चिट्ठी लिखी गई पर पराली वाला मौसम देखकर शरमा गई।सरकार बिलकुल बनते-बनते रह गई।सबसे बड़ी तकलीफ़देह बात तो यह रही कि लड्डुओं ने पेट में पचने से ही इंकार कर दिया।खाने के बाद पता चला कि वे ग़लत पेट में चले गए।अब समस्या सरकार बनाने से ज़्यादा लड्डुओं को पचाने की हो गई।वे उछल-कूद मचाने लगे।ऐसे में नए साथी हाज़मे की नई-नई तरकीबें सुझाने लगे।राजनीति के जानकारों ने बयान दिया कि अगर मौसम में छाई धुंध को सम-विषम मिलकर साफ़ कर सकते हैं तो सरकार बनाने की धुंध क्यों नहीं साफ़ की जा सकती ! सत्ता के लिए यदि सम विषम बन सकता है तो विषम सम क्यों नहीं ! फिर नए दोस्तों को पुराने दाग़ धोने का लंबा अनुभव है।ताज़ा-ताज़ा लड्डू खाने वालों ने तो केवल कुर्सी के लिए पुरानी दोस्ती का ‘त्याग’ किया है।जब ‘उनके’ साथ थे तो भी कुर्सी के लिए थे।इसलिए इन्होंने कुछ अजूबा नहीं किया।वैसे भी जो दोस्ती आज के ज़माने में उत्पादक न हो,उसे बनाए रखने में नुक़सान ही होता है।राजनीति में जिसे मौसम और मौक़े की समझ न हो,सत्ता क्या मित्रता तक उसे गले नहीं लगाती।आख़िरकार राज्य के ‘व्यापक हित’ को देखते हुए ‘नई दोस्ती’ में न्यूनतम सहमति यह बनी कि ‘जिसकी जितनी संख्या भारी,उसकी उतनी हिस्सेदारी।’ इस तरह हिस्सेदारी में वे नंबर एक,नंबर दो और नंबर तीन होने पर सहमत हुए।लंबे मंथन के बाद सिद्धांत और नैतिकता को ‘फेंट’ करके ‘न्यूनतम साझा कार्यक्रम’ का विलयन बना,जिसे कभी भी राज्य-हित में उड़ेला जा सकता है।फ़िलहाल,आपसी ‘सौदे’ सॉरी मसौदे का एक ‘अविश्वसनीय’ फ़ुटेज हमारे हाथ लगा है।‘जनहित’ में हम उसे यहाँ लीक कर रहे हैं :
नंबर एक ने बड़ी और पायेदार कुर्सी की ओर उँगली करते हुए कहा, ‘हम इस पर कोई समझौता नहीं कर सकते।रात की बात छोड़िए,दिन में भी दस बार हम इसी का सपना देखते हैं।हमारी ओर से न्यूनतम कार्यक्रम यही है कि सरकार की बागडोर हमारे हाथ में हो।इसके लिए हमने टनों लड्डू उदरस्थ कर लिए हैं।कृपया उनकी ख़ातिर,हमारी सेहत की ख़ातिर यह मसौदा मान लें।’ सत्ता से ऐसा भावनात्मक जुड़ाव जानकर नंबर दो ने सहानुभूतिपूर्वक सुझाया, ‘दरअसल हम चाहते हैं कि तुम हमारे साथ भी वही ‘फ़िफ़्टी-फ़िफ़्टी’ खेलो।आख़िर अपने पुराने साथी के साथ तो तुम इसके लिए तैयार ही थे।हम नए भी हैं और तुम्हारे हितैषी भी।इससे यह भी साबित होगा कि तुम हमें उतना ही प्यार करते हो,जितना सत्ता से।’
