शनिवार, 26 सितंबर 2015

कौन जाए जौक, ये दिल्ली की गलियाँ छोड़कर !

दिल्ली में डेंगू है और उससे ज़्यादा उसका डर।डेंगू का डंक अभी टूटा नहीं पर स्वाइन फ्लू की आहट सुनाई देने लगी है।राजधानी का स्टेटस वीआईपी है सो बीमारी भी वीआईपी।छोटे-मोटे लोगों से काबू में आने को राजी नहीं है।मुख्यमंत्री विज्ञापन दे रहे हैं पर डेंगू मान नहीं रहा है।निगम वाले चालान कर रहे हैं पर शायद उसके पास राष्ट्रीय परमिट है।दिल्ली की हर समस्या की तरह डेंगू भी प्रधानमंत्री से वक्तव्य देने का इंतज़ार कर रहा है।हो सकता है कि वे ‘मन की बात’ में डेंगू को समझा दें तो वह चला भी जाए।इतना भी बहरा नहीं होगा।


मुश्किल यह है कि दिल्ली आकर कोई जाना नहीं चाहता,इसीलिए डेंगू का निदान नहीं हो पा रहा।जो यहाँ आ जाता है,दिल्ली उसे ढोती है।यह दिल्ली को वरदान मिला हुआ है।कहा जा रहा है कि थोड़ी सरदी आ जाए तो डेंगू अपने-आप चला जायेगा।उसी का इंतज़ार है।जब सरदी में स्वाइन फ्लू आएगा,फ़िर गर्मी का इंतज़ार रहेगा।समस्याएं मौसम-चक्र की तरह अदला-बदली करने लगें तो खुद करने के लिए कुछ नहीं होता।वैसे भी वीआइपी संस्कृति वाले किसी के ठेले-ठाले से जाते नहीं।

दिल्ली में जमना आसान नहीं होता और उखड़ना उससे भी मुश्किल।कुर्सी और बीमारी के लिए दिल्ली का मौसम सदैव अनुकूल रहा है।साहित्य और राजनीति इसीलिए सबसे अधिक यहीं फलती-फूलती है।इनके सम्पर्क में आने वाले लोग स्वाभाविक रूप से संक्रमित हो जाते हैं।इससे बचाव के लिए अभी तक कोई वैक्सीन नहीं बन पाई है।डेंगू और स्वाइन फ्लू के लिए भी नहीं।

नई सरकार इस दिशा में लगातार काम कर रही है।‘मन की बात’ नामक अनूठी वैक्सीन खोजी गई है।जानकार कह रहे हैं कि पूरे पाँच साल तक यह कोर्स चलेगा तभी मरीज को पूरी राहत मिलेगी।चिन्ता की बात नहीं है।ऐसी मौसमी बीमारियाँ स्वयम् ही दम तोड़ देंगी।इस बीच कुछेक जानें चली भी जाती हैं तो यह वीआईपी कल्चर के आगे महज मौन-क्रांति होगी।और मौन का कोई इतिहास नहीं होता।

दिल्ली के मिजाज से जो परिचित नहीं हैं,वे खौफ खा रहे हैं,डर से भाग रहे हैं।उन्हें असल ख़तरे का पता ही नहीं है।एक कवि ने कहा भी है कि यमराज अब सभी दिशाओं में विद्यमान हैं।डेंगू का मच्छर भले अनपढ़ हो पर यमराज को वीआइपी और आम आदमी की पहचान है।वे इतना खयाल तो रख ही सकते हैं कि सब्सिडी का फायदा गरीब को सबसे पहले दें।

साहित्य-महोत्सव और नया वाला विमर्श

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