कल अचानक मेरे मोबाइल पर सन्देश आया,’अब आप विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के सदस्य बन गए हैं।आपका स्वागत है।किसी भी समय सहायता के लिए आप इस नम्बर पर सम्पर्क कर सकते हैं।’सन्देश पढ़कर मैं भौंचक रह गया।मैंने तो कभी किसी पार्टी में जाने के लिए किसी को आवेदन नहीं किया,फ़िर ये अनर्थ कैसे हो गया ! एक सचेत नागरिक होने के नाते ‘जागो ग्राहक जागो’ का भूत मेरे सिर पर सवार हो गया।मुझसे रहा नहीं गया और मैंने उसी नम्बर पर कॉलबैक कर दिया।
दूसरे ग्राहक-सेवा केन्द्रों की तुलना में इनकी सेवा अधिक तेज निकली।फ़ोन उठाने वाला अधिक तमीज से पेश आ रहा था। मेरे बोलने का इंतज़ार किए बिना वह बोला,’दुनिया के वृहत्तम परिवार में आपका स्वागत है।कहिये मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ ?’मैंने तल्ख़ अंदाज़ में ही सवाल किया,’भाई ! मैंने आपकी पार्टी का सदस्य बनने के लिए कोई आवेदन नहीं किया,फ़िर यह हादसा कैसे हो गया ?’उसने बेहद मीठे स्वर से उत्तर दिया,’इस बारे में हम आपकी पूरी सहायता करेंगे।कृपया आप धैर्य बनायें रखें।आपके फ़ोन से मिसकॉल आई है,इसीलिए आप अब हमारे सम्मानित सदस्य हैं’।
‘पर मैंने तो किसी को कोई मिसकॉल नहीं दी।यह सरासर झूठ है।’ मैंने अपनी ओर से प्रतिवाद किया।वह कहने लगा,’भाई साहब,आपने नहीं तो आपके बच्चे ने गलती से नम्बर डायल कर दिया होगा।हमारा डाटा झूठ नहीं बोलता।सदस्य तो अब आप बन ही गए हैं,और बताइए क्या सेवा करें ?’
मैंने फ़िर भी अड़ने की कोशिश की ,’हम आपकी पार्टी के सदस्य क्यों बनें,इसी का एक कारण बता दीजिए ?’उसने तुरंत उत्तर दिया,’देखिए,हम दो कौड़ी के लोगों को दस-करोड़ी पार्टी का सदस्य बना रहे हैं,यह क्या कम है ? कौन पूछ रहा है आम आदमी को आजकल ? यहाँ तक कि दूसरी पार्टियों में पीछे से लात मारने की गुंजाइश भी ज़्यादा है।हम तो जो करते हैं,खुल्लम-खुल्ला करते हैं।’
‘मगर हमारी निष्ठा तो गाँधी जी के सिद्धांतों में रही है।हम उनके आदर्शों से बहुत प्रभावित हैं।हम उनको नहीं छोड़ सकते।’ मैंने आखिरी प्रयास किया।
‘हाँ तो हम कहाँ गाँधी से अलग हैं ? हमने तो गाँधी का सम्पूर्ण पैकेज ले लिया है।हमारे तो अध्यक्ष जी साक्षात् गाँधी की प्रतिमूर्ति हैं।हमने जनता की ज़रूरतों को देखते हुए गाँधी-लोहिया-पटेल सबको अपने नए पैकेज में डाल दिया है।नए सदस्य को अपने आप इन सबका फ्लेवर मिल जाएगा।’ उसने अपनी पार्टी का पुलिंदा हमारे सामने खोलकर रख दिया।
‘लेकिन फ़िर भी हम आपके सदस्य न रहना चाहें तो ?’ हमने भी दो-टूक जवाब दे दिया।
‘अब आप हमारे सदस्य बन गए हैं।इसमें हम कुछ नहीं कर सकते।आपको मिसकॉल करने से पहले सोचना चाहिए था।अब आपके पास एक ही विकल्प है हमसे बचने का।’कहते-कहते वह रुक गया।
‘क्या? क्या? ' मैंने बड़ी उत्सुकता से पूछा।
