उन पर हवाबाजी करने का इलज़ाम लगा है।पर यह कोई
छोटा-मोटा करतब नहीं है।हवा में रहकर गुलाटी मारना बडे ख़तरे का काम होता है।यहाँ
तो ज़मीन से ही हवाबाजी का कमाल किया जा रहा है।वादे करना जितना आसान होता है,उनमें
हवा भरना उतना ही मुश्किल।काफ़ी पड़ताल के बाद यह बात साबित हो पाई है कि साठ साल के
वादों में जितनी हवा नहीं थी,साल भर में उससे ज़्यादा भर दी गई है।अब हवा पर तो
किसी का नियंत्रण नहीं है वर्ना इसकी सप्लाई बंद की जा सकती थी।वादों में हवा है
या हवा में वादे,इससे वादों की बुनियादी स्थिति में फर्क नहीं पड़ता।
अब जब आरोप लग चुका है तो ज़ाहिर है यह हवा में
तो नहीं होगा।मगर इसके लिए एक अदद दूरबीन की नहीं सूक्ष्मदर्शी की ज़रूरत होती है।दूर
से हवा का अनुमान लगाना कठिन होता है।हवा का अहसास पास आकर ही होता है।जब वह बगल
से गुजरती है तो पता चलता है कि वह मलयानिल है या लू का थपेड़ा ! पहाड़ की हवा जहाँ
दिल को सुकून देती है,वहीँ मैदानी हवा तन सोख
लेती है।वादों में भरने वाली हवा गरम होती है इसीलिए झम्म से उड़ जाती है।ऐसी
वादे-हवा को देखने के लिए ही दूरबीन निकालनी पड़ती है।
हवाबाजी करना बच्चों का खेल नहीं है।इसके लिए
सतत अभ्यास की ज़रूरत होती है।वादों में हवा भरने के लिए उसे बाहर से भी आयात किया
जाता है।इसके लिए बार-बार हवाई यात्रायें करनी पड़ती हैं।विदेशों में जाकर पम्प
करना पड़ता है,तब कहीं जाकर विकास का गुब्बारा फूलता है।जिनके पास न काम बचा है,न
हवा,वे वादे भी करें तो किस भरोसे ? बिना हवा के काम तो क्या वादे भी नहीं उडाये
जा सकते।इसलिए हवा भी उन्हीं की है,जिनके पास वादे करने के करतब हैं।
वादों को हवा का साथ बहुत रास आता है।वे स्वयं
जल्द से जल्द उड़ना चाहते हैं ताकि नए वादे के लिए स्पेस पैदा हो सके।शायद इसीलिए
आजकल वादे हवा के संग ‘स्पेस’ में अधिक घूम रहे हैं।जिन्हें हवाबाजी का ज़्यादा शौक
हैं,वे ‘स्पेस’ में ‘मास्क’ लगाकर जाएँ क्योंकि वहाँ की हवा में ऑक्सीजन नहीं
होता।
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