गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

जाते हुए के साथ जाना !

यह साल बीत गया और इसके साथ आए कई उबाल भी।सम्मान अपमान बन गया और असहिष्णुता नया हथियार।इस साल दाल ने बड़ा कष्ट दिया पर जाते-जाते खुद ही निपट गई।उसकी हालत ऐसी हो गई है कि अब उसकी कोई बात भी नहीं करता।समस्याएं ऐसे भी खत्म होती हैं।ड्राइंग रूम के सोफे में पसरकर प्राइम टाइम में जो दिखाई दे,वही समस्या।हर दिन खबर बदल रही है।साल बदलने के साथ बीते साल की सारी मुश्किलें खुद-ब-खुद खत्म हो लेंगी।


बगदादी पूरे साल बरगद की तरह छाया रहा।इससे इतना तो पता चला कि विकसित देशों के अलावा विकास और कहाँ-कहाँ है।कहा यही जाता है कि वह स्वयं विकसित देशों द्वारा किया गया विकास है।विकास तभी समझ में आता है जब सर्वनाश शुरू होता है।दिल्ली का ट्रैफिक तभी सामान्य होगा,जब यह विकास को पूरी तरह पहचान लेगा।सरकारों के हाथ-पाँव तभी सक्रिय होते हैं जब पानी खतरे के निशान से ऊपर चला जाता है।यह अलार्म किसी ने बहुत पहले फिट कर दिया है।इसलिए समय से पहले काम न करने का दोष किसी पर नहीं।सब निर्दोष हैं,सिवा ज़ालिम जनता के।

नए साल में दिल्ली सम-विषम के फार्मूले के बीच झूलेगी।पढाई के दौरान जो लोग हिसाब में कमजोर रहे हैं,उनके लिए मुसीबतें शुरू होने वाली हैं।ऐसा भी नहीं है कि नए साल में हिसाब-किताब में कमजोरों के पल्ले बस मुसीबतें ही आने वाली हों।हर दूसरे-तीसरे दिन रेलभाड़े में हो रही बढ़ोत्तरी हिसाब में कमजोरों के लिए वरदान की तरह है।जो रोज किराये का हिसाब लगाकर सरकार के लिए मातमपुर्सी करते हैं,वे डिप्रेशन के शिकार हो सकते हैं।इसलिए बीते साल की ऐसी-वैसी बातें उसी के साथ बीत जाएँगी।पीछे मुड़कर देखना वैसे भी समझदारी की बात नहीं मानी जाती ।

बीते साल में जो आतंक था,नए साल की आहट में वह शान्ति का प्रतीक हो गया।देशद्रोह राष्ट्रप्रेम में और निंदनीय कृत्य ‘मास्टर-स्ट्रोक’ में तब्दील हो गया।ऐसे साल का बीतना भला जिसने दोस्त को दुश्मन बना दिया था।पुराना वक्त और पुराने बयान विकास की राह में बाधक होते हैं।इसलिए ‘बीती ताहि बिसार दे’ के मन्त्र का समय है।

नये का स्वागत है क्योंकि इसके साथ स्पेस होता है और बाज़ार भी ।आगे तीन सौ पैंसठ दिन पड़े हैं।पिछले संकल्प और टारगेट स्वतः एक्सपायर हो जाते हैं।आओ नए साल के लिए नए संकल्प बना लें।जो बीत गया,उसकी क्या बात।अस्त होते सूरज को कोई सलाम करता है भला ?

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