‘अतुल्य भारत’ अचानक प्रतिभाविहीन हो गया है।बताया गया है कि जिस प्रतिभा से उसका करार हुआ था,वह समाप्त हो गया है।कुछ का मानना है कि भाड़े पर ली गई प्रतिभा पर ‘करार’ नहीं बचा था।सो करार खत्म होते ही प्रतिभा भी खत्म।यही है अतुल्य भारत की प्रतिभा।यहाँ प्रतिभा पर करार नहीं किया जाता बल्कि प्रतिभा से करार करके देश की प्रतिभा बढ़ाई जाती है।ऐसी प्रतिभा वाला देश धन्य है और अतुलनीय भी।इससे भी अधिक धन्य यहाँ की प्रतिभाएं हैं।वे करार में तुलकर देश को ‘अतुल्य’ बनाती हैं।देश भले ही अतुलनीय हो पर प्रतिभा तुल सकती है।वह जितना ज्यादा तुलेगी,उतना ही अधिक देश अतुल्य होगा।
सरकार के पास आम आदमी के लिए कौड़ी नहीं है पर देश के लिए उसके पास दूर की कौड़ी है।देश अतुल्य तभी साबित होगा जब उसके पास तुला हुआ ब्रांड होगा।जब तक सरकार का उस पर ‘करार’ रहेगा,तब तक देश अतुल्य बना रहेगा।यह खुला प्रमाण पत्र है हमारे अतुलनीय होने का।यहाँ ब्रांड की कीमत देश से ज्यादा होती है क्योंकि ब्रांड के पास बाज़ार होता है।देश अपने आप में कोई प्रेरणा नहीं दे पा रहा।देश का नाम लेते ही उसके साथ भूख,बेकारी,मँहगाई और भ्रष्टाचार के परमानेंट टैग याद आ जाते हैं।इसलिए सरकार इसकी छवि को मनोहारी बनाना चाहती है।यह हुनर सिनेमाई इफेक्ट से ही आ सकता है।आभासी नायक ही देश की छवि का वास्तविक नेतृत्व कर सकते हैं।राजनैतिक और सामाजिक नायक कहीं बिला गए हैं।हमारे आदर्श भले आभासी हैं,फिर भी कामनाएं वास्तविक हैं।नई पीढ़ी इसी तरह से प्रेरित हो सकती है।हम इसलिए लगातार तुल रहे हैं।जो तुलनीय नहीं है,वह रद्दी के अख़बार से भी गया-गुजरा है।
भाषा बदलने पर पूरे मायने ही बदल जाते हैं।जो भारत हिन्दी में ‘अतुल्य’ है,वही अंग्रेजी में ‘इनक्रेडिबल’ हो जाता है।इनक्रेडिबल का मतलब ‘अविश्वसनीय’ यानी भरोसा-रहित।अब देखिए,करार पाने के लिए करार किया जाता है पर अंततः वह बे-करार(भरोसा-रहित) ही होता है।
ताजा खबर है कि चुके हुए अभिनेता हमारी नई प्रतिभा बनने के लिए सज्ज हैं।सरकार उन्हें पूरी तरह तौल चुकी है।वे प्रदेश की तुलाओं पर भारी पड़ चुके हैं तो अब देश के लिए क्यों चूकें ?उनके पास चमेली के तेल से लेकर खटमल मार दवा बन जाने तक का हुनर है।हमें ऐसी ही प्रतिभा चाहिए।तुले हुए लोग ही ‘अतुलनीय’ का निर्माण कर सकते हैं।भारत ‘अतुल्य’ है पर इसका नायक जितना अधिक ‘तुल्य’ हो,उतना ही सुपात्र होगा।
सरकार के पास आम आदमी के लिए कौड़ी नहीं है पर देश के लिए उसके पास दूर की कौड़ी है।देश अतुल्य तभी साबित होगा जब उसके पास तुला हुआ ब्रांड होगा।जब तक सरकार का उस पर ‘करार’ रहेगा,तब तक देश अतुल्य बना रहेगा।यह खुला प्रमाण पत्र है हमारे अतुलनीय होने का।यहाँ ब्रांड की कीमत देश से ज्यादा होती है क्योंकि ब्रांड के पास बाज़ार होता है।देश अपने आप में कोई प्रेरणा नहीं दे पा रहा।देश का नाम लेते ही उसके साथ भूख,बेकारी,मँहगाई और भ्रष्टाचार के परमानेंट टैग याद आ जाते हैं।इसलिए सरकार इसकी छवि को मनोहारी बनाना चाहती है।यह हुनर सिनेमाई इफेक्ट से ही आ सकता है।आभासी नायक ही देश की छवि का वास्तविक नेतृत्व कर सकते हैं।राजनैतिक और सामाजिक नायक कहीं बिला गए हैं।हमारे आदर्श भले आभासी हैं,फिर भी कामनाएं वास्तविक हैं।नई पीढ़ी इसी तरह से प्रेरित हो सकती है।हम इसलिए लगातार तुल रहे हैं।जो तुलनीय नहीं है,वह रद्दी के अख़बार से भी गया-गुजरा है।
भाषा बदलने पर पूरे मायने ही बदल जाते हैं।जो भारत हिन्दी में ‘अतुल्य’ है,वही अंग्रेजी में ‘इनक्रेडिबल’ हो जाता है।इनक्रेडिबल का मतलब ‘अविश्वसनीय’ यानी भरोसा-रहित।अब देखिए,करार पाने के लिए करार किया जाता है पर अंततः वह बे-करार(भरोसा-रहित) ही होता है।
ताजा खबर है कि चुके हुए अभिनेता हमारी नई प्रतिभा बनने के लिए सज्ज हैं।सरकार उन्हें पूरी तरह तौल चुकी है।वे प्रदेश की तुलाओं पर भारी पड़ चुके हैं तो अब देश के लिए क्यों चूकें ?उनके पास चमेली के तेल से लेकर खटमल मार दवा बन जाने तक का हुनर है।हमें ऐसी ही प्रतिभा चाहिए।तुले हुए लोग ही ‘अतुलनीय’ का निर्माण कर सकते हैं।भारत ‘अतुल्य’ है पर इसका नायक जितना अधिक ‘तुल्य’ हो,उतना ही सुपात्र होगा।
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