जो लोग कार्यालय में काम के समय सोते थे,वे अब ऑनलाइन जम्हाई ले रहे हैं।बाज़ार को भी धुंध ने क़ायदे से संभाला है।मास्क और खाँसी के सिरप ऑउट ऑफ़ स्टॉक हो गए।टीवी की प्राइम-टाइम बहस को नई ऊँचाई मिली है ।एंकर वातानुकूलित कक्षों में मास्कित होकर प्रदूषण पर अंतरदेशीय मिसाइल छोड़ रहे हैं।धुंध के आते ही सोई हुई आलोचनाएँ सक्रिय हो उठी हैं ।आजकल मनुष्य की आलोचना करना सबसे ख़तरनाक काम है।और यदि वह नेता,लेखक या अफ़सर हुआ तो आलोचना जानलेवा भी हो सकती है।इसलिए धुंध पर अंधाधुंध फायरिंग हो रही है।इसमें कोई ख़तरा नहीं है।
सबसे चिंताजनक बात यह है कि दीवाली और पराली को इस बार ख़ास वेटेज नहीं मिला है।इससे साबित होता है कि धुंध अब पूरी तरह आत्मनिर्भर हो चुकी है।घर से लेकर बाहर तक वही छाई हुई है।ऐसे ही एक अँधियारे दिन राजधानी में चिंतन-बैठक का आयोजन हुआ।पूरे देश में प्रदूषण फैलाने वाले सभी क़ाबिल पत्रकार वहाँ मौजूद थे।वे पर्यावरण जी के स्वास्थ्य के प्रति बेहद चिंतित दिखे।हल्ला तब मचा जब धुंध अपने प्रेमी प्रदूषण के साथ वहाँ पधारी।वह इस बात से बेहद ख़फ़ा लग रही थी कि किसी ने उसका वास्तविक पक्ष नहीं समझा।पर्यावरण जी कोने में अधमरे-से बैठे थे।पत्रकारों की चिंता के बाद से उनकी हालत और पतली हो गई थी।उनको ऐसी अवस्था में देखकर प्रदूषण और धुंध ने भी चिंता व्यक्त की।दोनों ने पर्यावरण जी को परामर्श दिया,‘आप वरिष्ठ हो गए हैं।अपना ध्यान रखिए।अब आप सिर्फ़ गोष्ठियों और विमर्श में बचे हैं।हम जैसे युवाओं की वज़ह से ही आप प्रासंगिक हैं ,इस बात को न हम भूलने देंगे और न ये गोष्ठियाँ।’
पर्यावरण जी पहले से ही मरणासन्न थे,यह सुनकर और सुन्न हो गए।तभी गोष्ठी ने पर्यावरण जी को बचाने के लिए एक अभियान शुरू करने की घोषणा कर दी।उन्हें तुरंत होश आ गया।धुंध और प्रदूषण को करारा जवाब दिया ,‘तुम अभी बच्चे हो।मौसम की तरह आए हो,चले भी जाओगे।मैं सदाबहार हूँ और ग्लोबल भी।मुझे बचाने को पूरी दुनिया जुटी हुई है।कइयों की रोज़ी-रोटी मेरे सहारे चल रही है।वे न मुझे मरने देंगे,न मैं उन्हें।इसलिए तुम अपनी चिंता करो।’
तभी वहाँ अचानक बारिश होने लगी।गोष्ठी में बैठे लोगों में हड़कंप मच गया।लोग डर गए कि बिन मौसम और बिन बादल बरसात कैसे होने लगी ! कुछ खोजी पत्रकारों ने ब्रेकिंग न्यूज़ दी कि पर्यावरण जी की सेहत के लिए उन्हें नक़ली बारिश की डोज़ दी जा रही है।यह जानकर सबने धुंध-भरी साँस ली।इससे धुंध और कमजोर हुई।अपने ख़िलाफ़ माहौल बनते देखकर धुंध अपने प्रेमी प्रदूषण के साथ भागने लगी तभी पर्यावरण जी ने ललकारा, ‘रुको ज़रा।अभी मेरे ‘सम-विषम’ आते होंगे ! उनसे तो निपट लो !’
तभी एक युवा पत्रकार ने घोषणा की, ‘चुनाव परिणाम आ गए हैं।धुंध अब साफ़ हो चुकी है।’
संतोष त्रिवेदी