बजट का दिन था।सुबह से ही पेट में अफ़रा मचा था।‘कर्तव्य-पथ’ की झाँकी देखने के बाद हमारा यह दूसरा कर्तव्य था,जब हम बुद्धू-बक्से पर आँखें गड़ाए बैठे थे।साथ में भरोसे दद्दू भी थे।वे बार-बार उचक रहे थे।हमसे ज़्यादा उन्हें इस मौक़े का इंतज़ार था।आख़िरकार सरकार जी ने अपनी पिटारी खोली।काफ़ी देर तक बड़ी गंभीर किसिम की बातें होती रहीं,जो हमारे भेजे में जाने को तैयार ही नहीं थीं।हमें तब भी भरोसा था कि गंभीर-मंथन से कुछ न कुछ तो निकलेगा ही।बजट आने से दो दिन पहले ही सरकार ने स्वयं हलवा चखा था।उसी हलवे का मज़ा अब हमें भी चखाएगी।यह सोच ही रहा था कि अचानक सत्ता-पक्ष की ओर से ज़ोर-ज़ोर से तालियाँ पीटी जाने लगीं।तभी सरकार जी ने फट्ट से घोषणा कर दी कि हम ‘अमृत-काल’ में प्रवेश कर चुके हैं और यह ‘अमृत-काल’ का पहला बजट है।यह सुनकर हमारे साथ बैठे भरोसे दद्दू का बचा-खुचा भरोसा भी उठ गया,जो यह समझे बैठे थे कि ‘निर्मम’ सरकार का यह आख़िरी बजट है।इसी इंतज़ार में उन्होंने बहुत सारा ‘विष-पान’ किया है।‘अमृत-काल’ में वह चरस कैसे बोएँगे,अब यह बड़ी चिंता थी।
मेरी चिंता दूसरी थी।सारे कर देने के बाद भी जो आय बचेगी,उसका हम करेंगे क्या ? सरकार को इतनी भी छूट नहीं देनी चाहिए कि कर्मचारी अपनी आय से प्यार करना ही बंद कर दे।बहरहाल,हमने अपनी चिंता को परे धकेला और दद्दू की चिंता पर सवार हो गए, ‘आप तनिक भी मत घबराओ।विष-वर्षा का समय गया।अब केवल अमृत बरसेगा।हमने तो पहले ही आपसे कहा था कि यह सरकार बड़ी कारसाज है।कुछ बड़ा करेगी।इतने सालों में जो हुआ,अच्छा हुआ।देख लीजियेगा,इस अमृत-काल में मँहगाई और बेरोज़गारी को सिर छुपाने की जगह भी नहीं मिलेगी।अब आप जो भी ‘विष-वमन’ करेंगे,वह अमृत हो जाएगा।’ हम दद्दू की हौसला-अफ़ज़ाई कर ही रहे थे कि विपक्षी-ख़ेमे की तरफ़ से सदन में हो-हल्ला शुरू हो गया।यह देखकर भरोसे दद्दू के प्राणों में नव-संचार हो गया।उन्हें लगा कि उनके ‘विषाधिकार’ पर कोई तो है,जो आवाज़ उठा रहा है।इधर हमें हलवे का स्वाद कसैला लगने लगा।हम भारी असमंजस में थे।दद्दू इधर-उधर टहलने लगे।सुकून उन्हें भी नहीं मिल रहा था।हम चैनल-चैनल भटकने लगे।कहीं भी आत्मा को शांति नहीं मिल रही थी।अचानक एक चैनल पर हम दोनों की निगाह बर्फ़ की तरह जम गई।
ग़ज़ब दृश्य था।आसमान में एक मचान बँधा हुआ था।चार चैनल-चंचलाएँ चर्चा को शिखर पर ले जाने को बेताब थीं।तीन विशेषज्ञ कमर में बजट को पेटी की तरह बाँधे हुए दिख रहे थे।दस कैमरे ज़मीन पर और पंद्रह मचान पर तैनात थे।चैनल का दावा था कि उसकी सतर्क निग़ाह से अब कुछ नहीं बचेगा।बजट की क्या मजाल जो उससे रत्ती भर भी बच जाए ! उनका चैनल हवा में बातें ही नहीं करता,देखता भी है।हवा से ही उनकी टीम ज़मीनी सचाई परख लेगी।हमारी नज़रें उसी चैनल पर टिकी रहीं।बहुत बाद में यह मालूम हुआ कि हम देख भी रहे हैं !