दोनों नए साथियों की ओर गौर से देखते हुए नंबर एक ने अपना दावा जारी रखा, ‘देखिए,राज्य के लोग चाहते हैं कि हमारे नेतृत्व में ‘सत्यवचनी सरकार’ बने।हम अगले पाँच नहीं पचीस साल तक यह ज़िम्मेदारी लेने को तैयार हैं। ‘न्यूनतम साझा कार्यक्रम’ में सत्ता के अलावा हम सब कुछ न्यूनतम करने का संकल्प लेते हैं।सिद्धांत और नैतिकता जैसी बाधाओं को हम पहले ही पार कर चुके हैं।हमारे मन में ‘पुराना प्यार’ उमड़े,इसके पहले ही इस लोकतंत्र का कुछ कर डालो।’
लोकतंत्र का नाम सुनते ही नंबर तीन को थोड़ा कसमसाहट हुई।पहलू बदलते हुए उसने अपनी बात रखी, ‘लोकतंत्र के प्रति चिंतित होकर ही हम साथ आए हैं।वरना तुम्हारे साथ खड़े होने में भी हमें परेशानी है,पर क्या करें ! होटलों में लंबे समय तक हम किसी जनसेवक को बाँधकर नहीं रख सकते।वे सभी जनसेवा के लिए मचल रहे हैं।इसलिए हम चाहते हैं कि हमें सेवा का उचित हिस्सा मिले।साथ ही तुम थोड़ा ‘हिंदुत्व’ हल्का करो,हम थोड़ा ‘सेकुलरिज़्म’ ऐडजस्ट करेंगे।इससे हमारे सेकुलर चेहरे पर थोड़ी खरोंच तो आएगी पर सत्ता सारे घाव भर देती है।यह हम बेहतर समझते हैं।हमारी ओर से यही न्यूनतम है।रही बात अधिकतम की,वो ‘नंबर दो’ देखेंगे।उनकी ‘बारगेनिंग पॉवर’ ज़बर्दस्त है।वो चाहें तो टेस्ट खेलें या फ़िफ़्टी-फ़िफ़्टी।इस बुरे समय में हम तो ‘ट्वेंटी-ट्वेंटी’ में भी ख़ुश हैं।’
सबकी नज़रें अब ‘नंबर दो’ पर टिक गईं।घड़ी की टिक-टिक के साथ ‘नंबर एक’ की धड़कनें भी बढ़ रही थीं।तभी नंबर दो ने अंतिम समाधान देते हुए कहा, ‘अभी इसमें कुछ ‘मिसिंग’ है।अपन इस ‘घोल’ में थोड़ा किसान,थोड़ा नौजवान भी मिक्स करते हैं।फिर भी कुछ कमी है तो वह नंबर तीन बताएँगे।’
‘हाँ,मुझे अभी याद आया कि जो भी मलाईदार विभाग हैं,उनका बँटवारा सेहत के हिसाब से हो।ऐसा न हो कि जिन्होंने कभी मलाई नहीं चखी,उनको ज़्यादा मिल जाए।इससे उनकी सेहत बिगड़ सकती है।और हाँ,हमारी युति के बारे में एक ज़रूरी बात।हमारे पास अब नंबर एक का ‘हिंदुत्व’,नंबर दो का ‘राष्ट्रवाद’ और तीसरे नंबर की ‘धर्मनिरपेक्षता’ है। यह सब मिलकर एक ‘डेडली कंबिनेशन’ बनेगा।हम समय-समय पर इसमें संशोधन भी करते रहेंगे,ताकि राज्य का कल्याण हो सके।’
इतना सुनते ही नंबर एक ने राहत भरी साँस ली, ‘फिर शपथ कब ग्रहण करें ?’ इस उत्साह पर नंबर दो ने पानी फेरते हुए कहा, ‘अभी केवल ‘कॉमन मिनिमम प्रोग्राम’ बना है,सरकार नहीं।वह तभी बनेगी जब हमें निमंत्रण मिलेगा।’
इसके बाद का फ़ुटेज हमें मिलता तब तक ख़बर आई कि पराली वाला धुआँ अभी छँटा नहीं है और सरकार बनाने के लिए ‘असली’ नंबर एक ने अपना दावा नहीं छोड़ा है।उनका कहना है कि ‘प्रोग्राम’ किसी का बने,सरकार वही बनाएँगे।
संतोष त्रिवेदी
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