हाल ही में एक निष्कर्ष सामने आया है कि हम भारतीय बड़े आलसी होते हैं।इस अनोखी उपलब्धि की जानकारी हमें तो बहुत पहले से थी,पर दुनिया ने अब जाकर हमारा लोहा माना है।हम मानते हैं कि आलस्य का अपना सौंदर्य होता है।इस बारे में वे बेचारे नहीं जान सकते,जिन्हें इसका कभी सुख नहीं मिला हो।हम तो बचपन से ही आलसी बनना चाहते थे पर कबीर साहब ने ऐन वक़्त पर हमें रोक दिया।स्कूल में हिन्दी के मास्टर साहब ने बताया कि कबीर कहते हैं कि जो काम कल करना हो,उसे आज करो।और जो आज करना हो,वह अभी।संस्कृत वाले आचार्य जी ने तो आलसी होने के तमाम फलित भी बता डाले थे ;`अलसस्य कुतो विद्या,अविद्यस्य कुतो धनं,अधनस्य कुतो मित्रं,अमित्रस्य कुतो सुखं'अर्थात् आलसी को विद्या नहीं मिल सकती।बिना विद्या के धन नहीं,बिना धन के मित्र नहीं और बिना मित्र के सुख नहीं।ये हमले दरअसल आलस्य पर नहीं सीधे हमारी अंतरात्मा पर हुए।इसके बाद हमने कोई और आवाज नहीं सुनी।बस इन्हीं उपयोगी सूत्रों के चक्कर में अपनी संभावित प्रगति बाधित कर डाली।सुख की कामना में आलस्य के स्थायी शत्रु बन बैठे।और आज हाल यह कि सुख हमारा स्थायी दुश्मन बन गया है।आलसी जहाँ रात में भरपूर नींद के बाद दिन में भी अलसाने का सुख उठा लेते हैं,हम रात भर जागते और दिन भर भागते रहते हैं।अनिद्रा के शिकार हो गए हैं क़सम से।
एक कट्टर आलसी को तो हमने इन्हीं जागती आँखों से फलते-फूलते देखा है।मेरे साथ ही गाँव के हाईस्कूल में पढ़ता था।आलस्य से पंगा लेकर मैंने लालटेन जला-जलाकर पूरे साल पढ़ाई की और स्कूल में अव्वल आया था।वहीं हमारे लंगोटिया यार को पढ़ाई से ज़्यादा आलस्य से प्यार हो गया।इतना कि ऐन इम्तिहान के दिन वह निद्रादेवी की गोद में सशरीर समा गया था।उसकी डेस्क को इसके लिए उस दिन भारी शर्मिंदगी उठानी पड़ी।इस घटना का तात्कालिक असर यह हुआ कि उसके ठेकेदार पिता ने पढ़ाई जैसे नीरस और अनुपजाऊ काम से उसे तुरंत खींच लिया।थोड़े दिन बाद ही उसके पिता स्थानीय जनता के दुःख-दर्द बाँटने के कार्यक्रम में लग गए।जब यह ‘बँटवारा’ बढ़ने लगा तो अपने प्रोजेक्ट में बेटे को भी उन्होंने शामिल कर लिया।नतीजा यह हुआ कि वह दोस्त आज उस महकमे का मंत्री है,जिसमें हम बड़े बाबू हैं।आलस्य से दुश्मनी करके आज हम फ़ाइलों के ढेर पर बैठे हैं और वह अँगूठा दबाकर राज्य की नित-नई योजनाएँ पास कर रहा है।
इस घटना का ही असर है कि अलसाए हुए लोग मुझे अच्छे लगने लगे।उन्हें किसी बात की जल्दी नहीं रहती।वे ट्रेन पकड़ने के मामले में भी इतने ही प्रतिबद्ध होते हैं जितने दैनिक रूप से कार्यस्थल पहुँचने में।प्लेटफ़ॉर्म में वे पहुँचते तभी हैं,जब गाड़ी रेंगने लगती है।इससे वे उबाऊ प्रतीक्षा से साफ़ बच जाते हैं।
