रविवार, 21 अप्रैल 2024

चुनावी-दौरे पर नेताजी

मेरे पड़ोस में एक बड़का नेताजी रहते हैं।आमतौर पर उनकी हरकतें सामान्य नहीं होती हैं पर जैसे ही चुनाव की घोषणा हुई,उनकी काया में अजीब-सी हरकत होने लगी।आँखें सुनने लगीं और कान देखने लगे।उनकी ज़ुबान में मिसरी-सी घुल गई।उन्होंने ऐलान कर दिया कि बहुत हुआ।अब वह जनता से मिले बिना नहीं रह सकते।पूरे पाँच साल हो गए जब वह आख़िरी बार लोगों के बीच गए थे।देश-सेवा में ऐसा फँसे कि जेल जाने तक की नौबत गई थी।यह तो कहो समय रहते वह सही समय पर जाग गए और साथ ही उनकी क़िस्मत भी।जागते ही मंत्री-पद की क़सम उठा ली।और फिर उसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा।इस व्यस्तता में उनका चुनाव-क्षेत्र भी लपेटे में गया।उसका नाम तक भूल गए।फिर क़िस्मत ने पलटी खाई।चुनावी-शंखनाद ने उनका स्मृति-दोष अचानक दूर कर दिया।अब उसी क्षेत्र से मिलने की चाहत में वह एकदम से छटपटा उठे।

अपने वातानुकूलित कक्ष से बाहर आकर उन्होंने फ़ौरी तौर पर मुआयना किया।मौसम में गर्मी तो बहुत थी पर सत्ता की गर्मी के आगे कुछ भी नहीं।उन्होंने तुरंत अपने सगे कार्यकर्ताओं को नसीहत दी कि वे मैदानी-कार्यकर्ताओं से तमीज़ से पेश आएँ।चुनाव संपन्न होने तक अपने जोश पर क़ाबू रखें।उनका क्षेत्र इस बार अति संवेदनशील घोषित हुआ है।वह स्वयं भी पर्याप्त संवेदनशील हैं।उन्होंने पहला संकल्प यही लिया कि जनता की वेदना को ज़रूर छुएँगे।अपने क्षेत्र को पर्यटन-केंद्र बनाकर ही दम लेंगे।उनके दौरे का इंतज़ाम फ़ौरन से पेश्तर किया जाए।वह किसानों,ग़रीबों,पीड़ितों और शोषितों से भरी-दुपहरी में मिलना चाहते हैं।अपने क़रीबियों से उन्होंने अपने मन की बात बता दी।


नेताजी अपना जीवन देश के लिए पहले ही समर्पित कर चुके हैं।उसीसमर्पणको फिर से ऊँचे रेट पररिडीमकरवाने काटैम गया है।उन्हें ख़ुद से ज़्यादा अपनी जनता पर भरोसा है।उसके पास नेताजी की तरह याददाश्त लौटने की कोई दवा है और ही कोई विकल्प।यह सोचकर नेताजी को बड़ा सुकून मिला और वह मिशनबेड़ापारके लिए जुट गए।


सूरज अभी निकला नहीं था पर नेताजी जन-संपर्क के लिए निकल पड़े।उनका क़ाफ़िला बड़ा सामान्य-सा था।महज़ दस कैमरे और बीस पत्रकार ही जुट पाए थे।नेताजी को ज़्यादा तामझाम पसंद नहीं था।क़ाफ़िले में सबसे आगे सौ मोटरसाइकिलें धूल उड़ा रही थीं।इसके ठीक पीछे पचासेक गाड़ियाँ धूल साफ़ करते हुए आगे बढ़ रहीं थीं।क्षेत्र के विकास की तरह इनकी गति भी मद्धम थी।नेताजी का निर्देश था कि क्षेत्र के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना है।इन गाड़ियों में नेताजी की एक भी निजी गाड़ी नहीं थी।वह सालों से जनसेवा में कट्टरता से इतने लीन थे कि स्वयं की कभी सुध ही ली।।इस कमी को उनके परिवारी जनों ने पूरा किया।चार-चार हाथों से विकास का साथ दिया।नेताजी ने उन्हें सड़कें और खदाने दीं,पुल दिए।बदले में उन्हेंमिशनपूरा करने के लिए मशीनरी मिली और जनता को मिले ढेर सारे वादे।वादों की सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि वे एक्सपायरी डेट के साथ आते हैं।नए वादे आते ही पुराने स्वतः पूरे हुए मान लिए जाते हैं।आज ऐसे ही नए वादों का जन्मदिन था।


गाँव की सीमा आते ही नेताजी पैदल हो गए।कई कार्यकर्ता पीछे छूट गए पर मीडिया के दिव्य नेत्रों से वह नहीं बच सके।बड़ी मुश्किल से नेताजी एक खेत में प्रकट हुए।वहाँ फ़सल कट रही थी।यह देखकर नेताजी को धक्का लगा।उनके रहते दूसरा कोई फसल कैसे काट सकता है।उन्होंने झट से एक हाथ से हँसिया झटक लिया।अगले पल गेहूँ की दो-तीन बालियाँ ज़मीन पर थीं।साथ में ख़ून भी।हँसिया के मालिक की चीख निकल गई।सरकार ज़ख़्मी हो गए हैं।इस ख़बर से घटनास्थल पर हड़कंप मच गया।ज़मीनी रिपोर्ट करने के लिए मैं बिलकुल पास में ही खड़ा था।अद्भुत दृश्य था।नेताजी लहुलुहान थे पर चेहरे पर तनिक भी शिकन नहीं थी।हँसिया पूरी तरह निर्दोष था।फसल की पत्तियों ने ही उनके हाथ को छलनी कर दिया था।मैंने नेताजी को आश्वस्त देखकर सवाल किया,‘फसल काटते हुए आपको गंभीर चोट लगी है।इससे आपके मंसूबों पर पानी तो नहीं फिरेगा ?’


अरे बंधु,यही मेरी जीत का टीका है।रक्त की एक-एक बूँद से जनता इसका जवाब देगी।कहते हुए नेताजी ने हँसिया उसके मूल स्वामी को सौंप दिया।सरकार,आप भूखे होंगे।मैं आपका पेट भी नहीं भर सकता।ऊपर से इतना रक्तपात हो गया।मैं बहुत बड़ा पापी हूँ।कहते हुए किसान बिलख उठा।नेताजी ने उसे गले लगा लिया।मन ही मन वह खुश थे कि उनकीपंचवर्षीय-भूखका इंतज़ाम हो गया है।वह किसान के गले पड़े ही थे कि सहसा एक साथ कई आवाज़ें आईं, ‘खच्च ! खच्च ! खच्च !’ सबकी आँखें चौंधिया गईं।नेताजी ने अपनी मशीनरी को संकेत दिया।वे सब अगलेटारगेटकी तरफ़ धुँआ छोड़ते हुए बढ़ चले।


अगले दिन सभी अख़बारों के मुखपृष्ठ पर सचित्र खबर छपी, ‘नेताजी ने अपने क्षेत्र में श्रमदान में भाग लिया और रक्तदान का शुभारंभ किया।उनसे मिलकर किसान खूब रोए !’


संतोष त्रिवेदी 


2 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

नेता जी अमर रहें | हर पांच के बाद आते रहें | सुन्दर |

आलोक सिन्हा ने कहा…

सुन्दर

एक अदद सम्मान के लिए !

वह एक सामान्य दिन नहीं था।मैं देर से सोकर उठा था।अभी अलसाया ही था कि ख़ास मित्र का फ़ोन आ गया।ख़ास इसलिए क्योंकि उनसे...