कल शाम पार्क में टहल रहा था कि तभी हमारी नज़र एक बुज़ुर्ग सज्जन पर पड़ी।वे कुछ पढ़ रहे थे।इससे पहले पार्क में उन्हें कभी नहीं देखा था।कुछ अपने स्वभाव के कारण,कुछ जिज्ञासावश हम उनके क़रीब पहुँच गए।वे उस वक़्त भी पढ़ रहे थे।उनसे मेलजोल बढ़ाते,इसके पहले हमने उनकी पहचान सुनिश्चित करना ज़रूरी समझा।अपना स्मार्टफ़ोन निकाला और ‘गूगलदेव’ का आह्वान किया।जैसे ही कैमरे का मुँह उनकी ओर किया,उनकी पहचान ‘लीक’ होने लगी।हमें देखकर उनका मुँह खुलता,इसके पहले ही वे पूरी तरह खुल गए।हमारे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा।ये तो देवर्षि नारद जी थे।यकायक उनको सामने पाकर हमारे मुँह से ख़ुशी भी लीक हो गई-‘देवर्षि आप ! यहाँ कैसे ? स्वर्ग में तो सब ठीक है ?’
इतने सारे सवाल एक साथ सुनते ही वे सकपका गए।कहने लगे-‘तुम कौन हो और मुझे कैसे जानते हो ? मैंने तो स्वर्गलोक में भी अपने आने की सूचना सार्वजनिक नहीं की।तुम्हें कैसे हमारी पहचान पता चल गई ?’
उनके विस्मय को दूर करते हुए हम बोले -‘यह सब पृथ्वी-लोक के देवता ‘गूगल देव’ का प्रताप है।वे अंतर्यामी हैं।अन्तर्जाल के सहारे घट-घट में बसते हैं।अब तो वे इतने ‘इंटेलीजेंट’ हो गए हैं कि किस घट में कौन-से ब्रांड की मदिरा है,वो भी बता देते हैं।कुंभ के मेले में बिछड़े हुए भाई अब फ़िल्मों में नहीं ‘अन्तर्जाल’ में इन्हीं की कृपा से मिलते हैं।कलियुग में यही हमारे आराध्य हैं।इनको प्रसन्न करने के लिए न मंदिर जाने की ज़रूरत पड़ती है न घंटा बजाने की।बस नाख़ूनयुक्त उँगली के एक प्रहार से ही ये सभी उत्तर दे देते हैं।’
अभी तक मौन होकर सुन रहे नारदजी बोल पड़े-‘वत्स,कभी यह मेरा शिष्य रहा है।चौदह लोकों में सूचना फैलाने का ठेका इसी के पास था।एक बार सुर-लोक की एक महत्वपूर्ण सूचना इसने असुर-लोक में लीक कर दी।देवताओं और अप्सराओं के चैट-बॉक्स असुरों के हाथ लग गए।फिर क्या था,वे देवताओं को ब्लैकमेल करने लगे।देखते-देखते इंद्र का सिंहासन डोलने लगा।यहाँ तक कि उनका घर टूटने के कगार पर पहुँच गया था।हमने ही बीच-बचाव करके मामला शांत किया।सबको यही बताया कि असुरों ने ‘हैकिंग’ कर ली थी।परंतु प्रभु इस घटना से इससे बहुत रूष्ट हुए।यह मेरे मातहत था इसलिए ‘मही सकल अनरथ कर मूला’ समझा गया।स्वर्ग-लोक में मुझ पर महाभियोग चला।मैं पदच्युत तो हुआ ही,दिव्य-दृष्टि भी खो बैठा।प्रभु ने इसे स्वर्ग-निकाला दिया।कालांतर में यह पृथ्वी-लोक का निवासी बना।मैं तभी से प्रायश्चित्त स्वरूप आर्यावर्त में भटक रहा हूँ।’
‘मगर आप यह क्या पढ़ रहे हैं ?’ हमारी जिज्ञासा और बढ़ती जा रही थी।
