देश के अधिकतर हिस्से गर्मी से तप रहे थे पर बड़े साहब का तप इससे भी तेज निकला।उनके हिस्से में बाढ़ आई हुई थी।वे बरामदे में बैठे अख़बार पढ़ रहे थे।बाढ़ इतनी थी कि साहब के मुँह में पानी आ गया।सूखा भी तो बहुत दिनों से था।वे बेचैन हो उठे।जब भी उन्हें बेचैनी महसूस होती है,दौरे शुरू हो जाते हैं।इस बार भी यही हुआ।उन्होंने अपने क्षेत्र का दौरा फ़ाइनल कर दिया।साहब की तरह उनका व्यक्तिगत सचिव भी संवेदनशील था।दोनों से जनता के दुःख देखे नहीं जाते थे पर मन में जनसेवा का ऐसा ज्वार उठता था कि बिना देखे चैन नहीं आता था।सचिव जी तुरंत सक्रिय हो उठे।एक विशेष विमान से अपने और साहब के ‘दुःख-निवारण’ की व्यवस्था की।विमान अत्याधुनिक क़िस्म का था।उसकी खिड़कियाँ ‘दृश्य-फ़्रेंडली’ थीं।देखने वाले को वही दिखता था,जो वह देखना चाहे।कोई भी अवांछित-टाइप का दृश्य सामने नहीं पड़ता था।दौरे के समय इससे बाढ़ का पानी तो साफ़ दिखेगा,पर पानी में क्या-क्या समा गया है,यह नहीं।इसके लिए बाढ़-कमेटी है ना ! वही देख लेगी।उसको भी तो रोज़गार मुहैया कराना है।यह उनकी दूसरी बड़ी चिंता थी।
फ़िलहाल सचिव जी को साहब की चिंता थी और साहब को बाढ़ की।देखते ही देखते विमान हाज़िर हो गया।उसकी खिड़कियाँ ‘दृश्य-फ़्रेंडली’ के साथ-साथ ‘गंध-प्रूफ़’ भी थीं।दुर्गंध का एक भी झोंका साहब को विचलित कर सकता था।इससे बाढ़ से उपजे उनके दुःख में ख़लल पड़ने की आशंका थी।इसलिए ऐसा पुख़्ता इंतज़ाम किया गया था।इसी बात से उनकी संवेदनशीलता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।कहीं वे वाक़ई दुःखी हो गए तो फिर जनता का दुःख कौन बाँटेगा ? और हाँ,राहत भी तो बाँटनी है।यही सोचकर वे सचिव सहित विमान में समा गए।‘मेन-स्ट्रीम मीडिया’ से तीन छँटे हुए पत्रकार वहाँ पहले से जमे हुए थे।पहले भी वे सूखे और सरकार को बख़ूबी ‘कवर’ कर चुके थे।अब बाढ़ ‘कवर’ करने की ज़िम्मेदारी भी उनकी थी।साहब अपने सचिव की इसी तरह की दूरंदेशी के क़ायल थे।आज फिर हुए।
विमान उड़ने लगा।वे दोनों भी भरे मन से उड़े।साहब को रह-रहकर घर की याद आ रही थी,पर जनसेवा के आगे बेबस थे।मन ही मन सोचने लगे कि जब तक वे बाढ़ से हुए नुक़सान का जायज़ा नहीं ले लेते,राहत-परियोजना पर काम नहीं शुरू हो पाएगा।साहब को चिंतित देखकर सचिव जी साथ में बैठे पत्रकारों की ओर ताकने लगे।इनमें एक युवा पत्रकार ज़्यादा उत्साहित लग रहा था।उसे न्यूज़ ‘ब्रेक’ करने की जल्दी थी।विमान अभी बाढ़-क्षेत्र में आया भी नहीं था पर उसका सवाल आ गया।मुस्कुराते हुए उसने साहब से पहला सवाल किया, ‘इस बार की बाढ़ कितनी गंभीर है ? इससे निपटने के लिए आपके पास किस तरह की योजनाएँ हैं ?’
सवाल सुनते ही साहब खुद गंभीर हो गए। बोले-‘देखिए,यह वाली बाढ़ पहले से ज़्यादा तीव्र लग रही है।हमें और अधिक योजनाओं की ज़रूरत होगी।एक बात साफ़ है।सरकार इस काम में कोई कोताही नहीं बरतेगी।दौरा शुरू करने से पहले ही हमने बीस-सदस्यीय ‘बाढ़-राहत कमेटी’ गठित कर दी है।इस बार उसका बजट भी बढ़ा दिया है।कमेटी पूरी तरह संतुष्ट है।बाक़ी देखते हैं कि जान-माल का कितना नुक़सान हुआ है ?’ यह कहकर साहब ने राहत की साँस ली।
इस बीच सचिव जी ने ऐलान किया।हम बाढ़-ग्रस्त क्षेत्र के ऊपर से गुजर रहे हैं।बाक़ी सवाल इलाक़े के अवलोकन के बाद लिए जाएँगे।सबने आसमान से नीचे की ओर झाँका।हर तरफ़ जल ही जल दिख रहा था।खेत और ऊसर में कोई फ़र्क़ नहीं था।फ़सलें रोज़गार की तरह ग़ायब थीं।बीच में कहीं-कहीं लंबे पेड़ विपक्षी दलों की तरह अपनी सत्ता बचाए दिख रहे थे।जन और जानवर का कोई भी निशान नहीं दिखा।सचिव जी ने निष्कर्ष निकालते हुए घोषणा की, ‘लोगों में सहन-शक्ति की अत्यंत कमी है।हो न हो,जन और जानवर आपदा के समय मैदान छोड़कर भाग गए हों ! इससे हमें नुक़सान का हिसाब लगाने में और समय लग सकता है।’ साहब ने सहमति में सिर हिलाते हुए आश्वस्त किया कि जनकार्यों के निष्पादन के लिए समय की कोई कमी नहीं है।कमेटी को इसका भी अधिकार दे दिया गया है कि वह अगली बाढ़ से पहले इसका सही-सही आकलन कर ले।
लगभग आधे घंटे के सघन दौरे के बाद विमान विशेष हवाई पट्टी पर उतर गया।यहाँ गेस्ट-हाउस में भोजन और विश्राम का कार्यक्रम था।वरिष्ठ पत्रकार ,जो एक बड़े चैनल से थे, बड़ी देर से कसमसा रहे थे।भोजन के बीच में एक महत्वपूर्ण सवाल पूछ बैठे, ‘इतने व्यस्त कार्यक्रम के बीच आप कभी थकते नहीं ? हमारे श्रोता जानना चाहेंगे कि आपकी इस सक्रियता का राज क्या है ?’
साहब ने डकार लेते हुए उत्तर दिया, ‘सच बताऊँ,हमें राहत बाँटने से ही राहत मिलती है।यदि आपदाएँ आना बंद हो जाएँ,लोगों का भला करने को हम तरस जाएँ।ईश्वर उनकी भी सुनता है और हमारी भी।जब भी कोई आपदा आती है,पूरी मशीनरी सक्रिय हो उठती है।इसलिए हर आपदा हमें अवसर देती है।आप स्वयं इसके गवाह हैं।तीसरा पत्रकार जो अपनी बारी का इंतज़ार कर रहा था,यह सुनकर उसने पानी का गिलास उठा लिया।
अचानक मौसम की बातें होने लगीं।सबने राहत की साँस ली।
संतोष त्रिवेदी
1 टिप्पणी:
बहुत खूब। जय हो।
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