प्रिय अज्ञानशत्रु !
सदैव सम्मानित होते रहो !
कल तुम्हारे पार्टनर का पत्र मिला।सभी हाल मालूम हुए।तुम्हारे भी और व्यंग्य का विनाश करने वालों के भी।तुम बिल्कुल नहीं घबराना।मेरे साथ जोशी भी बैठा है।बड़े जोश में है।तुम्हारे द्वारा उसके लिए लिखी 40~पेजी प्रस्तावना को कलेज़े से लगाए हुए है।उसे डर है कि यदि वह उससे विमुख हो गया तो कहीं उसका कलेजा ही न निकल जाए।नादान है।उसे नहीं मालूम कि चिकित्सा में भी तुम क्रांति कर चुके हो।उसे भौतिक रूप से भी बचा लोगे।
बहरहाल,सबसे पहले मैं तुम्हारे कलेजे की दाद देता हूँ।लेखक को इतना साहसी तो होना ही चाहिए कि मंच में बलात्कारी बैठे हों या साहित्य के हत्यारे, अपने उद्देश्य से बिल्कुल न डिगे।तुम्हारे मामले में तो यह महज़ एक ‘ हवाई-दुर्घटना’ भर थी।एक बार जब टिकट हो गया तो उसका रद्द होना संस्था,समाज और साहित्य के लिए घातक साबित हो सकता है।मुझे मालूम है तुमने यह प्रेरणा सियासत से ली होगी।
जब सियासत की बात आई है तो और भी ख़ुलासे कर देता हूँ,पर यह बात तुम अपने पार्टनर को मत बताना।उससे एक बार ही मिला हूँ।उसी भेंट को वह अहर्निश गले लगाए फिरता है।बावला है।इतना भावुक होने की क्या ज़रूरत? हर सभा,हर गोष्ठी में मुझे श्रद्धांजलि देता है।मुझ पर उसका बड़ा कर्ज़ है।सुना है,उसने जोम्बीज़ की पूरी फौज खड़ी कर ली है।यह भी अच्छा हुआ।उसका कोई बाल-बाँका नहीं कर सकता।मेरे टाइम यह स्कीम होती तो मेरी टाँग टूटने से बच जाती।खैर, छोड़ो अब।बहुत बुजुर्ग हो गया हूँ ।जल्द विषय से भटक जाता हूँ पर क्या करूँ,मेरा उससे प्रेम ही इतना है !
हाँ,तुम पर फिर आते हैं।तुमने शीर्ष सम्मान पाकर भी अपनी प्यास बचाए रखी है,यह बड़ी बात है।बड़ा लेखक वही है जो दिन-रात बेचैन रहे।उसकी प्यास कभी बुझे न ।मगर यह दुनिया संगदिल है।जब देखो तब पत्थर उछालती रहती है ।दुष्यंत को मैं समझाता रहा कि ज़्यादा पत्थर मत उछालो,नहीं तो गिद्ध बन जाओगे,पर वह नहीं माना।तुमने ठीक ही किया कि अपने नाम से ‘सम्मान’ चला दिया,जैसे कभी उस प्रतापी सुल्तान ने सिक्का चलाया था।मैं तो जीते-जी सम्मान के लिए तरसता रहा।मेरे कट्टर अनुयायी आज भी दक्षिणा-स्वरूप मुझे उसी गति को प्राप्त करवा रहे हैं।तुमसे इसलिए कह रहा हूँ कि तुम खूब लिख रहे हो।कमल के राज में हर कोई नहीं खिल सकता पर तुमने अपना स्टेटस क़ायम रखा है।उम्मीद है,अच्छी-ख़ासी रॉयल्टी मिल रही होगी ।बुरा न मानना,विनोद में कह रहा हूँ ।
काफ़ी दिनों से तुम्हारा आभार प्रकट करना चाह रहा था।पर क्या करूँ,अब वह दृष्टि नहीं रही।तुम्हारे पास दूर दृष्टि है।पहले केवल ख़ास पक्षी के पास ही पाई जाती थी,पर अब वे भी विलुप्त हो गए।अच्छा है कि तुमने व्यंग्य में वह परंपरा क़ायम रखी है।पूरा साहित्य इससे अभिप्राणित होगा।तुम व्यंग्य के नए शाह हो।परिस्थिति से घबराओगे नहीं,यह जानता हूँ।कुत्ते भौंकते हैं,हाथी अपनी चाल चलते हैं।इस मुहावरे को अपनी रक्षा के लिए इस्तेमाल करना।साहित्य लेखक के काम नहीं आएगा तो किसके लिए आएगा?
और हाल बताना।व्यंग्य के तो मुझे मालूम चलते रहते हैं बस देश की सही ख़बर नहीं मिल पाती।उम्मीद है देश से मैला ढोने वाली प्रथा समाप्त हो गई होगी।हाँ, व्यंग्य में बड़ा कचरा है।इसे साफ़ मत करना।मैं देख नहीं पाऊँगा।मैंने कभी कहा था, जो जिसके लिए प्रतिबद्ध है,उसी को नष्ट कर रहा है।इसलिए अंतिम अनुरोध है कि सभायें और गोष्ठियां भले करते रहना पर कभी भूलकर भी व्यंग्य के लिए प्रतिबद्ध मत हो जाना।
जोशी तुम्हें अपने कलेजे से लगाए हुए सो गया है।मैं भी विश्राम करता हूँ।
तुम्हारा ही स्मृतिशेष
टूटा हुआ परसाई
1 टिप्पणी:
जोशी के साथ आडवाणी नहीं था क्या :)
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