रविवार, 21 सितंबर 2025

साहित्य का संक्रमण काल और जेन-जी

पिछले दिनों पड़ोसी देश में क्रांति हो गई।यह क्रांति पिछली क्रांतियों से थोड़ा अलग रही।इसका श्रेयजेन- जीको दिया जा रहा है।सोशल मीडिया की नव-संतानों ने रील और वीडियो बना-बनाकर अत्याचारी सरकार को ढहा दिया।जेन- जीने पहले अपने हाथ में ली हुई डिजिटल-मशाल से आग सुलगाई फिर सरकारी संस्थानों को आग के हवाले कर दिया।सरकार ने भी इस आग में पर्याप्त घी डाला और जी का जंजाल बने कई जेन-जियों को मौत की नींद सुला दी।


पड़ोस में इतना कुछ हुआ,इससे हमें क्या ? यह उस देश का अंदरूनी मामला है,वे जानें।हमें तो अपने ही लोकतंत्र की ठीक से सुध नहीं है।फिर भी,कई विचारक और विश्लेषक उस क्रांति को अपने यहाँ घसीटकर लाना चाह रहे हैं।उन्हें सिर्फ़ बदलाव से मतलब है,चाहे जैसे आए।सियासत में कुछ वैसा ही अतरंगी अपने यहाँ घट जाए तोजेन- जीद्वारा किया गया दंगा-फ़साद भी क्रांति का बेहतरीन उदाहरण सिद्ध होगा।पर हाय, तुरंत इसका तोड़ भी गया कि अपने यहाँ लोकतंत्र की बुनियाद वैसी नहीं है।ज़रा ज़्यादा ही मज़बूत है।यहाँ लोग अपने संघर्ष सड़क के बजाय सोशल- मीडिया पर ही निपटा लेते हैं।उनकी क्रांति ड्राइंग रूम से उठती है और बेडरूम आते-आते थक लेती है।इस दौरान दो-चारमीमज़रूर बन जाते हैं।ये रीलबाज़ युवा सड़कों,नदियों और खाइयों में गिर-गिरकर अपनी आहुति दे रहे हैं।सरकार को इन्हें निपटाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ रही।स्वयं निपटे जा रहे हैं।इसलिए लोकतंत्र सुरक्षित है।


वहाँजेन-जीके इस अप्रत्याशित कौतुक से अपने देश की सियासत में ज़्यादा हलचल भले हुई हो,पर साहित्यिक गलियारों में खलबली मच गई।ये नई पीढ़ी जाने कौन-सी बला बनकर खड़ी हो जाए ! बुजुर्गों को चिंता सताने लगी कि वे कौन-सी पीढ़ी के हैं भला ! समाज और सियासत तक तो ठीक है पर यह संक्रमण साहित्य में गया तो उनका क्या होगा ? ‘जेन-जीकुछ और नहीं, आधुनिक उचक्के हैं।समय रहते इन्हें नियंत्रित नहीं किया गया तो सालों से बनाई हमारी स्थापनाएँ ढह जाएँगी।हम स्तंभकार बेरोजगार हो जाएँगे।इसी पसोपेश में राजधानी के बड़े साहित्यकारों ने एकचिंतन-बैठकआहूत कर ली।इसमें देश भर के वे सभी लेखक शामिल थे जो साहित्य के लिए चिंताजनक थे।गोष्ठी का विषय था, ‘साहित्य का संक्रमण-काल


विषय दिलचस्प था और गंभीर भी।इसलिए एक सरकारी संस्था ने इसे गोद ले लिया।खाने-पीने की भरपूर व्यवस्था थी।सौभाग्य से मैं भी इस न्यौते सॉरी चिंता में शामिल था।भोजनकाल से थोड़ा पहले पहुँचकर मैंने अपना स्थान सुरक्षित कर लिया।मंच पर कई दैवीय मूर्तियाँ विराजमान थीं।साहित्यिक संसार के सभी क्षत्रप वहाँ उपस्थित थे।चूँकि साहित्य को समाज का दर्पण माना गया है और संस्था पूरी तरह लोकतांत्रिक थी इसलिए इसमें साहित्यिक उठाईगीरों,उचक्कों और हत्यारों को भी आमंत्रित किया गया था।घबराइए नहीं,ये हत्यारे अहिंसक थे।कई प्रतिभाओं की इन्होंने भ्रूण-हत्या की थी।कुछ आमंत्रित स्त्रियों के प्रति अति संवेदनशील थे।उन्हें स्पर्श करते ही उनकी अवांछित इंद्रियाँ जागृत हो जाती थीं।कुल मिलाकर यह बैठक पूरी तरह से साहित्यिक थी पर कुछ विघ्न-संतोषी इसमें भी अड़ंगा लगा रहे थे।अंततः अनुभवी और शातिर लोगों ने साहित्य की रक्षा की और नियत समय पर बैठक शुरू हुई।


इस गंभीर गोष्ठी में मुख्य तीन वक्ता थे।पहले कनिष्ठ वक्ता ने बोलना शुरू किया, ‘ साथियो, पहली बार हम संकट में हैं।कृपया हम का मतलब साहित्य समझना।लिखना तो हमने पहले ही बंद कर दिया था,अब ये जेन जी हमारे दिखने पर भी टोका-टाकी करने लगी है।हम अपने प्रिय की ईमानदार आलोचना तक नहीं कर पा रहे हैं।यह पीढ़ी उसे प्रशंसा समझ लेती है।देखते ही देखते हमारी कारगुजारियाँ वायरल हो जाती हैं।इससे बड़ा संक्रमण क्या होगा भला ?’


उनकी बात सुनकर दूसरे वक्ता समय से पहले ही बोलने लगे, ‘ मित्रो, हमने यह आयोजन इसलिए नहीं किया कि हम संकट में हैं।साहित्य के बारे में नहीं कह सकता।पिछले तीस सालों से किसी तरह साहित्य को संक्रमित होने से बचा रखा था।आजकलजेन जीनामक नई आफ़त गई है।कल तक साहित्य में जो चूजे और कबूतर थे,आज वही मुर्गों और बाजों को चुनौती दे रहे हैं।हमें कुछ नहीं तो सियासत से सबक लेना चाहिए।वहाँजेन जीकितनी शांति से काम कर रही है !’


शीर्ष वक्ता बड़ी देर से कसमसा रहे थे।भोजन का समय हो चुका था पर बीज-वक्तव्य उन्हें देना था।माइक संभालते ही वह टूट पड़े, ‘ मेरी साहित्य के प्रति निष्ठा असंदिग्ध है।इसका उदाहरण मेरी हवाई यात्रा है।संक्रमण को बचाने के लिए मैं कितनी जल्दी में हूँ,इससे पता चलता है।मेरी कविताओं में कबीरी-धार है।वही उलीचने यहाँ आया हूँ।


यह सुनते ही उपस्थित श्रोताओं में भगदड़ मच गई।लोगों को लगा कि बाज़ार में कोई नया व्यंजन आया है।उन्होंने मंच के नीचे अपनी अँजुरी लगा दी।आयोजकों के बार-बार ऐलान के बाद भी श्रोता कुछ सुनने को तैयार नहीं थे।इसी दृश्य को कुछजेन जियोने रील बनाकर वायरल कर दिया।

साहित्य का संक्रमण काल और जेन-जी

पिछले दिनों पड़ोसी देश में क्रांति हो गई।यह क्रांति पिछली क्रांतियों से थोड़ा अलग रही।इसका श्रेय ‘ जेन - जी ’ को दिया जा ...