बुधवार, 7 नवंबर 2018

आओ प्रकाश से अंधकार की ओर चलें।

भक्तजनो,आज तुम्हें हम एक ऐसी सीख देने जा रहे हैं,जिससे तुम्हारे जीवन में कल्याण ही कल्याण होगा।कल तक तुमने सुना और पढ़ा है कि हम सबको अंधकार से प्रकाश की ओर चलना चाहिए।सालों से यह तुम सब कर ही रहे हो पर प्रकाश ने तुम्हें दिया कुछ ? यह इसलिए नहीं हुआ क्योंकि अब तक तुम्हारा ‘दिया’ ग़लत जगह टिमटिमा रहा था।तुम प्रकाश के ही पक्ष में खड़े थे,अंधेरे की तरफ़ गए ही नहीं।सच तो यह है कि अँधेरा ही हमारा स्वाभाविक साथी है।हम उजाले से हमेशा विमुख रहे हैं।फिर वह हमारा सहचर कैसे हो सकता है ?अँधेरा सदा से हमारे अनुकूल रहा है।वह हमारा अस्तित्व है।कठिन घड़ी में अंधेरे ने ही हमें उबारा है।इसीलिए जीवन का वास्तविक दर्शन हमें ड्रॉइंगरूम के बजाय ‘डार्करूम’ में प्राप्त होता है।निजी अनुभव के नाते हम तुम सबसे अँधेरे को आजीवन अपनाने का आह्वान करते हैं।

प्रियजनो,बाहर ‘प्रकाश-पर्व’ का बड़ा शोर है।पर यह कितने लोग जानते हैं कि अंधकार के असीम बलिदान के बाद ही यह अवसर आता है।उजाला झूठा और नश्वर है जबकि अँधेरा सच्चा और शाश्वत।प्रकाश की एक समय-सीमा है जबकि अंधकार असीमित।अंधेरे के लक्षण हर युग में मिलते हैं पर कलियुग में अंधकार सर्वाधिक शक्तिशाली है।अंधकार की ही सत्ता है।प्रकाश को तो कृत्रिम रूप से गढ़ा जा सकता है पर अंधकार को नहीं।वह वास्तविक रूप में सर्वत्र उपस्थित है।

भद्रजनो,अब हम इस बात पर ‘प्रकाश’ डालेंगे कि अंधकार की इतनी महत्ता क्यों है ?प्रकाश का वर्ण निरा सफ़ेद है,जबकि अंधकार का निपट काला।सफ़ेद हमेशा दाग़ और धब्बों से डरा-डरा रहता है जबकि काला हमेशा बिंदास।एक छोटा-सा भी दाग़ उजाले को मलिन कर देता है लेकिन पूरी की पूरी कड़ाही काले का बाल भी बाँका नहीं कर सकती।धन के रूप में हो या मन के,काला सदैव गतिमान बना रहता है।उसकी तंदुरुस्ती का राज भी यही है।वह देश में हो या परदेस में,उसे कभी खाँसी-ज़ुकाम तक नहीं होता।दूसरी ओर सफ़ेद हमेशा अपना बचाव करता रहता है।एक हल्की सी छींट भी उसकी सेहत ख़राब कर देती है।रंग काला हो तो होली या दीवाली भी उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाती।इन त्योहारों में वह और निखरता और बिखरता है।यहाँ तक कि सफ़ेदी की महिमा भी काले रंग की वजह से ही बची हुई है।

