वे पहले बंगला पकड़े थे,फिर टोंटी पकड़ ली।बंगलाविहीन तो हुए पर टोंटी हाथ लग गई।भागे भूत की लँगोटी भली।कभी उनके दोनों हाथों में लड्डू थे,आज टोंटी है।इस पर विरोधी उखड़ गए।गड़े मुर्दे उखाड़ने लगे।वे चाहते हैं जैसे उन्होंने कुर्सी छोड़ी,बंगला छोड़ा,अब टोंटी भी छोड़ दें।मगर वे विरोधियों के बहकावे में नहीं आना चाहते।टोंटी उनके समाजवाद का प्रतीक है।इसे उन्होंने स्वयं अर्जित किया है।यह टोंटी उनकी ‘मुँहलगी’ है।सत्ता को सत्तू के घोल की तरह पिया और समाजवाद को घोटा है।ऐसी चमत्कारिक टोंटी को वे अपने से विलग कैसे कर सकते हैं ?
विरोधियों को भी शायद इस बात की भनक लग गई है कि सत्ता का मुख्य स्रोत टोंटी ही है।अगर वही उखड़ गई तो इनकी प्यास कैसे बुझेगी ! पहले राजा की जान तोते में होती थी,अब टोंटी में है।इसीलिए इस पर हल्ला मचा हुआ है।जिन पर इसे उखाड़ने का इल्ज़ाम है,वे ख़ुद उखड़ चुके हैं।उनके समर्थक भी नहीं मान रहे कि वे अब कुछ उखाड़ सकते हैं।फिर यह तोहमत कैसी ! वे समाजवाद के सच्चे पुजारी हैं।अगर ऐसा न होता तो वे समूचा जलाशय उठा लाते, निरीह टोंटी नहीं।लोकतंत्र में एक तरफ़ से समाजवाद डालो,दूसरी तरफ़ से सत्ता निकलती है।इसीलिए वे टोंटी लिए घूम रहे हैं।वह छूटी तो न सत्ता मिलेगी,न समाजवाद बचेगा।नादान विपक्ष चाहता है कि टोंटी में भी समाजवाद न बचे।वह पहले राज्य से गया,फिर बंगले से।ऐसे में ख़ुशहाली कब तक रूकती ! वो तो समाजवाद की चेरी है,अनुचरी है।उसी के पीछे-पीछे जाएगी।वे इसीलिए समाजवाद को सबसे बचाकर टोंटी में लिए घूम रहे हैं।विपक्ष का यही रवैया रहा तो उसे अपने टेंट में बाँध लेंगे।फिर ढूँढ़ते रहना समाजवाद को किताबों में।
रही बात बंगले की, वह स्वयं उनके बिछोह में उजड़ गया।इस बात का ग़म उनको भी है।वे तभी से उखड़े हुए हैं।जब तक बंगले के अंदर थे,समाजवाद की तबियत ठीक थी।उसे खुली हवा में साँस लेने की आदत नहीं है।बाहर आने से समाजवाद छुट्टा हो जाता है।वह राज्य भर में पसर सकता है।इससे पारिवारिक संभावनाओं को विस्तार नहीं मिलता।यह विरोधियों की ‘कुटिल’ चाल है।वे यही चाहते हैं।विरोधियों को टोंटी-तोड़ जवाब देने के लिए देर से ही सही,वे सबके सामने आए।उनके पक्ष में बंगला भी गवाही देने को तैयार है पर विपक्ष है कि रोटी के बजाय टोंटी की रट लगाए हुए है।यह ज़्यादती है।उनके रहते जब सड़कें उखड़ीं,घर-बार उजड़े,दंगे भड़के तब किसी ने सवाल नहीं खड़ा किया।वे समाजवाद का बैनर टाँगे खड़े रहे।अब जब उनके पाँव उखड़ रहे हैं, उनके विरोधी फ़र्श उखड़ने पर चिंता जता रहे हैं।यह घोर ज़्यादती है।
इस हो-हल्ले के बीच हमें सारे झगड़े की जड़ टोंटी से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।वह इस प्रकरण से बेहद ख़ुश नज़र आई।हमने उसका पक्ष जानना चाहा तो वह चहक उठी।कहने लगी,‘मेरा भौतिक जीवन तो धन्य हो गया।मेरे स्वामी ने मुझे जो राजकीय सम्मान दिलाया,वह कभी नहीं भूल सकती।उन पर यह आरोप सरासर ग़लत है कि मुझे बंगले से उखाड़ लाए।मैं तो बिरहाना रोड के एक कबाड़ी के यहाँ चुपचाप एक कोने में पड़ी थी।अचानक मुझे वहाँ से उठा लिया गया।फिर कुछ सभ्य लोगों ने राजधानी लाकर मुझे ख़ूब माँजा।मुझ पर निखार आते ही कैमरों के फ़्लैश चमके और इस तरह मेरी क़िस्मत भी।मैं दिन-दहाड़े बाथरूम से निकलकर प्रेस-रूम में आ गई।इस छोटे से जीवन में मुझ जैसों को और क्या चाहिए भला !’
उसकी बातें सुनकर हम भावुक हो गए।फिर भी भावनाओं को क़ाबू में करते हुए पूछ बैठे,‘मगर विरोधियों का आरोप है कि तुम्हारा दुरूपयोग हुआ है।तुमने अपने स्वामी को आवश्यकता से अधिक आपूर्ति की।इसके बाद भी उनकी प्यास नहीं बुझी और तुम्हें उखाड़ लाए ?’ यह सुनते ही टोंटी का गला भर आया।टपकते हुए बोली-यह पूरा सच नहीं है।मैं टंकी भरती हूँ तो खाली भी करती हूँ।मैं स्रोत नहीं बस भरने और खाली करने का ज़रिया हूँ।अब तक यही करती आई हूँ पर अब मैं राजकीय गुनाह की गवाही भी हूँ।यही अफ़सोस है।’
इसी बीच ‘वे’ आ गए।कहने लगे कि जो कुछ भी पूछना हो,उन्हीं से पूछें।टोंटी का काम बयान देना नहीं है।इनके पास बड़ी ज़िम्मेदारी है।अब जब समाजवाद हर जगह सूख चुका है,अब केवल यहीं से लीक होने की उम्मीद बची है।हमारी योजना है कि किसी तरह सत्ता की नदी के मुहाने पर यह टोंटी फ़िट हो जाए तो बिना किसी ‘चैलेंज’ के हमारी ‘फ़िटनेस’ आजीवन बनी रहे।विरोधियों के पेट में इसीलिए मरोड़ हो रही है।
उनके मुँह से ‘फ़िटनेस-चैलेंज’ की बात सुनकर हमारी माँसपेशियाँ भी धड़क उठीं।टोंटी को वहीं छोड़कर हमने जेब से चुनौटी निकाली और लोकतंत्र को फ़िट रखने की चुनौती देने बड़ी तेजी से स्टूडियो की ओर भागे।
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