बीते दिनों हमारे पड़ोसी देश में अचानक लोकतंत्र का क़ब्ज़ा हो गया।लोग कुछ समझ पाते,इससे पहले ही ‘दुनिया का चौधरी’ इसका इंतज़ाम करके निकल लिया।असल लोकतंत्र से टकराने की उसकी भी हिम्मत नहीं हुई।जो लोग कुर्सियों पर बैठे थे,उन्होंने सत्ता का तनिक भी मोह नहीं किया।बचा-खुचा माल-असबाब लेकर वे भी खिसक लिए।वहाँ के लोग अब पूरी तरह बम और बंदूक़ के हवाले हैं।जानकार बताते हैं कि बाज़ार में लोकतंत्र का यह नया संस्करण आया है।इस तंत्र की खूबी यह है कि जो करना होता है,उसके लिए क़ानून,संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार जैसी बेजान संस्थाओं का मुँह नहीं ताकना पड़ता।
पड़ोसी देश में जो कुछ भी ‘घट’ रहा है,उसमें अभी तक आम राय नहीं बन पाई है।एक तरफ़ नापाक-पड़ोसी के लिए ‘ग़ुलामी की ज़ंजीरें’ टूटी हैं तो दूसरी तरफ़ ‘सबसे बड़े लोकतंत्र’ की चुप्पी नहीं टूट रही है।शायद उसने भी वहाँ आए हुए ‘लोकतंत्र’ को दूरबीन से देख लिया है।दुनिया भर में वायरस फैलाने वाला सबसे अधिक सक्रिय है।सुनते हैं,उसके फैलने के लिए वहाँ माकूल माहौल है।आतंकवाद और साम्राज्यवाद अब दोनों हिल-मिलकर रहेंगे।
सबसे भले तो वे है जिनकी इस बारे में अब तक कोई राय ही नहीं बनी है।वे महिलाओं,बच्चों और बूढ़ों पर हो रहे जुल्म की कहानियों को अभी भी तौल रहे हैं।सही परख होते ही उनके भी उच्च-विचार सामने आएँगे। हाँ,बुद्धिजीवियों ने हमेशा की तरह निराश नहीं किया है।उसके दोनों धड़ों ने अपनी बहुमूल्य राय पेश कर दी है।जहाँ ग़ैर-बुद्धिजीवी पड़ोसी देश में ‘लोकतंत्र की दस्तक’ को आतंकी कह रहे हैं,वहीं विशुद्ध-बुद्धिजीवियों के लिए वे ‘लड़ाका’ हैं।इनके तईं वे लोकतंत्र को ‘सरिया’ देने वाले आधुनिक क्रांतिकारी हैं।कुछ ने तो अपनी बंद आँखों में कश्मीर के भी सपने पाल लिए हैं।वे इसे साँप पालने जैसा मामूली काम समझ रहे हैं।नापाक-पड़ोसी बहुत दिनों बाद उम्मीद से है।इंशाल्लाह इस बार पूरी दुनिया मज़हबी हुकूमत का दीदार कर पाएगी।
इस कशमकश के बीच असल बात को पकड़ने के इरादे से हमने इस उदारवादी और लोकतंत्र समर्थक तालिबान भाईजान से संपर्क किया।मुलाक़ात के लिए किसी बंकर में मिलने की बात की तो उधर से हमें तसल्ली मिली और यह ख़बर भी कि अब चूँकि वे ‘लोकतंतर’ ले आए हैं,इसलिए बेकार पड़े बंकरों में मिलने की ज़रूरत नहीं है।अब जो भी होगा,सरे-आम होगा।आख़िर तय समय पर एक बख़्तरबंद गाड़ी में बैठकर हम उसके ठिकाने पर पहुँचे।चारों तरफ़ संगीनें तनी हुई थीं।जब इसका कारण पूछा तो पता चला कि जब बातचीत संगीन हो तो यह इंतज़ाम करना पड़ता है।वह इतना उदार था कि इंटरव्यू देते वक्त उसने बंदूक़ के ट्रिगर को बड़ी सावधानी से संभाल रखा था क्योंकि गोली चल जाने पर खामखां एक इंटरव्यू हलाक हो जाता।