‘यही कि अगर पाँच साल बाद आपकी सदस्यता किसी और पार्टी को पोर्ट कर दी जाये तो !’ इतना कहकर उसने हमारे सामने मज़बूत विकल्प रख दिया और फ़ोन डिसकनेक्ट हो गया।तभी मेरे मोबाइल में आखिरी संदेश आया ‘आपका बैलेंस जीरो हो गया है।’
मुझे लगा कि उसकी दो-कौड़ी वाली बात सही थी ।
दूसरे ग्राहक-सेवा केन्द्रों की तुलना में इनकी सेवा अधिक तेज निकली।फ़ोन उठाने वाला अधिक तमीज से पेश आ रहा था। मेरे बोलने का इंतज़ार किए बिना वह बोला,’दुनिया के वृहत्तम परिवार में आपका स्वागत है।कहिये मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ ?’मैंने तल्ख़ अंदाज़ में ही सवाल किया,’भाई ! मैंने आपकी पार्टी का सदस्य बनने के लिए कोई आवेदन नहीं किया,फ़िर यह हादसा कैसे हो गया ?’उसने बेहद मीठे स्वर से उत्तर दिया,’इस बारे में हम आपकी पूरी सहायता करेंगे।कृपया आप धैर्य बनायें रखें।आपके फ़ोन से मिसकॉल आई है,इसीलिए आप अब हमारे सम्मानित सदस्य हैं’।
‘पर मैंने तो किसी को कोई मिसकॉल नहीं दी।यह सरासर झूठ है।’ मैंने अपनी ओर से प्रतिवाद किया।वह कहने लगा,’भाई साहब,आपने नहीं तो आपके बच्चे ने गलती से नम्बर डायल कर दिया होगा।हमारा डाटा झूठ नहीं बोलता।सदस्य तो अब आप बन ही गए हैं,और बताइए क्या सेवा करें ?’
मैंने फ़िर भी अड़ने की कोशिश की ,’हम आपकी पार्टी के सदस्य क्यों बनें,इसी का एक कारण बता दीजिए ?’उसने तुरंत उत्तर दिया,’देखिए,हम दो कौड़ी के लोगों को दस-करोड़ी पार्टी का सदस्य बना रहे हैं,यह क्या कम है ? कौन पूछ रहा है आम आदमी को आजकल ? यहाँ तक कि दूसरी पार्टियों में पीछे से लात मारने की गुंजाइश भी ज़्यादा है।हम तो जो करते हैं,खुल्लम-खुल्ला करते हैं।’
‘मगर हमारी निष्ठा तो गाँधी जी के सिद्धांतों में रही है।हम उनके आदर्शों से बहुत प्रभावित हैं।हम उनको नहीं छोड़ सकते।’ मैंने आखिरी प्रयास किया।
‘हाँ तो हम कहाँ गाँधी से अलग हैं ? हमने तो गाँधी का सम्पूर्ण पैकेज ले लिया है।हमारे तो अध्यक्ष जी साक्षात् गाँधी की प्रतिमूर्ति हैं।हमने जनता की ज़रूरतों को देखते हुए गाँधी-लोहिया-पटेल सबको अपने नए पैकेज में डाल दिया है।नए सदस्य को अपने आप इन सबका फ्लेवर मिल जाएगा।’ उसने अपनी पार्टी का पुलिंदा हमारे सामने खोलकर रख दिया।
‘लेकिन फ़िर भी हम आपके सदस्य न रहना चाहें तो ?’ हमने भी दो-टूक जवाब दे दिया।
‘अब आप हमारे सदस्य बन गए हैं।इसमें हम कुछ नहीं कर सकते।आपको मिसकॉल करने से पहले सोचना चाहिए था।अब आपके पास एक ही विकल्प है हमसे बचने का।’कहते-कहते वह रुक गया।
‘क्या? क्या? ' मैंने बड़ी उत्सुकता से पूछा।
‘यही कि अगर पाँच साल बाद आपकी सदस्यता किसी और पार्टी को पोर्ट कर दी जाये तो !’ इतना कहकर उसने हमारे सामने मज़बूत विकल्प रख दिया और फ़ोन डिसकनेक्ट हो गया।तभी मेरे मोबाइल में आखिरी संदेश आया ‘आपका बैलेंस जीरो हो गया है।’
मुझे लगा कि उसकी दो-कौड़ी वाली बात सही थी ।
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