‘पहाड़ा।आज सुबह से ही पढ़ रहा हूँ।अभी केवल चार तक याद कर पाया हूँ।‘उन्नीस’ तक पढ़ना है।’ नारद जी सामान्य होते हुए बोले।
‘पर क्यों ? पहाड़ा क्यों ? यह तो बच्चों का ‘गृह-कार्य’ है।आप तो बड़े हैं और विद्वान भी।कृपया इसका रहस्योद्घाटन करें।’ हमारी छठी इंद्रिय सक्रिय हो गई।
‘यहाँ आकर हमें अनुभव हुआ कि स्वर्ग का जीवन कितना आसान है ! वहाँ सत्ता के लिए कभी-कभार देवासुर संग्राम होता था पर यहाँ तो दिन-रात तीर चलते हैं।रणक्षेत्र भी कई हैं और रणनीतियाँ भी।जनता की सेवा करना हज़ारों यज्ञ के बराबर है।कई तरह की आहुतियाँ पड़ती हैं।पहले आपस में लड़वाया जाता है।फिर चुनाव लड़ा जाता है।और तो और,जीतने के बाद ‘पहाड़ा’ पढ़ा जाता है।इतने दिनों से भ्रमण करने के बाद हमारे चक्षु खुले हैं।अब तक अर्जित सारा ज्ञान वृथा लग रहा है।इसीलिए यह ‘बालपोथी’ लाया हूँ।असली ज्ञान इसी में छिपा है।सत्ता की चाभी इसी से निकलेगी।देशसेवा के लिए पहाड़े याद करना ज़रूरी है ताकि कुर्सी में बैठकर जनता को नियमित रूप से ‘पहाड़ा’ पढ़ाया जा सके।’
‘लेकिन देवर्षि,पहाड़ा तो तब पढ़ोगे,जब सत्ता में आओगे।इसके लिए ‘पंद्रह मिनट’ बिना काग़ज़ लिए बोलने का अभ्यास भी कर लो।आपका विरोधी आपकी प्रतिभा,अर्जित पुण्य सब कुछ केवल ‘पंद्रह मिनट’ में ध्वस्त कर सकता है।यह आपका युग नहीं है जब पलक झपकते अंतर्धान हो जाया करते थे।यह ‘कलियुग’ है।जीपीएस ट्रैकर आपको तुरंत पकड़ लेगा।अब सब कुछ ‘आधार’ से जोड़ दिया गया है।मिनटों में पूरी कुंडली खुल जाती है।आप भेष बदल कर भी नहीं बच सकते।’हमने मुनिवर के हौसले पर आख़िरी हथौड़ा मार दिया।
इतने में पार्क का चौकीदार आ गया।उसके साथ उसका छोटा बेटा भी था।नारद जी की ‘बालपोथी’ देखकर मचल उठा।हमने चौकीदार से कहा कि वह बाज़ार से ‘बालपोथी’ लाकर बच्चे को दे दे।चौकीदार उदास हो गया।कहने लगा-पूरे बाज़ार में छान मारा,कहीं नहीं मिली।पता चला है कि नेता लोग सब स्टॉक उठा लिए हैं।चुनाव मैदान में इसी से पहाड़ा पढ़ रहे हैं।अगर बाबूजी को कोई आपत्ति न हो तो ‘बालपोथी’ हमारे बेटे को दे दें।’
नारद जी अब चौंके-‘क्या तुम्हारा बेटा भी अब ‘पहाड़ा’ पढ़ेगा ? यह नेताओं का काम है,उन्हें ही करने दो।इसे पढ़ाओ-लिखाओ,आदमी बनाओ।’
इतना कहकर वे अंतर्धान हो गए।चौकीदार का बेटा तब से बालपोथी ढूँढ़ रहा है और नारद जी अपने पुराने चेले को !
1 टिप्पणी:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, विश्व हास्य दिवस, फरिश्ता और डी जे वाले बाबू “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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