बुधवार, 6 नवंबर 2013

आलू-प्याज और लौहपुरुष !

जनसंदेश में 8/11/2013 को।

उधर वे खजाने की खोज में लगे हुए थे और इधर आलू के लाले पड़ गए।खजाने में टूटा-फूटा चूल्हा और कुछ चूड़ियों के अवशेष ज़रूर मिले मगर जिस सोने पर नज़र थी ,वह दूर-दूर तक नज़र नहीं आया।इस खुदाई से उन्हें बड़ी उम्मीदें थीं कि सारी मुफलिसी दूर हो जाएगी,पर बुरा हो सपने का,वही गच्चा दे गया।सोना तो मिला नहीं,रसोई में आग और लग गई।खजाने को खोदने के चक्कर में आलू भी नहीं जमा कर पाए।प्याज़ को आसमानी होते देखकर वे अच्छे-खासे वैष्णव बन गए थे।पिछले दो महीनों से इस बहाने उन्होंने प्याज़ को हाथ न लगाया था पर अब आलू के बिना कैसे चलेगा ? इसे भी अपने सब्जी के झोले में न डाल पाए तो दुनिया को क्या मुँह दिखायेंगे ? यही सोच-सोचकर वे हलकान हुए जा रहे थे।

हमें देखते ही उन्होंने अपने झोले को समेटकर अपनी खाली जेब में धर लिया।हमने आज उनसे खजाने का हाल न पूछा क्योंकि वे बिना खुदे ही धरती में गड़े जा रहे थे।हमने भी अपनी तरफ से उनके ज़ख्मों पर फावड़ा चलाना उचित न समझा। वे ही उबल पड़े,’क्या ज़माना आ गया है ? पहले प्याज़,टमाटर और अब आलू भी ? कितना अजीब समय है,जिसको भी भाव न दो,अपने भाव बढ़ा देता है।ये वो दिन भूल गया ,जब इसे खाने से ज्यादा इसके ठप्पे बनाकर लोगों की पीठ पर छापते थे।अब यह हमारी ही पीठ पर सवार हो गया है।’वे बिलकुल भुने हुए आलू हुए जा रहे थे।

हमने उनके जेब में पड़े खाली झोले को देखते हुए सांत्वना दी,’अब आप आम आदमी नहीं रहे ।आपको आलू-प्याज़ पर चिंतन करने की ज़रूरत नहीं है।सोना न मिला न सही ,अब लोहे पर ध्यान केन्द्रित करो।हाड़-मांस के बने पुतलों से लोहे का पुतला कहीं अधिक कीमती है।आलू-प्याज़ की सोचकर अपनी दैहिक भूख शांत कर सकते हो जबकि लोहा इकठ्ठा करोगे तो सात पीढियों के खाने का इंतजाम हो जायेगा।’

‘पर यह सब होगा कैसे ? हम तो अभी तक भूख से ही लोहा ले रहे थे,अब क्या सच्ची-मुच्ची वाला लोहा लेना होगा ? वे जेब से खाली झोले को बाहर निकालते हुए बोले।

‘हाँ,अब बदले समय को पहचानो।आलू-प्याज़ उगाने और खाने के लिए पूरी जिंदगी पड़ी है।फ़िलहाल कहीं से एकठो महापुरुष का इंतजाम कर लो और उसमें लोहे का लेप लगाकर चौराहे पर खड़ा कर दो।इससे खाली जेब और पेट दोनों भर जायेंगे।और हाँ,यह काम जितनी जल्दी हो, कर डालो क्योंकि कहीं आलू-प्याज़ की तरह महापुरुषों का भी टोटा पड़ गया तो फिर कुदाल लेकर गड़े हुए खजाने की तरह उन्हें भी खोदना पड़ेगा !

 'जनवाणी' में ०६/११/२०१३ को प्रकाशित

कोई टिप्पणी नहीं:

अनुभवी अंतरात्मा का रहस्योद्घाटन

एक बड़े मैदान में बड़ा - सा तंबू तना था।लोग क़तार लगाए खड़े थे।कुछ बड़ा हो रहा है , यह सोचकर हमने तंबू में घुसने की को...