जनसन्देश और जनवाणी में १३/११/२०१३ को |
हम तो बाल-बाल बच गए ! हमारे घर के चौकीदार ने जब इसकी औपचारिक घोषणा की तो पहले हम कुछ समझ ही नहीं पाए।बाद में उसने बड़ी ख़ुशी से यह खुलासा किया कि हम उसके बचाने से नहीं बचे हुए हैं बल्कि जो हमला करते हैं,वे ही हमें मारना नहीं चाह रहे।अगर उसके वश में हो तो वह आये दिन हमारे ऊपर गोले फिकवाए।इतनी संवेदनशील जानकारी पाकर हम चौकन्ने हो गए और जिस चौकीदार को हम केवल अपना रक्षक समझ रहे थे,उसकी ओर कातर नेत्रों से देखने लगे।हमें उसमें साक्षात् प्रभु के दर्शन दिखाई देने लगे।वह सरकार,पालनहार ही नहीं,संहारक भी है।ऐसे व्यक्ति को चौकीदार या सेवक समझना हमारी निरा मूर्खता थी।’मन बावड़ो हो गयो’ जैसी स्थिति में हम गंभीर चिन्तन करने लगे.
उस पालनहार
की बात हमें सोलहों आने सच्ची लगी।अपनी खाली होती जेब और हल्के होते सब्जी के झोले
के बीच भी अगर हम इस नश्वर दुनिया में बने और बचे हुए हैं तो यह उसी का प्रताप है।जो
आदमी काजू,बादाम और च्यवनप्राश का स्वाद न ले सके,वह मूँगफली और देसी ठर्रे के दम पर
पूरी सर्दी काट लेता है,यह सरकार की ही रहमत का कमाल है।खाने की थाली में आलू,प्याज़ और टमाटर का जुगाड़ न कर पाने वाला यदि
अभी भी जिंदा है तो यह उसकी निर्लज्ज सहनशीलता का द्योतक है।सरकार के हाथ में
फ़िलहाल जो हथियार हैं,उनसे वह हमारे ऊपर भरपूर वार करने में जुटी है पर हमारी सूखी
चमड़ी पर कुछ असर ही नहीं होता।ऐसी सुनहरी मंहगाई और उछाल लेते भ्रष्टाचार के शिकार
होने से तो हम बच गए पर आतंकी गोलों से बिलकुल नहीं बच सकते हैं।फ़िलहाल,आतंकियों
की ओर से हमें कोई खतरा इसलिए नहीं है क्योंकि अभी तक उनके गोलों पर हमारे चौकीदार
या सरकार का नियंत्रण नहीं है।
हम तभी से
सोच रहे हैं कि वही सरकार हमारे लिए सबसे मुफ़ीद है,जिसका न मंहगाई पर,न भ्रष्टाचार
पर और न ही आतंक पर नियंत्रण हो ।ये तीनों चीज़ें आम आदमी की जान की दुश्मन हैं।अगर
कोई सरकार इन सब पर नियंत्रण कर लेती है,फिर हमारा बचना नामुमकिन है।हम अपने
चौकीदार का शुक्रिया अदा करते हैं,जिसने हमारे जीवित रहने का रहस्य उजागर कर दिया
है।यह धमकी नहीं बल्कि परामर्शी-नुस्खा है,जिसे हमें समझना है।कोई कितना भी इतिहास
या भूगोल बदल ले,राजनीति और अर्थशास्त्र चौपट कर दे, पर हमारा गणित यही कहता है कि
हमें मज़बूत नहीं मजबूर सरकार ही चाहिए।अपनी जान बची रहेगी तभी इस काया का मतलब है।इसलिए
यह सरकार हममें इतनी जान तो बचाए रखेगी कि हम उसे बचाने के लिए मतदान-केंद्र तक जा
सकें ! इसके लिए हम अपने चौकीदार और सरकार के आभारी हैं।
1 टिप्पणी:
बढ़िया। सच है आज की महंगाई के दौर में जीना किसी कमाल से कम नहीं।
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