रविवार, 8 जनवरी 2023

इस अँधेरे को हमारे पास रहने दो !

अँधेरे को लेकर कभी एक राय नहीं रही।ज़्यादातर लोग इसे अच्छा नहीं मानते या इससे डरते हैं।पर बहुत सारे लोग ऐसे भी हैं जिनको अँधेरे से ही मुहब्बत है।यह साहित्य और राजनीति दोनों जगह हिट है।जितना घना अँधेरा हो,कविता में उतनी ही अधिक उजास होती है।इसे प्रतीक मानकर जाने कितना साहित्य रचा जा चुका है।इसके बाद भी इसके गुणों का बख़ान पूरा नहीं हो पाया।आज भी कई कवि इसी अँधेरे को बेचकर ख़ुद के लिए उजाले का इंतज़ाम कर लेते हैं।अँधेरे पर लिखी गई कविता एक साथ कई निशाने साधती है,इसलिए कवियों की पहली पसंद अँधेरा ही है।वे कभी नहीं चाहते कि इसका अस्तित्व समाप्त हो।एक प्रमुख कवि ने तो अँधेरे पर सबसे लंबी कविता लिखी थी।शायद उनको बोध हो गया था कि उनकी मुक्ति अँधेरे से ही होगी।


काव्य में अँधेरे की ऐसी घुसपैठ के चलते मेरी धारणा इसके प्रति औरों से अलग रही।मैंने इसे कभी नकारात्मक रूप से नहीं लिया।मेरे जीवन में जब भी घना अँधेरा छाया,मैं चिंतामुक्त हो गया।उजास को मजबूरन मेरा दामन पकड़ना पड़ा।इसलिए मेरे लिए तम की काली छाया हमेशा आशावाद की सूचक रही।जब तक मैं उजाले में रहा,डर में रहा,अँधेरे का अवसाद रहा।इस तरह मैंने जाना कि मेरी सहज और स्वाभाविक स्थिति अँधेरा ही है।इसलिए साहित्य में मैंने हमेशा अँधेरा फैलाया।जिस काम के लिए मुझे प्रशंसा मिलनी चाहिए,उसके लिए कुबुद्धिजीवियों ने मुझे लानत भेजी।फिर भी मैं अपने पक्ष पर दृढ़ता से डटा रहा।कम से कम यह इस बात का प्रमाण है कि मैं उच्चकोटि का विचारक और बुद्धिजीवी तो हूँ ही।


साहित्य के माध्यम से समय-समय परअँधेरे से उजाले की ओरका आह्वान यूँ ही नहीं किया गया।अधिकतर लोग इसे उजाले की प्रतिष्ठा के रूप में देखते हैं पर वे इसके पीछे के रहस्य को अनदेखा कर जाते हैं।सीधा मतलब है कि उजाले में आने के लिए पहले अँधेरा पैदा करना ज़रूरी है।इसलिए हमें उन तमाम लोगों का आभारी होना चाहिए जिनकेसद्प्रयासोंसे साहित्य,राजनीति,धर्म,कला सहित समाज के सभी क्षेत्रों तक अँधेरे का समुचित प्रसार हो सका।प्राचीन काल सेतमसो मा ज्योतिर्गमयका पाठ भी इसकी तस्दीक़ करता है कि प्रकाश की ओर जाने का रास्ता अँधेरे से ही निकलता है।



राजनीति को भी साहित्य की तरह अँधेरा अधिक पसंद है।इसकी मुख्य वजह अँधेरे का काला होना है।कालेपन की ख़ासियत है कि इस पर कोई दाग नहीं लगा सकता।आज के समय में सफ़ेद होना सबसे ख़तरनाक है।पता नहीं,कब कोई उसकी सफ़ेदी को सरेआम काला कर दे।इसलिए अब राजनीति में वही लोग प्रवेश करते हैं,जिन्हेंसफ़ेदीसे एलर्जी होती है।वे राजनीति में बाय-डिफ़ॉल्ट काले और दाग़ी ही आते हैं।इससे भविष्य में उनके दाग़दार होने का अंदेशा भी नहीं रहता।राजनीति के लिए अँधेरा होना बेहद ज़रूरी है।लोगों की ज़िंदगी से इसी को मिटाने का बार-बार संकल्प लिया जाता है।इस चक्कर में ज़िंदगी मिट जाती है,पर अँधेरा बचा रहता है।इसके सहारे चुनाव जीते जाते हैं।रोशनी का सपना दिखाया जाता है।चुनाव संपन्न होते ही उजाला फटता है।लोगों की तकलीफ़ का प्रमुख कारण यही साबित होता है।लोग फिर से अपने अँधेरे को याद करते हैं और वह तुरत हाज़िर होता है,जैसे कहीं गया ही हो ! यह अजर-अमर है।सदियों से है,सदियों तक बना रहेगा।इसलिए सबका ध्येय वाक्य हैअँधेरा क़ायम रहे !’


बात अँधेरे की हो तो कालिमा या कालिख़ के बिना अधूरी रहेगी।जितनी ज़्यादा कालिख़ पुतती है,अँधेरे की गुंजाइश बढ़ जाती है।जितना उजला और झक सफ़ेद हो,उस पर उतनी ही कालिमा फबती है।काले कारनामे में एक-दो बार कालिख और पुत गई तो क्या फर्क पड़ता है ! कालिमा इसीलिए सहज होती है और मौलिक भी।उजले और धुले वस्त्र अंततः कालिख की गति को ही प्राप्त होते हैं जबकि कालिमा कभी भी धवल और उज्ज्वल नहीं हो सकती।सूरदास जी बहुत पहले ही यह कह गए हैं, ‘काली कामरी में चढ़े दूजो रंग।अँधेरे का काला रंग बाक़ी सभी रंगों को आत्मसात कर लेता है,इसीलिए इसकी महत्ता है।सब इसे ओढ़ना चाहते हैं।


समाज की सारी विशिष्ट कलाएं इसी की शरण में फलती-फूलती हैं।सबसे बड़ा समाजवाद अँधेरे का होता है।इसमें छोटे-बड़े का कोई भेद नहीं रहता।न किसी का सूट-बूट दिखता है यह कि कौन लंगोटी में है ! अँधेरा गरीब का पक्षधर है।उसके खाली पेट को ढाँपता है।अमीर को और समृद्ध होने की राह दिखाता है।काला इसीलिए सबका अभीष्ट है,फ़िर चाहे वह धन हो या मन।अँधेरे की जड़ में यही काला रंग है।इससे उपजी कालिख़ संभावनाओं के नये द्वार खोलती है।कालिख लगना कलियुग का प्रताप है।जिसे लग गई वह देश का भविष्य बन जाता है।इसलिए कालिख से नहीं उजाले से डरो।उजाला विकास का शत्रु है,भेदिया है।और भेदिये देशद्रोही होते हैं।


इसलिए जब भी अँधेरा छँटे,सतर्क हो जाओ।उजास दुःख देता है,सपने भी नहीं लेने देता।अँधेरा हो तो आदमी,कुछ नहीं,सपने तो देख ही सकता है,उम्मीद पाल सकता है,प्रतीक्षा करना सीख जाता है।अब इससे ज़्यादा अकेला अँधेरा इस आदमी के लिए और क्या कर सकता है !


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