जिसके फेर में सब रहते हैं,वह ख़ुद धुंध के फेर में है।इन दिनों राजधानी गर्दो-गुबार से भरी है।आँखें फाड़कर देखने से भी अँधेरा नहीं फट रहा।गोया दिल्ली बीमारों का जमघट बन गई हो।ये बीमार सत्ता के हों या व्यवस्था के।चिकनगुनिया और डेंगू की ठीक से निकासी भी नहीं हो पाई थी कि बर्ड-फ़्लू ने दस्तक दे दी।इस बीच आतिशबाजी की उजास में धुंध ने जबरिया घुसपैठ कर ली।मुश्किल यह कि इसे फेक एनकाउंटर में मारा भी नहीं जा सकता।
अपने ही कारनामों से निकली धुंध डराने लगी है।तय किया गया कि सब कुछ बंद किया जाय।यह बिलकुल उतना ही सटीक उपाय है जैसे आँख बंद कर लेने से सामने खड़ा शेर छूमंतर हो जाता है।आँखों पर छाई धुंध ने सब कुछ बंद कर दिया है,दिमाग भी।चैनल बंद,स्कूल बंद,बाहर निकलना बंद,असहमति और सवाल पूछना बंद।सबसे बढ़िया यही होगा कि खबरें ही बंद हो जाएँ।खुला चैनल वैसे भी कई ‘बंदों’ से अधिक खतरनाक होता है।बंद चैनल कहीं अधिक सुकून देते हैं।लोग बंद कमरों में धुंध से भी बचेंगे और देश-विरोधी हवा से भी।
राजधानी में चौतरफ़ा धुंध तारी है।आदमी आदमी को नहीं पहचान पा रहा।मरने के लिए अब सरहद पर जाने की ज़रूरत नहीं है।शहीद होने के लिए ‘शॉर्ट-कट’ प्लान तैयार है।आपके पास दो ही विकल्प हैं;या तो स्वेच्छा से आप अपना मुक्ति-मार्ग चुन लें या एलीट-टाइप की बीमारी आपका वरण स्वयं कर लेगी।हार्ट-अटैक,बुखार,कैंसर या शुगर से मरने का चलन अब आउटडेटेड हो चुका है।स्मार्ट-सिटी में रहते हुए प्रदूषण के हाथों खेत होना एक स्मार्ट अनुभव होगा।कुछ सालों पहले हजारों लोग लंदन में इस प्राकृतिक-वरदान को पाकर मुक्ति पा चुके हैं।हम तो वैसे भी आतिशबाजी के स्वाभाविक चैम्पियन हैं।
दिल्ली में छाई धुंध को लेकर विशेषज्ञ परेशान हैं।यह उतनी भी चिंताजनक बात नहीं है।कहते हैं कि सरकार को तेज हवाओं का इंतज़ार है जो इसे दूर लेकर चली जाएँ।दूसरी जगहों पर खुली आँख से देखने भर से ही धुंध छँट जाती है।दिल्ली की धुंध ज़रा गहरी है।इसमें कई तरह की परतें एक साथ सक्रिय हो उठती हैं।इस समय संसद-भवन और राजपथ घनी धुंध की चपेट में हैं।जैसे ही सूरज की किरणों को वहाँ सर्जिकल-स्ट्राइक का मौक़ा मिलेगा,धुंध को सीमा-पार भागने में देर नहीं लगेगी।फ़िलहाल दिल्ली को तेजाबी-बारिश का इंतज़ार है जो कम-अस-कम आँखों में चढ़ी मोटी धुंध को साफ़ कर सके।
अपने ही कारनामों से निकली धुंध डराने लगी है।तय किया गया कि सब कुछ बंद किया जाय।यह बिलकुल उतना ही सटीक उपाय है जैसे आँख बंद कर लेने से सामने खड़ा शेर छूमंतर हो जाता है।आँखों पर छाई धुंध ने सब कुछ बंद कर दिया है,दिमाग भी।चैनल बंद,स्कूल बंद,बाहर निकलना बंद,असहमति और सवाल पूछना बंद।सबसे बढ़िया यही होगा कि खबरें ही बंद हो जाएँ।खुला चैनल वैसे भी कई ‘बंदों’ से अधिक खतरनाक होता है।बंद चैनल कहीं अधिक सुकून देते हैं।लोग बंद कमरों में धुंध से भी बचेंगे और देश-विरोधी हवा से भी।
राजधानी में चौतरफ़ा धुंध तारी है।आदमी आदमी को नहीं पहचान पा रहा।मरने के लिए अब सरहद पर जाने की ज़रूरत नहीं है।शहीद होने के लिए ‘शॉर्ट-कट’ प्लान तैयार है।आपके पास दो ही विकल्प हैं;या तो स्वेच्छा से आप अपना मुक्ति-मार्ग चुन लें या एलीट-टाइप की बीमारी आपका वरण स्वयं कर लेगी।हार्ट-अटैक,बुखार,कैंसर या शुगर से मरने का चलन अब आउटडेटेड हो चुका है।स्मार्ट-सिटी में रहते हुए प्रदूषण के हाथों खेत होना एक स्मार्ट अनुभव होगा।कुछ सालों पहले हजारों लोग लंदन में इस प्राकृतिक-वरदान को पाकर मुक्ति पा चुके हैं।हम तो वैसे भी आतिशबाजी के स्वाभाविक चैम्पियन हैं।
दिल्ली में छाई धुंध को लेकर विशेषज्ञ परेशान हैं।यह उतनी भी चिंताजनक बात नहीं है।कहते हैं कि सरकार को तेज हवाओं का इंतज़ार है जो इसे दूर लेकर चली जाएँ।दूसरी जगहों पर खुली आँख से देखने भर से ही धुंध छँट जाती है।दिल्ली की धुंध ज़रा गहरी है।इसमें कई तरह की परतें एक साथ सक्रिय हो उठती हैं।इस समय संसद-भवन और राजपथ घनी धुंध की चपेट में हैं।जैसे ही सूरज की किरणों को वहाँ सर्जिकल-स्ट्राइक का मौक़ा मिलेगा,धुंध को सीमा-पार भागने में देर नहीं लगेगी।फ़िलहाल दिल्ली को तेजाबी-बारिश का इंतज़ार है जो कम-अस-कम आँखों में चढ़ी मोटी धुंध को साफ़ कर सके।
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स्मार्ट-सिटी में रहते हुए प्रदूषण के हाथों खेत होना एक स्मार्ट अनुभव होगा।
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