सबसे पहले मेरी आँखों पर पट्टी बाँध दी गई।इस तरह का तजुर्बा होने से हमें ख़ास तकलीफ़ नहीं हुई।लोकतंत्र को इज़्ज़त बख्शने के इरादे से मेरा मुँह खुला छोड़ दिया गया।इसका फ़ौरी फ़ायदा यह हुआ कि तालिबान भाईजान से मेरी गुफ़्तगू शुरू हो सकी।
‘इस माहौल में आपको कैसा लग रहा है ? आपको ख़ुदा का ख़ौफ़ भी नहीं रहा अब ?’ मैंने ऊपर वाले का नाम लेकर अपनी ज़ुबान चला दी।‘यह निहायत बेहूदा सवाल है।हम जो भी कर रहे हैं,उसी के नाम पर तो कर रहे हैं।उसी की दिखाई राह पर चल भी रहे हैं।अल्लाहताला ने चाहा तो हम इस दुनिया से काफ़िरों का नामोनिशां मिटा देंगे।हम अपनी क़ौम के हक़ के लिए लड़ रहे हैं।’ भाईजान ने बेख़ौफ़ होते हुए जवाब दिया।
‘जिन औरतों,बच्चों और बूढ़ों को आप मार रहे हैं,ये तो आपकी क़ौम के ही लोग हैं।किनके हक़ के लिए आप बारूद बो रहे हैं ?क्या अल्लाह ने ये सब करने के लिए कहा है ?’ मैंने जल्दबाज़ी में अटपटा-सा सवाल पूछ लिया।इतना सुनते ही भाईजान के हाथ में लहराती बंदूक़ का बदन मेरी खोपड़ी से सटने को आतुर हो उठा।मेरी रूह तक सनसना गई।लगा कि जन्नत का रास्ता ज़्यादा दूर नहीं है।पर तभी भाईजान ने दिलासा दी,‘डरिए मत।हम पवित्र किताब पढ़कर ही गोली मारते हैं।इससे मरने वाले को जन्नत जाने में सहूलियत होती है।गोली मारना हो या सरकार बनाना हो,हम नमाज़ अदा करके ही हर काम अंजाम देते हैं।इससे अल्लाह की ग़वाही भी हो जाती है।रही बात,अपने क़ौम के लोगों को मारने की,ऐसे लोग जो हमारी राह में नहीं चलते,वे काफिर हैं।और काफिर को मारना गुनाह नहीं,नेक काम है।हम मज़हबी लोग हैं,कुछ ग़लत नहीं करते।’
‘पर इससे आपका मज़हब बदनाम नहीं होता ? आपको अल्लाह के नुमाइंदे किसने बना दिया ?’ मैंने कलेजा थामकर उसी बंदूक़ की ओर सवाल उछाला।
‘लगता है आप भी काफिरों की जमात में शामिल हो गए हैं।आपकी तालीम अधूरी है।हमारी लड़ाई ‘दीन’ के लिए है।हमने पढ़ रखा है ‘शूरा’ सो पहचानिए,जो लड़े ‘दीन’ के हेत।हम ‘शूरा’ हैं और सिर्फ़ ‘दीन’ के लिए लड़ते हैं।’ यह कहकर भाईजान ने इस मुलाक़ात के ख़त्म होने का ऐलान कर दिया।
मेरी जान सिर्फ़ इसलिए बख्श दी गई ताकि हम उनके ‘दीन’ को दुनिया के सामने ला सकें वरना एक काफ़िर की ज़िंदगी किस काम की ?
2 टिप्पणियां:
बीते दिनों हमारे पड़ोसी देश में अचानक लोकतंत्र का क़ब्ज़ा हो गया।
शुरुआत ही खतरनाक है |
🙏
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