स्वजनो,सफ़ेदी ने कोई कारनामा किया है,क्या कभी ऐसा सुना है? नहीं,कभी नहीं।कारनामा हमेशा काला होता है।अख़बार के पन्ने इससे भरे होते हैं।काले रंग का क्रेज़ है ही इतना।अभी थोड़े दिनों पहले एक भद्र व्यक्ति ने अपने सफ़ेद घोड़े को काला करके ऊँची क़ीमत में बेच दिया।उसे कालिमा का महत्व बख़ूबी पता था।पता तो ख़रीदार को भी था,इसीलिए उसने इसके लिए मोटी रक़म अदा की थी।घोड़ा बेचने वाले ने काली कमाई कर ली,पर ख़रीदार के हाथ काला घोड़ा भी न आया।यह इस बात का सबक़ है कि जब किसी पशु की क़ीमत कालिमा ओढ़ने से बढ़ सकती है तो फिर हमारी क्यों नहीं ! इधर हम अपने वास्तविक मूल्य को पहचान नहीं पा रहे हैं,उधर समझदार लोग कालेधन की समूची ढेरी तक पचाए जा रहे हैं।इसलिए जितनी जल्दी हो सके,हमें कालिमा का आलिंगन कर लेना चाहिए।इससे हमारा हाज़मा बेहतर होगा।

कालकूट-प्रेमियो,बरसों पहले ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ का जो पाठ हमने तुम्हें पढ़ाया था,अब उसके पुनर्पाठ की ज़रूरत है।यह हमारा भ्रम था कि हम तम से प्रकाश की ओर भाग रहे थे।दरअसल,यहाँ तम के बाद एक पॉज अर्थात रुकावट है,जिसे हम नहीं समझ पाए।नए संस्करण में यह ‘तमसो,मा ज्योतिर्गमय’ हो गया है,जिसका भावार्थ है कि अंधकार की ओर अग्रसर हों,प्रकाश की ओर क़तई नहीं।यह नया पाठ ही हमें और तुम्हें इस अंधकार-युक्त जगत में प्रतिष्ठा दिलाएगा।हमें पूर्ण विश्वास है कि काले धन और काले मन के प्रभावशाली उपकरणों की सहायता से प्रकाश को हम छिपने तक की जगह नहीं देंगे।’अँधेरा क़ायम रहे’ आज से यही हमारा उद्घोष होगा।

प्रवचनों की अंतिम कड़ी में हम कुछ नुस्ख़े बताने जा रहे हैं,जिससे तुम्हें अँधेरे के आग़ोश में रहने में सहूलियत होगी।तुम सब ‘प्रकाश-पर्व’ में बढ़-चढ़कर हिस्सा लो,पर मन के अँधेरे पर तनिक भी आँच न आने देना।ध्यान रहे,सफ़ाई और सद्भाव हमारे चिरंतन शत्रु हैं सो इनसे निपटने के लिए पटाखे और पराली का माक़ूल इंतज़ाम हो।‘ग्रीन’ पटाखे  सेकुलर विस्फोट से फटेंगे तो उनकी मारक क्षमता और बढ़ जाएगी।हमें पूरे ज़ोर-शोर से अंदर और बाहर अँधेरे का साम्राज्य स्थापित करना है।इसके इतर भी हमें प्रयास करने होंगे।आर्थिक हवाला और राजनैतिक निवाला के साथ मिलकर हम यह आसानी से कर सकते हैं।जब हम इस अँधेरे कक्ष से बाहर निकलेंगे तो सुनिश्चित करेंगे कि प्रकाश की देखरेख में हम अपना मिशन पूरा करें।आओ,हम सब बड़े अँधेरे की ओर प्रस्थान करें।

©संतोष त्रिवेदी

5 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

दीपपर्व की मंगलकामनाएं। हम तो कब से खड़े हैं आप भी आ जाईये अंधकार की ओर :)

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

नमस्ते,

आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 8 नवम्बर 2018 को प्रकाशनार्थ 1210 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।

प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।

Digvijay Agrawal ने कहा…

वआआह...
नयी मीसांसा..
सादर...

मन की वीणा ने कहा…

वाह बहुत खूब बदलती मान्यता!!

संजय भास्‍कर ने कहा…

ढेरों शुभकामनायें ...

मशहूर न होने के फ़ायदे

यहाँ हर कोई मशहूर होना चाहता है।मशहूरी का अपना आकर्षण है।समय बदलने के साथ मशहूर होने के तरीकों में ज़बरदस्त बदलाव हुए ...