रविवार, 6 फ़रवरी 2022

सावधान,वे ग़रीबों के बारे में सोच रहे हैं !

देश के कई हिस्सों से बेमौसम बरसात की ख़बर है।जहाँ चुनाव होने वाले हैं,वहाँ दोहरी बरसात हो रही है।बादलों का रूप धरकर सब नेता अपने चुनावी-क्षेत्रों में बरस रहे हैं।आम आदमी बरसाती-ओलों से तो फिर भी बच सकता है पर वह चुनावी-गोलों की ज़द में आए बिना नहीं रह सकता।नेताजी महल में बैठकर मँहगाई से संतप्त जनता को कई बार सांत्वना दे चुके हैं पर मुई वोट की ख़ातिर उन्होंने ग़रीबों के बारे मेंसीरियसलीसोचना शुरू कर दिया है।इस बार नेताजी वाक़ईसीरियसहैं।वे पहले भी सोचते रहे हैं पर इस वक्त उसकी तीव्रता और फ़्रीक्वेंसी थोड़ा बढ़ गई है।थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद इस सोच को वेरिन्यूकरते रहते हैं।


देश के ग़रीबों के लिए वह और उनकी सरकार हमेशा से समर्पित रही है।ग़रीब हैं तो योजनाएँ हैं।योजनाएँ हैं तो सोच है।सोच है तो वह भी हैं।इस बीच अगर चुनाव गए हैं तो क्या हुआ ? इस सोच को वह रोक तो नहीं सकते ! ऐसा नहीं है कि केवल वही ऐसा सोचते हैं।ग़रीबों पर हर नेता का अधिकार है।उसका वोट सबके लिए खुला है।जो चाहे,लूट ले।ग़रीबों के कल्याण की सोच सर्वव्यापी और सार्वकालिक है।यह किसी चुनाव-फुनाव के आने से नहीं रुक सकती।बक़ौल नेताजी,सरकार ने इस बार भी तय किया है कि वह ग़रीबों का कल्याण करके रहेगी।इससे ग़रीब सोच में पड़ गए हैं।उन्हें आशंका है ,कहीं ग़रीबी का उनका यह तमग़ा भी उनसे छिन जाए ! पर यह महज़ अफ़वाह है।सरकार ने भरोसा दिया है कि उनका राशन-कार्ड कभी बंद नहीं होगा।वे काग़ज़ों में भी गरीब बने रहेंगे।


इस बीच बजट चुका है।सरकार ने इसे दूरदर्शी और विपक्ष ने मंहगाई बढ़ाने वाला बताया है।मुझे जब ख़ुद इसे समझने में दिक़्क़त हुई,तो अख़बार और टीवी ने बताया कि यह दूरगामी बजट है।इसका असल फ़ायदा पचीस साल बाद दिखेगा।इस बार मैं सरकार से सहमत और विपक्ष से असहमत हूँ।सरकार की यह बात सोलह आने सच है कि यह दूरदर्शी बजट है।उसे निकट का दिखता भी नहीं।ऐसा होता तो कम से कम ये चुनाव ही उसे दिख जाते।रही विपक्ष के मँहगाई बढ़ाने की बात,वह बिलकुल बेबुनियाद है।जूते और चार्जर सस्ते हो गए हैं।चीजें तो और भी खूब सस्ती हुई हैं पर ये दोनों आम आदमी से ज़्यादा ताल्लुक़ रखती हैं।आदमी पैदल है तो जूते घिसेंगे ही।यही सोचकर जूते सस्ते किए गए हैं।चार्जर का सस्ता होना भी बड़ा कदम है।हर आदमी रोटी-रोज़गार छोड़कर दिन भर सोशल-मीडिया में बैठा रहता है।वह हर तरह से चार्ज रहे,सरकार की यही मंशा है।और हाँ,सरकार इन दिनोंकैश-लेसपर खूब ज़ोर दे रही है,ग़रीब आदमी को भी इसका भरपूर समर्थन प्राप्त है।इसलिए उसने अपनी क़मीज़ से जेब तक निकाल फेंकी है।उसको आस है कि डिजिटल-रुपया आते ही उसकी भूख भी डिजिटल हो जाएगी।उसका पेट ऑनलाइन ही भर दिया जाएगा।


फ़िलहाल सरकार की जेब बजट से फ़ुल है।ऐसे में कल्याण का ढोल बख़ूबी बज सकता है।सरकार यही करना चाहती है।वह कहती है कि विपक्ष ग़रीब-विरोधी है पर विपक्ष इसे सरासर ग़लत मानता है।वह ग़रीबों से एकजुटता दिखाने के लिए ख़ुद भी कितना ग़रीब है ! उसकी अंदरूनी चाहत है कि ग़रीब बने रहें।इन्हीं से उसका कल्याण हो सकता है।दरअसल  कल्याण की दरकार उसे ग़रीब से ज़्यादा है।सरकार है कि विपक्ष के मंसूबे पूरे नहीं होने देना चाहती।इसलिए वह लगातारग़रीब-कल्याण-योजनालाने को प्रतिबद्ध है।आख़िर उसे भी तो अपना कल्याण करवाना है।


इधर ग़रीब ख़ुश है।उसके दोनों हाथों में लड्डू है जो शून्य की तरह गोल है।उसके कल्याण के लिए पक्ष और विपक्ष में मारामारी मची है।अभी तो कल्याण का प्रथम चरण है।इस बारे में सोचा ही जा रहा है।जब कल्याण को ग़रीब के गले में आधिकारिक रूप से लटकाया जाएगा,तब उसे असल मुक्ति मिलेगी ! यह सोच-सोचकर ही वह रोमांचित है।सोचने पर केवल सरकार का ही अधिकार नहीं है।कभी-कभी ग़रीब भी सोच लेता है।इससे यह बात साफ़ होती है कि सरकार और ग़रीब की सोच में कितनी समानता है ! दोनों चुनाव के समय ही सोचते हैं।यह सौभाग्य की बात है कि सरकार ग़रीबों के लिए सोच ही रही थी कि चुनाव गए।उनका कल्याण होने से अब कोई नहीं रोक सकता।


ऐसे ही एककल्याण-कार्यक्रममें जाना हुआ।बड़ा दिव्य आयोजन था।कोने-कोने से ग़रीब आए हुए थे।नेताजी बेहद उत्साहित थे।बिना जाति पूछे ही घोषणा-पत्र और संकल्प-पत्र बाँट रहे थे।ग़रीबों का कितना कल्याण हुआ है,यह वे नेताजी द्वारा बाँटे जा रहे पैंफलेट से जान रहे थे।इससे पता चलता है कि देश में अभी भी कितनी अशिक्षा है।अख़बारों और चैनलों के दिन-रात बताने के बाद भी लोग शिक्षित नहीं हो पाए हैं।एक भटका हुआ ग़रीब मुझसे भी टकरा गया।कहने लगा कि नेताजी बड़े उदार हैं।मैं भूखा रहूँ इसलिए खाना खाने की बजाय साथ में केवल फ़ोटो खिंचवाई।ऐसे दयालु अब कहाँ मिलते हैं ! भगवान करे,चुनाव कभी ख़त्म ही हों !


संतोष त्रिवेदी 


4 टिप्‍पणियां:

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (07-02-2022 ) को 'मेरी आवाज़ ही पहचान है गर याद रहे' (चर्चा अंक 4334) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

#रवीन्द्र_सिंह_यादव

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह। गरीब और गरीबी अमर रहे जिन्दाबाद।

Anita ने कहा…

सटीक व्यंग्य

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत सुन्दर लेख

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