बुधवार, 4 सितंबर 2013

बाबा बैकुंठ में हलकान हैं !


४/९/२०१३ को जनसंदेश में

 ४/९/२०१३ को जनवाणी में

बाबाजी बहुत दुखी हैं।वे दूसरों को दिन-रात सुख का प्रसाद बाँटने में लगे हुए थे,अपनी चिंता कभी की ही नहीं ।’माँ-बेटे’ ने इस बात का फायदा उठाकर उन्हें घोर कष्ट दे दिया।बाबा दूसरों के आर्तनाद सुनने के आदी हो चुके थे, कभी सोचा भी नहीं कि स्वयं को आर्तनाद करना पड़ेगा।वर्षों से भक्ति में चुँधियाये हुए  भक्तों और सेवकों के वे तारणहार बने हुए थे।कभी उनकी नाव भी भंवर में फंसेगी,सोचा न था।बाबा  बड़ी मेहनत से नाच-गाकर लोगों को पवित्र कर रहे थे पर कारागार जाकर खुद अपवित्र हो गए।दूसरे बाबा लोग और नेता इस साज़िश को समझ गए हैं।नेताओं के हिसाब से कोई तभी अपराधी है जब यह पता चले कि उसका धर्म क्या है ?वे तो धर्म के हिसाब से ही आतंकवादी और बलात्कारी की पहचान कर लेते हैं।हमारे रहनुमाओं में इतनी दिव्य-दृष्टि आ चुकी है।फ़िलहाल भक्तों की ‘किरपा’ से बाबा भुगत रहे हैं।

बाबा अपने भक्तों को यकीन दिलाते थे कि जो कुछ होता है,उनकी मर्जी से ही ।भक्त भी यही माने बैठे थे।बाबा और भक्त के बीच से भगवान भी गुम हो गये ।बाबा ने अपने बड़े-बड़े चित्र वाले कलेंडरों और पत्रिकाओं से यह साबित कर दिया कि वही भगवान हैं।अब जब ऐसा सम्मोहन तारी हो जाए तो भक्त या सेवक को कुछ सोचने या करने की ज़रूरत नहीं रह जाती।भगवान के बदले सारा काम बाबा  ही करते थे पर तभी बाबा के खिलाफ साज़िश शुरू हो गई।गोया साजिशें भगवान से भी बढ़कर काम करने लगीं।

बाबा तन-मन-धन से भक्तों के प्रति समर्पित थे और ऐसा ही समर्पण वे उनसे चाहते थे,पर एक भक्त ने उन्हें ‘आत्म-समर्पण’ करने को मजबूर कर दिया।सैंकड़ों पुलिस वाले बाबा के आश्रम में उनकी आरती उतारने को उतावले थे,पर बाबा दर्शन देने को ही नहीं तैयार थे।पुलिसवाले नासमझ थे क्योंकि वे बाबा के अंतर्ध्यान होने की कला से अनजान थे।जब बाबा इस ध्यान में होते हैं,उन्हें केवल अपने अस्तित्व की चिंता होती है।आखिरकार जब चौतरफ़ा शंख-ध्वनि हुई तो बाबा का दिल पसीजा और जन-कल्याण के लिए वे प्रकट हुए।बाबा इतने पवित्र शरीरधारी हैं कि कारागार के नाम से ही थरथराने लगे।इधर बाबा के कारागार में आने से अन्य कैदी अपने मोक्ष के प्रति आश्वस्त हो गए हैं ।उनको लगता है कि जल्द ही बाबा उन्हें प्रवचन देकर कृतार्थ करेंगे क्योंकि अब वे सब एक ही बिरादरी के हैं।पर दूसरों को बैकुंठ भेजने वाले बाबा को अब बैकुंठ नहीं सुहा रहा है।

कृष्ण-कन्हैया के बाद कारागार के दर्शन करने वाले बाबा दूसरे भगवान बन गए हैं ।जहाँ कृष्ण के कारागार में पैदा होने पर सब कुछ पवित्र हो गया था,वहीँ बाबा के वहाँ जाने पर वे खुद अपवित्र हो गए।अब ऐसे अपवित्र हुए भगवान को कौन पवित्र कर सकता है,यही सोचकर बाबा हलकान हैं।

 

1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

ईश्वर सबको सदाचार और सद्बुद्धि दे।

एक अदद सम्मान के लिए !

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