६ फरवरी २०१३ को जनसंदेश मे |
DLA में १२/०२/२०१३ को |
बहुत दिनों बाद नुक्कड़ की तरफ जाना हुआ तो वहां की रंगत काफ़ी बदली-बदली नज़र आ रही थी। सारी दुकानों में रंग-रोगन हो रहा था,नाम-पट्टिकाएं बदली जा रही थीं। वहां जो दो मुख्य दुकानें थीं,सबसे ज़्यादा बदलाव इन्हीं पर तारी था। जहाँ एक दुकान के बोर्ड से नए मालिक के आने का संकेत मिल रहा था,वहीँ दूसरी दुकान ने अचानक अपना मालिक बदल दिया था। दुकानों के अन्दर ख़ास तबदीली तो नहीं दिख रही थी पर बाहर काफी रौनक थी। जिस दुकान के मालिक बदल गए थे,हम सबसे पहले वहीँ पहुँच गए।
नए मालिक कागज में कुछ लिख-लिखकर फाड़ रहे थे। हमने उनके बिलकुल पास पहुंचकर इस उलझन का रहस्य जानना चाहा। वे बोले,अगले साल इस इलाके का टेंडर उठना है और हमारी समस्या है कि हमारे पास इसमें बोली लगाने वाले कई लोग हैं। एक बोली तो लगातार ऊँची होती जा रही है,पर दूसरे लोग भी बीच में अपनी बोली प्रस्तुत कर देते हैं। हमें टेंडर मिलने का अभी पुख्ता भरोसा नहीं है,फिर भी इतनी भारी संख्या में आवेदक आ रहे हैं,इससे हमारी दुकान के टूट जाने का अंदेशा है। हमने कहा,क्यों नहीं आप खुल्लम-खुल्ला एक सर्कुलर जारी कर देते ताकि स्थिति स्पष्ट हो जाय। उन्होंने कहा ,यही तो असल समस्या है। ऐसा करने पर बाकी आवेदक अज्ञातवास में चले जायेंगे और फिर हम किसके नाम लिखेंगे और किसके फाड़ेंगे ?
तब तक हमने देखा कि पहली दुकान के आगे अचानक चहल-पहल बढ़ चुकी थी। हम उधर की ओर ही चल दिए। दुकान के मालिक ने पास में पड़े कबाड़ से एक पुतला निकाला और अपने कर्मचारियों को हिदायत दी कि इसे ठीक से झाड़-पोंछकर खड़ा करने लायक बना दिया जाय। हमारे देखते-ही देखते कई लोग उसको ठोंकने-पीटने लगे। किसी ने कीलें ठोंकी तो किसी ने कपड़ा बदला। थोड़ी देर में ही वे उसे टांगकर मालिक के पास लाए और उसे सौंपते हुए कहा,लीजिये,बस इसमें बैटरी लगा दीजिये और बाकी काम यह खुद कर लेगा। हमने इसे इस लायक तो बना ही दिया है कि अगले साल भी इस इलाके का टेंडर फिर से हमारे पास आ जाये।
हमने उनकी इस महत्वाकांक्षी परियोजना को नजदीक से देखने का प्रयास किया। इस पर झाड़-पोंछकर लाया गया पुतला स्वयं बोल पड़ा,’मैं अब असमर्थ नहीं हूँ,मुझमें कई तरह की खपीचें लगाकर खड़ा किया गया है। मुझे केवल दुकान के ग्राहकों की जांच-पड़ताल करनी है क्योंकि बेईमानी होने की गुंजाइश यहीं होती है। मैं किसी दुकानदार की देखरेख नहीं करूंगा,क्योंकि यही मेरे जन्म-दाता हैं।यह सबको राशन देते हैं और मुझे भी तो इन्हीं से ऊर्जा मिलेगी। मैं वादा करता हूँ कि चाहे मैं किसी के काम आऊँ या न आऊं पर अगला टेंडर तो मेरे ही नाम से मिलेगा। मैं यह भी साफ़ कर रहा हूँ कि मेरी बैटरी मेरे मालिक के ही पास रहेगी,वह चाहे मुझे अपने दुकान के आगे पुतले की तरह खड़ा करे या उसके संभावित मालिक झुनझुना बनाकर खेलें।’
इसके बाद मालिक ने दुकान के आगे नया बोर्ड टांग दिया,जिस पर लिखा था,’यहाँ टीनोपाल और लोकपाल की विशेष व्यवस्था है।एक बार सेवा का अवसर अवश्य प्रदान करें !’
