बुधवार, 18 सितंबर 2013

तीन तरह के सपने और आम आदमी !

18/09/2013 को जनसंदेश में



कोई कुछ भी कहता हो,देश में अभी सपने मरे नहीं हैं। परेशानियों की बातें करने वाले तो हमेशा रोते ही रहते हैं पर अभी भी बहुत कुछ बचा हुआ है,जिससे लगता है कि देश में समस्याओं की बातें करने वाले नादान हैं। इस समय कम से कम तीन लोग ऐसे हैं जो सपनों की बातें कर रहे हैं । इन स्वप्नदृष्टाओं के अलावा बचे हुए लोग इनकी चर्चा में लगे हुए हैं। सपनों के बारे में सोचने की आम आदमी की न तो हैसियत है और न हिम्मत। यह अलग बात है कि इनके सपनों के बारे में सारी खबरें सबसे पहले उसी के पास आती हैं। इन तीनों टाइप के सपनों में ही आम आदमी इत्ता व्यस्त है कि उसे अपने सपने की सुध ही नहीं । यही कमाल है,तीन तरह के सपनों की फिलासफी का।

प्रधानमंत्री-पद के उम्मीदवार नकली लालकिले पर चढ़कर भाषण देते हैं कि सपने नहीं देखना चाहिए क्योंकि इससे आदमी बर्बाद हो जाता है। देश का आम आदमी तो इस थ्योरी पर बहुत पहले से यकीन किए बैठा है,इसलिए उसके पास कोई सपना पेंडिंग है भी नहीं। वह तो बस दूसरों के सपनों को पूरा करने में भिड़ा हुआ है । नेता जी ने इस थ्योरी से ही सीख लेकर सपने देखने के बजाय उस पर अमल करना शुरू कर दिया है ,पर जनता के लिए सन्देश है कि वह सपने देखना बंद करे नहीं तो बर्बाद हो जायेगी। यह बात अगर जिसे समझ न आए,वही कुसूरवार है।

सपनों के बारे में दूसरी बात उस युवराज ने कही है,जिसको लेकर कई लोग सपने पाले बैठे हैं। उन्होंने तो यह कह दिया है कि वे अपने सपनों को कुर्बान करने के लिए तैयार हैं । वे यह सब आम आदमी के हित में ही करेंगे। इससे यह तो स्पष्ट हो गया कि उनके पास सपने हैं और उन्हें कुर्बान करने की हैसियत भी वे रखते हैं। आम आदमी सपनों को खाक कुर्बान करेगा। वह तो देखने तक की हैसियत में नहीं रह गया है। अब यह उसे सोचना है कि यह क़ुरबानी उसे कित्ती सस्ती पड़ती है ?

तीसरे टाइप का सपना सबसे दिलचस्प है। यह सदाबहार है। यह लगातार इतनी बार देखा गया है कि अब हवा में ही घुल गया है। पर इसे देखने वाली बुजुर्ग आँखें उसे जमीन पर लाने को आतुर हैं। उनके आत्मीय जनों ने बहुतेरा समझाया कि अब हवा का रुख दूसरी ओर है,पर वे बाल-हठ की तर्ज पर ‘लाल-हठ’ पकड़े हुए हैं। जहाँ दो लोग सपनों से दूर भागने की बात कर रहे हैं,वे देखने पर आमादा हैं। उन्हें लगता है कि जब उन दोनों का कोई सपना ही नहीं है,तो फ़िर वे ही बचते हैं। इन तीनों के बीच आम आदमी यह सोच रहा है कि इनके सपनों में वह कहाँ पर है ? 

1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

देश को सुखद भविष्य का अधिकार है।

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