रविवार, 26 मई 2024

साहित्य को उठाने हेतु ज़रूरी सुझाव

कल सुबह मेल खोली तो ख़ुशी के मारे उछलने ही वाला था,पर घुटनों ने साथ नहीं दिया।किसी इनामी संस्था के सचिव का पत्र था।उन्होंने इस वर्ष के सम्मान देने के लिए मुझसे सुझाव माँगे थे।उत्सुकतावश संस्था का परिचय पढ़ने लगा।उसमें साफ़ लिखा था कि संस्था बहुत पुरानी है।विगत चालीस वर्षों से साहित्य-सेवा में अहर्निश जुटी हुई है।इस दौरान वह अनगिनत लेखकों और कवियों की झोली में सम्मान उड़ेल चुकी है।जो अपने लेखन से साहित्य-जगत में हलचल मचाने में असमर्थ होते हैं,संस्था तन और मन से उनकी सहायता करती है।जिस दिन उन्हें सम्मान की पुड़िया दी जाती है,उस दिन इंटरनेट मीडिया क्रैश हो जाता है।संस्था का दावा था कि उसके द्वारा सम्मानित साहित्यकार हर गली-मुहल्ले में मिल जाएँगे।इस वर्ष उनकी संस्था इक्कीस साहित्यकारों की भूख शांत करने के लिए प्रतिबद्ध है।इस पवित्र कार्य में आपसे सुझाव आमंत्रित हैं।आप अपनी संस्तुति भी दे सकते हैं।हम उस पर उदारतापूर्वक विचारेंगे।


पत्र पढ़कर घुटनों को भीफीलगुडहुआ।इतनी ऐतिहासिक संस्था मुझसे सुझाव माँग रही है।मुझे भी सम्मानित करने का हौसला रखती है।यह मुझ पर ऊपर वाले की कृपा है।शहर के साहित्यकारों ने कभी मेरी सुध नहीं ली।ज़रूर इस साहित्य-सरगना को मुझमें ऐसा कुछ दिखा होगा,जो कभी मुझे नहीं दिखा।मैं उनकी उम्मीद नहीं तोड़ूँगा।मैंने साहित्य-सेवा करने का संकल्प उठा लिया।संस्था-सचिव को कई सुझाव लिख डालेखटाखट-खटाखट।व्यापक साहित्य-हित में उसी को यहाँ जारी कर रहा हूँ।


आपकी संस्था बड़ा नेक काम कर रही है।साहित्य की सबसे ज्वलंत समस्या का समाधान करने के लिए आप बधाई के पात्र हैं।बिलकुल सही जगह आपने संपर्क साधा है।वरना आजकल पता नहीं लोग किस-किस को साध रहे हैं ! रही मेरी बात,कई सम्मानार्थियों से मेरे वैध संबंध हैं।वे मुझे उठाते हैं,मैं उन्हें।आप नाहक परेशान हो रहे हैं।एक खोजेंगे,इक्कीस मिलेंगे।यह मेरी गारंटी है।अव्वल तो अब आपको बीस ही खोजने हैं।मैं आपके प्यार भरे अनुग्रह को इंकार नहीं कर सकता।इन दिनों लेखक और कवि कण-कण में सम्मान खोज रहे हैं।इससे साहित्य खूब फल-फूल रहा है पर साहित्यकारों में सम्मान की भीषण कमी है।उनकी इस क्षतिपूर्ति के लिए आपकी संस्था का प्रयास स्तुत्य है।इसके लिए सर्वप्रथम संस्था सम्मान की पात्र है।इसकी संस्तुति मैं कर रहा हूँ।प्रशस्ति-पत्र भी मैं ही लिखूँगा।एक सच्चा लेखक अहसानफ़रामोश नहीं होता।


