सत्ता में अकड़ न हो तो उसकी पकड़ भी नहीं रहती।ढीली-ढाली दिखने वाली सरकार का प्रशासन तो ढीला रहता ही है ,उसकी ढंग की सेल्फी भी नहीं आ पाती।जैसे डंडे वाली सरकार बड़ी कारसाज मानी जाती है,वैसे ही स्टिक वाली सेल्फी सबसे कारगर।अब सेल्फी है तो सरकार दिखती है।जहाँ सरकार और सेल्फी दोनों एक साथ हों,ऐसा ‘संजोग’ दुर्लभ होता है।इस तरह के मौके को कोई छोड़ता है भला ! मीडिया चौथा खम्भा है।उसने यही खम्भा सरकार के काँधे से टिकाया हुआ है बस।खम्भे की मजबूती उसके टिके रहने तक ही है।इसलिए यह खम्भे की अतिरिक्त जिम्मेदारी है कि वह सरकार को अपने कंधे पर उठाए रहे।इससे मीडिया की सेल्फी भी निखरकर आती है ।पोज़ के बहाने ‘पोल’ दिखती है.
सेल्फी कैमरे का शॉट भर नहीं है।वह हमारा अन्तःचित्र है,हनक है।हर आदमी अपने को अभिव्यक्त करना चाहता है।जब उसके पास शब्द न हों या कमजोर हों तो उसका दिखना बड़ा काम करता है।बड़े नेता या कलाकार के साथ की सेल्फी अपनी हैसियत बयान करती है।बिना कुछ कहे सामने वाला ‘फ्लैट’हो जाता है।सब एक-दूसरे को इसीलिए रौंद रहे हैं।सूखी फसलों और भूखी देहों के साथ कोई नहीं सेल्फियाना चाहता।ऐसी लोकेशन में दाल-रोटी के अनावश्यक मसले मूड बिगाड़ते हैं।इसीलिए सेल्फी के लिए सबसे सुरक्षित और नयनाभिराम जगह लुटियन ज़ोन है।यहाँ किसी तरह के सवाल नहीं किये जाते।उत्तर सब चेहरों पर छपे होते हैं पर उनको पढ़ने की तमीज अमूमन सबमें नहीं होती।
सेल्फी-संक्रमित व्यक्ति से आम जन को दूर रहना चाहिए।आत्ममुग्धता से लैस आदमी मिनटों में सामने वाले को अपने आभामंडल से ढहा सकता है।जिनके पास ऐसी आभा नहीं है और संक्रमित होने के इच्छुक होते हैं,वे किसी न किसी बहाने अपनी अंतिम इच्छा पूरी कर लेते हैं।कोई भी नैतिक मिशन इसके आड़े नहीं आता।
ऐसे ही एक सेल्फी-संक्रमित पत्रकार से भेंट हो गई।मैंने कहा-यह बहुत खतरनाक प्रवृत्ति है।पत्रकार को सरकार और सत्ता से दूर रहना चाहिए।कहने लगे-आप पूर्वाग्रही हैं और परले दरज़े के पाखंडी भी।हम सरकार और सत्ता से दूर रहेंगे तो आपको इनके नजदीक कैसे लायेंगे ?सरकार आम आदमी से जुड़ना चाहती है।वह अकेले कहाँ-कहाँ जाएगी? हम सब संक्रमित होंगे,तो सरकार की सोच का ही विस्तार होगा।आइए,हमसे लिपटकर सहिष्णु हो जाइए !
हमने अपनी असहिष्णु-काया को सम्मानित-शाल से ढकते हुए उनसे हाथ मिलाया।मौका पाते ही उन्होंने एक ज़ोरदार सेल्फी खींच ली और बोले-आज की ब्रेकिंग न्यूज़ मिल गई है !
सेल्फी कैमरे का शॉट भर नहीं है।वह हमारा अन्तःचित्र है,हनक है।हर आदमी अपने को अभिव्यक्त करना चाहता है।जब उसके पास शब्द न हों या कमजोर हों तो उसका दिखना बड़ा काम करता है।बड़े नेता या कलाकार के साथ की सेल्फी अपनी हैसियत बयान करती है।बिना कुछ कहे सामने वाला ‘फ्लैट’हो जाता है।सब एक-दूसरे को इसीलिए रौंद रहे हैं।सूखी फसलों और भूखी देहों के साथ कोई नहीं सेल्फियाना चाहता।ऐसी लोकेशन में दाल-रोटी के अनावश्यक मसले मूड बिगाड़ते हैं।इसीलिए सेल्फी के लिए सबसे सुरक्षित और नयनाभिराम जगह लुटियन ज़ोन है।यहाँ किसी तरह के सवाल नहीं किये जाते।उत्तर सब चेहरों पर छपे होते हैं पर उनको पढ़ने की तमीज अमूमन सबमें नहीं होती।
सेल्फी-संक्रमित व्यक्ति से आम जन को दूर रहना चाहिए।आत्ममुग्धता से लैस आदमी मिनटों में सामने वाले को अपने आभामंडल से ढहा सकता है।जिनके पास ऐसी आभा नहीं है और संक्रमित होने के इच्छुक होते हैं,वे किसी न किसी बहाने अपनी अंतिम इच्छा पूरी कर लेते हैं।कोई भी नैतिक मिशन इसके आड़े नहीं आता।
ऐसे ही एक सेल्फी-संक्रमित पत्रकार से भेंट हो गई।मैंने कहा-यह बहुत खतरनाक प्रवृत्ति है।पत्रकार को सरकार और सत्ता से दूर रहना चाहिए।कहने लगे-आप पूर्वाग्रही हैं और परले दरज़े के पाखंडी भी।हम सरकार और सत्ता से दूर रहेंगे तो आपको इनके नजदीक कैसे लायेंगे ?सरकार आम आदमी से जुड़ना चाहती है।वह अकेले कहाँ-कहाँ जाएगी? हम सब संक्रमित होंगे,तो सरकार की सोच का ही विस्तार होगा।आइए,हमसे लिपटकर सहिष्णु हो जाइए !
हमने अपनी असहिष्णु-काया को सम्मानित-शाल से ढकते हुए उनसे हाथ मिलाया।मौका पाते ही उन्होंने एक ज़ोरदार सेल्फी खींच ली और बोले-आज की ब्रेकिंग न्यूज़ मिल गई है !
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