सोमवार, 2 सितंबर 2013

वह सुबह कभी तो आएगी !


२/९/२०१३ को हरिभूमि में
 
रुपये के रोज़ रसातल में जाने की और सोने के सातवें आसमान में पहुँचने की खबरों से हमारी बेचैनी बढ़ रही है। हमें लगता है कि इसका कारण हमारे दिल का कमज़ोर होना ही है। अभी तक इस बात की कोई खबर नहीं मिली कि इन खबरों से सरकार की तबियत खराब है। इस रोजाना की उठापटक से दूर सरकार के सभी सलाहकार बंकरों में सुरक्षित बैठे हुए हैं। वे सरकार की आर्थिक नीतियों को लेकर अभी भी निश्चिन्त हैं। जनता भी सरकार की मुस्तैदी की कायल हो चुकी है। उसे लगता है कि उसकी सरकार सब संभाल लेगी। सँभालने वाले समझ रहे हैं कि रुपया,सेंसेक्स और सोने के भाव अपने आप ठिकाने पर आ जायेंगे ,ये केवल ‘दिनन का फेर’ है। सारी गलती अख़बारों की है जो विकास की खबरों के बजाय गिरते हुए रूपये के पीछे पड़े हैं। डॉलर की गुगली से रुपया बार-बार बीट हो रहा है पर उसके उद्धारक पवेलियन में बैठे इस बात का इंतज़ार कर रहे हैं कि वह कम से कम शतक लगा ले तो फील्ड पर आयें। इसलिए हम जैसे कमज़ोर दिल वाले दर्शकों का भले ही रोज़ कलेजा बैठ रहा हो,देश के कप्तान को लगता है कि वे बिना कुछ कहे और किए ही बाजी जीत लेंगे।

देश में रूपये की हालात पर बेजा चिंता जताई जा रही है। ऐसे रूपये का गिरना तो स्वाभाविक ही है जिस पर गाँधी बाबा की पुरानी फोटो लगी हुई है। वे देश के जननेताओं के मानस से कब के उतर चुके हैं,अब अगर नोटों से भी जितनी जल्दी उतर जांय,ठीक रहेगा। आज़ादी के बाद उनके बताये अनुसार देश चलता तो ठीक से खड़ा भी नहीं हो पाता । इस सचाई को हमारे कर्णधारों ने जल्द पहचान लिया और उनके विचारों को खूँटी पर टाँगकर उनकी फोटो को अपना लिया। इसीलिए हर सरकारी दफ्तर में गाँधी जी निगहबानी करते मिलते हैं। अब उन्हीं की आँखों के सामने उनके अनुयायी नए भारत का निर्माण करने में जुटे हैं। जाहिर है यह एक कठिन प्रक्रिया है,पर वे गिरकर भी इसका निर्वाह करने में तत्पर हैं।

अगर रुपया गिर रहा है तो सोना छलाँग लगा रहा है। इन दोनों बातों से आम आदमी खुश और बेफिक्र है। रुपया तो उसके हाथ में पहले से ही नहीं रहा,तो उसके गिरने और बने रहने से उसे कोई अंतर नहीं पड़ता और रही बात सोने की तो वह इसकी भरपाई ख़ूब नींद लेकर कर लेता है। सोना हाथ में होने पर उसको खटका बना रहता है ,इसलिए अच्छा है कि सोना सातवें आसमान में ही रहे। इस रहस्य को हमारी सरकार भी जान गई  है। हो सकता है,इसी वज़ह से उसने ‘खाद्य-सुरक्षा’ की चादर ओढ़ ली हो और सोने की खोज में सातवें आसमान में हो। अब वह रूपये को तभी तो संभाल पायेगी,जब सोने से फुरसत पायेगी ।

देश को यकीन हो न हो,पर सरकार निश्चिन्त है कि किसी सुबह अख़बारों में वह खुशहाली की खबर पढ़ लेगी। सबकुछ अपने आप ठीक हो जायेगा। चिंतित लोग केवल उस सुबह का इंतज़ार करें !

3 टिप्‍पणियां:

Dr. pratibha sowaty ने कहा…

nc blog sr

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हम तो निराशा में सोते हैं पर आशा के साथ उठते हैं कि आज कुछ अच्छा हो जाये।

maheruddinkhan ने कहा…

samyik vyagy padh kar tabiyat khush hui.

धुंध भरे दिन

इस बार ठंड ठीक से शुरू भी नहीं हुई थी कि राजधानी ने काला कंबल ओढ़ लिया।वह पहले कूड़े के पहाड़ों के लिए जानी जाती थी...