अचानक एक साथ दो अंतरात्माएँ प्रकट हो गईं।एक को भ्रष्टाचार की आवाज़ सुनाई दी तो दूसरी को हत्या के आरोप की।अन्तरात्माओं की ख़ास बात यह है कि वे किसी के कहने पर नहीं आतीं।ऐन मुफ़ीद वक़्त पर वे आकाशवाणी करने लगती हैं।महागठबंधन ‘ब्रेक’ हुआ तो अंदरूनी आत्माओं ने मोर्चा संभाल लिया।ख़ास बात यह रही कि दोनों तरफ़ की पवित्रता बरक़रार रही।वे रहती ही इतने अंदर हैं जहाँ नैतिकता की चिड़िया भी ‘बीट’ नहीं कर सकती।कुर्सी पर भले ही महान आत्माएँ बिराजती हों,पर उनकी जान अंतरात्माओं में ही बसती है।वे ही उन्हें बेदाग़ बचा ले जाती हैं।
अभी कुछ दिनों पहले इन्हीं अंतरात्माओं का सार्वजनिक आह्वान किया गया था पर वे ऐसे नहीं आतीं।वे किसी के आह्वान के विरुद्ध होती हैं।उन्हें यह क़तई नहीं पसंद कि उन पर कोई हुकुम चलाए।यहाँ तक कि इस बारे में वे अकसर अपने ‘धारक’ की भी नहीं सुनतीं।शरीर या उसकी आत्मा कुछ ग़लती कर भी सकती है पर अंतरात्मा ज़रा ऊँची और गहरी चीज़ होती है।उसको भेद पाना और उससे सवाल कर पाना न किसी नैतिकता के प्रहरी का काम है न ही किसी चैनल के अति-उत्साही रिपोर्टर का।
बहरहाल,अंतरात्मा की आवाज़ पर उन्होंने अपना इस्तीफ़ा उछाल दिया।वह ज़मीन पर गिरे कि उसके पहले ही बीच में आई बधाई उसमें बाधा बन गई।ये ऐसा तीर है जो छोड़ने के बाद भी वापस आ जाता है।एक ट्वीट ने दूसरे खेमे को ‘बीट’ कर दिया।देखते ही देखते वह ट्वीट इस्तीफ़े से बड़ी हो गई।अभी तक यह नहीं तय हो पाया कि इस्तीफ़ा पहले चला था या ट्वीट।पर इतना तो निश्चित है कि इस इस्तीफ़े के नीचे काफ़ी दुःखी आत्माएँ इकट्ठा हो गईं थीं।उन्होंने उसे बीच में ही ईमानदारी के कटोरे में लोंक लिया।इधर महागठबंधन टूटा,उधर ज्योतिषी दूसरे बंधन का मुहूर्त निकालने लगे।संयोग देखिए कि शुभ मुहूर्त नाग-पंचमी से ऐन पहले का मिल भी गया।
कहते हैं, संकट नैतिकता पर था।भ्रष्टाचार लगातार उस पर हथौड़े मार रहा था।जब दोनों में गठबंधन हुआ था तो भी नैतिकता की हालत गंभीर थी।उस वक़्त बेचारी धर्मनिरपेक्षता ने उसे बचा लिया था,नहीं नैतिकता तभी मारी जाती।बहरहाल,किसी की नैतिकता को कोई आँच नहीं आई और दोनों ओर की अंतरात्माएँ भी सुरक्षित हैं।
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