एक समाचार-सुंदरी ने हमारा बजट-बोध कराते हुए कहा, ‘अमृत-काल’ में पेश किया गया यह ऐतिहासिक बजट है।इसकी चर्चा के लिए हमारे पास अलग-अलग दृष्टि रखने वाले विशेषज्ञों का पैनल है।जो सबसे बाईं ओर बैठे हैं,उनके पास ‘विकट-दृष्टि’ है।इन्हें अपने आसपास विकट के सिवा कुछ नहीं दिखता।जो सज्जन बीच में विराजमान हैं,उनके पास ‘गिद्ध-दृष्टि’ है।इनकी विशेषता है कि इन्हें बहुत दूर का दिखता है,पास का बिलकुल नहीं।और आख़िर में दाईं ओर जो महामना तनकर बैठे हैं,उन्हें ‘दिव्य-दृष्टि’ प्राप्त है।इनकी ख़ासियत है कि इन्हें वह भी दिखता है,जो होता ही नहीं।यह जो दिखाते हैं,लोग वही देखने लगते हैं।कुछ मूढ़ इसे चमत्कार कहते हैं पर यह इनकी योग-साधना है।
दूसरी चैनल-कन्या ने विमर्श को आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘मेरा पहला प्रश्न विकट-दृष्टि जी से है।इस बजट को आप कैसे देखते हैं ?’ उन्होंने उँगली उठाते हुए कहा, ‘मैं इन लोगों से शुरू से ही कह रहा हूँ,पर इन्हें कुछ नहीं दिखता।यह बजट गरीब-विरोधी है।अगर सरकारी दावे के हिसाब से ग़रीबी दूर होगी तो बताओ,गरीब कहाँ जाएगा ? इसलिए यह बजट भी इनके वादों की तरह झूठा है।’
‘और आपकी इस पर क्या राय है ? आप ‘अमृत-काल’ के आगमन पर क्या सोचते हैं ?’ चैनल-चंचला ने ‘गिद्ध-दृष्टि’ वाले सज्जन की ओर ताकते हुए पूछा।‘मुझे तो पिछले आठ सालों से दिख रहा है।चुनाव आता है।सरकार आती है।बजट आता है।इसमें नया क्या है ? रही बात ‘अमृत-काल’ की,तो यह सरकार की साज़िश है।वह इसी बहाने अमृत पीकर अमर होना चाहती है।मैं तो देख रहा हूँ कि आगे चुनाव ही नहीं होंगे।’
यह सुनते ही ‘दिव्य-दृष्टि’ वाले सज्जन एकदम से उखड़ गए।मचान का एक पाया उखाड़कर वे कहने लगे,‘यह राष्ट्र-बजट का घोर अपमान है।कोरोना-काल के बावजूद सरकार अमृत-काल खींच लाई है,यह कम उपलब्धि है ?’ यह सुनते ही बाक़ी दोनों सज्जन पेटी खोलकर खड़े हो गए।इससे विमर्श में संतुलन बिगड़ गया।पूरा चैनल ज़मीन पर आ गिरा।मचान टूट गया पर बजट का तिलिस्म नहीं टूटा।ग़नीमत रही कि किसी की हड्डी नहीं टूटी।दद्दू बोले, ‘यह अवश्य ही अमृत-काल का प्रताप है।’
बाद में अख़बार में पढ़ा कि अमृत-काल के पहले बजट को अब घर-घर जाकर समझाया जाएगा।
संतोष त्रिवेदी
1 टिप्पणी:
बढिया :)
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