उम्मीद तो यह थी कि पार्टी हारेगी मगर वो खुद भी खेत रहे।पार्टी को तो पहले ही हारने का अभ्यास रहा है इसलिए उसको हार से ज़्यादा फर्क पड़ा नहीं।कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि पार्टी ने जानबूझकर अपना कबाड़ा किया है ताकि भविष्य में वह उठती हुई दिखाई दे,इसलिए हार पर औपचारिक चिंतन भी नहीं हुआ ।वे चूँकि पार्टी के होनहार और ऊर्जावान नेता हैं इसलिए अपनी हार के बाद बनी नई सरकार से ऊर्जा लेना चाह रहे हैं।कामकाजी आदमी कभी खाली नहीं बैठता ,फ़िर तो वे नेता ठहरे।नई सरकार ने अभी अपना काम ठीक से शुरू भी नहीं किया है पर उन्होंने अपना कामकाज बखूबी संभाल लिया है।
उनकी सबसे बड़ी शिकायत है कि नई सरकार में चुनाव हारे हुए नेताओं को मंत्री बनाया गया है।फ़िर तो वे भी हारे हुए हैं,उन्हें क्यों नहीं ऐसा मौका मिल सकता है ? उनके पास सरकार चलाने का लम्बा अनुभव है और वे काफ़ी पढ़े-लिखे भी हैं।अब यह भी क्या बात हुई कि नई सरकार में छठी-बारहवीं पास किए हुए लोग ऊँची और बड़ी-बड़ी नीतियां बनाएँ ? ऐसा कैसे सम्भव हो सकता है ? कम पढ़े-लिखे लोगों से देश और सरकार को खतरा है और यही चिंता उन्हें खाए जा रही है।
उनकी इस बात में हमें भी दम दिखाई देता है।मंत्रालयों के काम छोटे-मोटे स्तर के नहीं होते।इनमें चलाई जाने वाली परियोजनाएं अरबों-खरबों की होती हैं।ऐसी बड़ी परियोजनाओं में घपलों-घोटालों को टाला जाना अपरिहार्य है।ऐसे में कमीशनबाजी के करोड़ों रुपयों का हिसाब-किताब कम पढ़ा-लिखा व्यक्ति कैसे लगा पायेगा ? सारा खेल अफ़सर कर जायेंगे।कमाई होगी दस करोड़ की,पल्ले में आएँगे हजार दो हजार।इस तरह तो सारा सिस्टम ही बेकार हो जायेगा।ऐसे लोगों के बूते यह सरकार नहीं चलनी है।पढ़ा-लिखा मंत्री होने से घोटाले की सही फीगर भी सामने आएगी और देश तरक्की करता हुआ दिखेगा।
हारे हुए एक और नेता मायूस दिखाई दिए ।नई सरकार ने कई मंत्रालयों को ही खत्म कर दिया है।सबसे कमाऊ कोयला मंत्रालय अब ऊर्जा के अधीन कर दिया गया है।उनकी चिंता है कि अब कोयले के बिना कालिख कैसे पुतेगी ? अगर यह मंत्रालय रहता तो वे भी नई सरकार के मंत्रियों के काले कारनामे गिनाते और खुद के लिए ऊर्जा जुटा पाते पर यह काम वे अब कैसे कर पाएँगे ? नई सरकार ने पहले चुनाव में और अब मन्त्रिमन्डल बनाने में उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा।यह सब विपक्ष को पूरी तरह नेस्तनाबूद करने की साज़िश है।
जीते हुए के साथ सारा जमाना रहता है पर हम तो हारे हुओं के साथ हैं।अपने उबरने के लिए वे कुछ समय तो देने को तैयार हैं पर जीते हुए लोग अभी से अगले चुनावों को भी जीता हुआ बता रहे हैं।इतना समय नहीं है उनके पास।इससे पहले कि क्षीण हुई ऊर्जा पूरी तरह से खत्म हो जाय,हारे हुए लोग संकल्पित हो रहे हैं।वे नई सरकार द्वारा की जाने वाली किसी खोट के इंतज़ार में अपना टैम खोटा नहीं करना चाहते हैं।इसलिए कुछ न कुछ नुक्स निकालकर अपना काम शुरू कर दिया है।हम नई सरकार से अपील करते हैं कि विपक्ष की मजबूती के लिए वह कुछ ठोस नुक्स मुहैया कराये !
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1 टिप्पणी:
बढिया व्यंग। कुछ किस्मत वाले हार कर भी जीत जाते हैं।
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