देश में आलस्य वाले बहुमत में हैं।अपनी इसी आदत के कारण वे देश-सेवा का भी लाभ उठा लेते हैं।मतदान के दिन घर से बाहर ही नहीं निकलते।केवल तीस-बत्तीस फ़ीसद लोगों के वोट से सरकार बन जाती है।आलसियों के लिए सार्वजनिक छुट्टी बच्चों संग एंजॉय करना देश से बड़ी सेवा है।इससे चुनाव जीतने के लिए नेताजी को ज़्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ती।सारे आलसी यदि वोट देने निकल आएँ तो जो सरकार बनेगी,वह भी आलसी होगी।और एक अलसाई हुई सरकार न विकास पैदा कर सकती है ,न ताबड़तोड़ विदेश यात्राएँ।इसलिए देश की प्रगति में आलसियों का सबसे बड़ा योगदान है।
आलसी आदमी बड़ा संतोषी जीव होता है।उसके मन में न कुछ पाने की इच्छा होती है न कुछ उठाकर देने की।बैठे-बिठाए जितना उसे मिल जाता है,उसी में वह तृप्त हो लेता है।आलसी अध्यात्म और विज्ञान का एक साथ पक्षधर होता है।उसमें आला दर्जे की आस्तिकता होती है।ईश्वर-कृपा से जो मिल जाता है,उतना ही वह ग्रहण करता है।आलसियों की वजह से ऑनलाइन शॉपिंग का बाज़ार दिनोंदिन बढ़ रहा है।भारत में देशी-विदेशी कम्पनियाँ इन्हीं निठल्लों के चलते ख़ूब रोज़गार पैदा कर रही हैं।उनका पूरा टर्न-ओवर ही इन आलसियों के अस्तित्व पर निर्भर है।शुक्र है कि हर घर में ऐसे महत्वपूर्ण प्राणी होते हैं।यहाँ तक कि विज्ञान की कई खोजें आलसी-फ़्रेंडली हैं।चाहे देश में क्रान्ति का मामला हो या घर की शांति का,पाँच इंच के एक स्मॉर्टफ़ोन से वह दोनों मसले तुरत हल कर डालता है।
आलसी ग़ज़ब का तार्किक होता है।ग़लती से कोई भी कर्म उसके कर-कमलों द्वारा पुण्य-लाभ न ले जा पाए,इसके ठोस कारण उसके मुखारविंद में हमेशा मौजूद रहते हैं।असली आलसी हरदम पॉज़िटिव सोचता है।उसे यही लगता है कि आख़िरी मौक़े पर कोई न कोई चमत्कार ज़रूर होगा।किसी काम को पूरा करने के लिए उस पर लोग भले विश्वास न करते हों,पर उसके पास ग़ज़ब का आत्मविश्वास होता है।जहाँ दूसरे लोग ‘समय बड़ा क़ीमती है’ नामक फोबिया से हमेशा पीड़ित रहते हैं और समय को लेकर बड़े संवेदनशील होते हैं,वहीं आलसी बिलकुल बेपरवाह।समय ख़ुद कई बार ‘अलार्म’ बजाकर उन्हें झिझोड़ता है पर वे कभी भी अपने ऊपर किसी तरह के ख़तरे का ‘लोड’ नहीं लेते।वे अधिकतर काम अपनी मानसिक-मिसाइल से ही ध्वस्त कर देते हैं यानी ‘मन’ से काम करते हैं।शायद इसीलिए दुनिया के सबसे धनी व्यक्ति बिल गेट्स का मानना है कि मुश्किल काम के लिए वे आलसी व्यक्ति को चुनना पसंद करेंगे।तो यह है आलसियों की मार्केट-वैल्यू ! सरकार भी यह बात बख़ूबी जानती है।इसीलिए आलसी को परमानेंट-तैनाती मिलती है और हम जैसे कामकाजी दर-बदर घूमते हैं।
2 टिप्पणियां:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " 'बंगाल का निर्माता' की ९२ वीं पुण्यतिथि “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
मजेदार :D
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