नए मालिक कागज में कुछ लिख-लिखकर फाड़ रहे थे। हमने उनके बिलकुल पास पहुंचकर इस उलझन का रहस्य जानना चाहा। वे बोले,अगले साल इस इलाके का टेंडर उठना है और हमारी समस्या है कि हमारे पास इसमें बोली लगाने वाले कई लोग हैं। एक बोली तो लगातार ऊँची होती जा रही है,पर दूसरे लोग भी बीच में अपनी बोली प्रस्तुत कर देते हैं। हमें टेंडर मिलने का अभी पुख्ता भरोसा नहीं है,फिर भी इतनी भारी संख्या में आवेदक आ रहे हैं,इससे हमारी दुकान के टूट जाने का अंदेशा है। हमने कहा,क्यों नहीं आप खुल्लम-खुल्ला एक सर्कुलर जारी कर देते ताकि स्थिति स्पष्ट हो जाय। उन्होंने कहा ,यही तो असल समस्या है। ऐसा करने पर बाकी आवेदक अज्ञातवास में चले जायेंगे और फिर हम किसके नाम लिखेंगे और किसके फाड़ेंगे ?
तब तक हमने देखा कि पहली दुकान के आगे अचानक चहल-पहल बढ़ चुकी थी। हम उधर की ओर ही चल दिए। दुकान के मालिक ने पास में पड़े कबाड़ से एक पुतला निकाला और अपने कर्मचारियों को हिदायत दी कि इसे ठीक से झाड़-पोंछकर खड़ा करने लायक बना दिया जाय। हमारे देखते-ही देखते कई लोग उसको ठोंकने-पीटने लगे। किसी ने कीलें ठोंकी तो किसी ने कपड़ा बदला। थोड़ी देर में ही वे उसे टांगकर मालिक के पास लाए और उसे सौंपते हुए कहा,लीजिये,बस इसमें बैटरी लगा दीजिये और बाकी काम यह खुद कर लेगा। हमने इसे इस लायक तो बना ही दिया है कि अगले साल भी इस इलाके का टेंडर फिर से हमारे पास आ जाये।
हमने उनकी इस महत्वाकांक्षी परियोजना को नजदीक से देखने का प्रयास किया। इस पर झाड़-पोंछकर लाया गया पुतला स्वयं बोल पड़ा,’मैं अब असमर्थ नहीं हूँ,मुझमें कई तरह की खपीचें लगाकर खड़ा किया गया है। मुझे केवल दुकान के ग्राहकों की जांच-पड़ताल करनी है क्योंकि बेईमानी होने की गुंजाइश यहीं होती है। मैं किसी दुकानदार की देखरेख नहीं करूंगा,क्योंकि यही मेरे जन्म-दाता हैं।यह सबको राशन देते हैं और मुझे भी तो इन्हीं से ऊर्जा मिलेगी। मैं वादा करता हूँ कि चाहे मैं किसी के काम आऊँ या न आऊं पर अगला टेंडर तो मेरे ही नाम से मिलेगा। मैं यह भी साफ़ कर रहा हूँ कि मेरी बैटरी मेरे मालिक के ही पास रहेगी,वह चाहे मुझे अपने दुकान के आगे पुतले की तरह खड़ा करे या उसके संभावित मालिक झुनझुना बनाकर खेलें।’
इसके बाद मालिक ने दुकान के आगे नया बोर्ड टांग दिया,जिस पर लिखा था,’यहाँ टीनोपाल और लोकपाल की विशेष व्यवस्था है।एक बार सेवा का अवसर अवश्य प्रदान करें !’
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