चुनाव सिर पर हों और शो-बाजी न हो,यह कैसे हो सकता है !
सबने अपने-अपने घोड़े खोल दिए हैं।यह तो चुनाव बाद ही पता चल पाएगा कि ये घोड़े थे
या गधे।हमारे यहाँ घोड़े खोलने की परम्परा प्राचीनकाल से है।तब चक्रवर्ती सम्राट बनने
के लिए अश्वमेध का आयोजन होता था।जो राजा का घोड़ा पकड़ता,माना जाता कि वह उसको
चुनौती दे रहा है।तब राजा को उसे परास्त करना होता था.अब खुला खेल है।घोड़े और गधे
सब मिलकर आपस में लड़ लेते हैं।मजे की बात यह है कि सब एक-दूसरे को गधा समझते हैं।
कई तरह के शो चल रहे
हैं।एकल-शो महागठबंधन के शो पर भारी पड़ता दिख रहा है।अपने शो में अतिरिक्त भार
लाने के लिए पहले गठबंधन बनाया गया,फ़िर उसे ‘महा’ किया गया।महा शब्द जुड़ते ही वह
महान हो गया।सामने एक महान हैं तो गठबंधन में जितने शामिल हैं,सब महान हैं।यह
समाजवादी सोच है।यहाँ कोई छोटा हिस्सेदार नहीं है।सबको अपनी महानता बचानी है तो
एक-दूसरे को महान बताना है।जनता भी समझदार है।वह जान लेती है कि जब इत्ते सारे
महान एक जगह जुटे हैं तो जाहिर है कि कोई ‘महान’ उद्देश्य ही होगा।
गठबंधन वाले कह रहे हैं कि
अगर शो-बाज़ी से ही सत्ता मिल रही है तो वे भी इसमें पीछे नहीं रहेंगे।शो में
किरदारों ने क्या परफार्मेंस दी,इस पर फोकस कम होता है।शो करने वाले चाहते हैं कि
ऐसे एंगल से फोटोग्राफी की जाय जिससे कैमरा खाली गड्डे को भी आदमी की मुंडी दिखा सके।इस
हिकमत से पचास हज़ार की संख्या पाँच लाख बन जाती है।यानी शो-बाजी में ट्रिक्स आनी
भी जरूरी है।जिसकी ट्रिक काम कर गई,वह अगले पाँच साल में गड्ढे में गिरे आदमी को
फोटोशॉप के जरिये बाहर निकाल लाएगा।उसके विकास का असली चित्र यही होगा।
ऐसे ही एक महा-शो को
सफलतापूर्वक सम्पन्न कर चुके एक शोमैन से हमने पूछा,’आप अपनी जीत को लेकर कितना
आश्वस्त हैं ?’ शोमैन ने पूरे आत्मबल को चेहरे पर घसीटते हुए उत्तर दिया,’हमरा
कन्फीडेंस का लेबल एकदम्मै हाई है।ठीक उतना ही जेतना ऊ हर खाते में पन्द्रह लाख जमा
कर ‘मन की बात’ में ले आते हैं।आप कभी उनसे भी पूछ-पछोर किया करो।एक तो हम जनता के
खातिर साँप तक बन गए हैं दूसरे हमारे गठबंधन में आपको हर तरह का वैरायटी मिलेगा।लिखो,यह
सब लिखो अपने पेपर मा।’
हमने उनसे आखिरी सवाल किया
,’क्या चुनाव बाद भी गठबंधन बचा रहेगा ?’ उन्होंने खिलखिलाते हुए उत्तर दिया,’ई शो-बाज़ी
का दौर है बबुआ ! खेल के बाद कहीं तम्बू लगा रहता है क्या,बुड़बक कहीं के !’
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