मंगलवार, 18 फ़रवरी 2014

मिर्ची-पाउडर का मंदिर के प्रसाद में बदलना !


हिन्दुस्तान में 18/02/2014 को।



जनता की आँखों में धूल झोंकने के अभ्यस्त रहे लोग यदि अपने लोगों की आँखों में मिर्च झोंकते हैं तो यह महज तकनीकी मसला भर है। इस पर नैतिकता का मुलम्मा चढ़ाकर बड़े-बड़े अश्रु बहाना निहायत पारंपरिक और स्थायी कर्म है,जो अब बंद होना चाहिए। पिछले कई वर्षों से ऐसे कर्णधार,जो धूल और कोयला झोंकने में निपुण हैं ,निरंतर अपनी उपयोगिता सिद्ध कर चुके हैं ।साथ ही,वे दल-बल सहित सदन में स्थायी आसन जमाकर बैठ गए हैं। ऐसे में अगर एकाध मिर्ची झोंकने वाला भी सदन में एंट्री मार लेता है तो हमारे दिल में अचानक नैतिकता की घंटियाँ क्यों बजने लगती हैं ? यह तो लोकतान्त्रिक प्रक्रिया का एक छोटा-सा अंग है ,जिसमें एक पाकेटमार या चेन-स्नैचर की तरह एक मिर्चीमार और चक्कूबाज को अपना हुनर दिखाने का मौका मिल जाता है। इसको सकारात्मक नजरिये से देखा जाये तो यह बाहुबलियों और माफिया डॉन के बीच अदने से लफंगे की हल्की-सी घुसपैठ भर है।

हमारी संसद एक पवित्र मंदिर की तरह है और इसमें पुजारी बनकर प्रवेश करने वाले देवताओं की जगह विराजमान हैं। यह सब कुछ नितांत लोकतान्त्रिक तरीके से हुआ है,इसलिए इसमें कुछ भी गलत नहीं है। मंदिर में देवताओं और पुजारियों के विशेषाधिकार होते हैं,भक्तों के नहीं। इसलिए वे वहाँ भरतनाट्यम करें,मल्ल-युद्ध करें या माइक उखाड़ें,सब उनकी नित्यलीलाओं में शुमार माना जाता है। भक्ति से ओत-प्रोत भोली जनता को क्या चाहिए ? बस,उसे समय-समय पर सब्सिडी के रूप में प्रसाद मिल जाता है और वह फिर से अगली लीला देखने की आतुरता से प्रतीक्षा करने लगती है। इसलिए मंदिर में होने वाले  पूजा-पाठ पर सड़क से उँगली उठाना अनैतिक तो है ही,बेहद असंवैधानिक भी है। मन्दिर के अंदर के विषय पर अंदर के लोग ही अंतिम निर्णय ले सकते हैं। यह उन पर निर्भर है कि मन्दिर के अंदर वे गुलाब-जल का छिड़काव चाहते हैं या मिर्ची-पाउडर का !

हमें अपने युग के प्रभुओं और परमेश्वरों पर पूर्ण आस्था है। हम किसी आम आदमी को पूरी व्यवस्था पर उँगली उठाने और सनातन काल से चली आ रही परम्परा को ठेंगा दिखाने नहीं दे सकते। आम आदमी हमेशा से भक्त रहा है और बाय डिफॉल्ट बना रहेगा। मन्दिर में किया गया स्प्रे हमें आगामी भविष्य के प्रति पूरी तरह आश्वस्त करता है कि इसके इर्द-गिर्द मक्खी-मच्छरों को टिकने नहीं दिया जायेगा। सदन की पवित्रता बरकरार रहे इसके लिए जल्द ही देवता बने पुजारियों की एक समिति गठित की जाएगी,जिससे दिक्-भ्रमित भक्तों में पुनः विश्वास का संचार किया जा सके ! अब इसके बाद भी किसी को मिर्ची लगे तो कोई क्या करे ?


1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हर आने और जाने वाले को।

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