बहरहाल,मेरे पास कुछ अनुभव हैं,जिन्हें आपसे साझा कर रहा हूँ।सम्मान-रहित जीवन कैसा होता है,यह मुझसे बेहतर कौन जानता है!आपके पास जो भी संस्तुति आए,ध्यान से देखना कि उसे पहले कोई सम्मान मिला है कि नहीं।अगर नहीं मिला तो फिर रिस्क लें।हो सकता है,उसे इसीलिए मिला हो कि सम्मान देने वालों का वह लिहाज़ करता हो।साहित्यिक-गैंगस्टर को साहित्यकार मानता हो।ऐसे लोगों को सम्मान बाँटना कुल्हाड़ी पर पैर मारना है।वह संस्था का असली उद्देश्य उजागर कर सकता है।ऐसे को सम्मानित करने का कोई औचित्य नहीं,जो सम्मान तक ठीक से हज़म नहीं कर सकता।इससे बेहतर है,अपने गैंग का विस्तार करें।सम्मानार्थी को व्हॉट्स-अप ग्रुप का सक्रिय सदस्य होना अनिवार्य हो।परिवारदार आदमी हो तो सोने पर सुहागा।समारोह में श्रोताओं की संख्या की चिंता भी नहीं करनी पड़ेगी।


अब दूसरे पहलू पर ज़्यादा गौर करिए।जिसके परिचय में जितने ज़्यादा सम्मान हों,उन्हें वरीयता दें।इनके मुँह में सम्मान लगा होता है।नहीं मिलने पर और ख़ूँख़ार हो उठते हैं।पक्षपात का आरोप और लगायेंगे।ऐसेसीरियल-रिसीवरसरोकार से ज़्यादा सम्मान के प्यासे होते हैं।बारात में फूफा के बाद सम्मान का कोई भूखा होता है तो यही हैं।ये भले कठिन काव्य के प्रेत हों,पर इनकी सूरत एकदम सपाट और सरल होती है।गोष्ठियों में ये अपने लेखन को छोड़कर लिफ़ाफ़े और शॉल पर गर्व करते हैं।इनकी झोली कितनी भी भर जाए,पुष्पक-विमान में एक सीट की तरह एक लिफ़ाफ़े की गुंजाइश हमेशा रहती है।ये अनुभवी लोग होते हैं।दरअसल, सम्मान लेने की एक तमीज़ होती है।ये इसमें निपुण होते हैं।अख़बार के लिए स्वयं रपट भी ख़ुद लिख देते हैं।अगर भूखे-नंगों को सम्मान दोगे तो बड़ी थू-थू होगी।मेरी बात और है।मैं ऑलरेडी सम्मान-हीन हूँ।साहित्य के लिये पूरा जीवन होम कर चुका हूँ।बस,सम्मान पाने भर के लिए प्राण अटके हैं।मैंने भी बीड़ा उठाया है कि बिना अपने हिस्से का सम्मान लिए संसार नहीं छोड़ूँगा,साहित्य क्या चीज़ है ! हाँ,बाक़ियों के बारे में थोड़ा सतर्कता बरतना।सब मेरे जैसे संकल्पशील नहीं हैं।सम्मान पाने पर गैंग और ग्रुप से भी भाग सकते हैं।संस्था चलानी है तो सहेजना और समेटना सीखिए।ईमानदारी से सरकार तक नहीं बचती,संस्था कैसे बचेगी

एक आख़िरी सुझाव।सभी सम्मानयाफ़्ता लोगों की सूची बना लें।सम्मान की टोपी इन्हीं के इर्द-गिर्द घूमनी चाहिए।इनसे सहयोग वसूला जाए ताकि संस्था के साथ इनकापरमानेंट बॉण्डस्थापित हो सके।ध्यान रहे,समय-समय परबॉण्डकैश भी कराते रहें !


संतोष त्रिवेदी 


1 टिप्पणी:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

साहित्य सम्मान बांड भी जारी होने चाहिए | बढ़िया|

न तुम जीते,न हम हारे😉

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