वे दर्द से तिलमिला रहे थे।हमने दवा देनी चाही तो भड़क गए।कहने लगे-दर्द के बदले दर्द देना ही मेरी दवा है।दर्द देकर ही दिल को सुकून आएगा।इसलिए माफ़ करना,आपकी यह दवा हमारे किसी काम की नहीं। हम चिंतित होते हुए बोल पड़े-मगर आपको दर्द दिया किसने है ? यह तो पता है ?उन्होंने हमारी ओर वीर रस में सना बयान फेंकते हुए कहा-उसका पता हमें मालूम है।खोजना नहीं है।बस दर्द देने का मसला जरा व्यक्तिगत है,इसलिए उसे दर्द तभी दूँगा,जब मामला निरा व्यक्तिगत होगा।हम कयामत के दिन तक उसका इंतज़ार करेंगे।जिस दिन वह अकेले में मिलेगा,अपना सारा दर्द उसे हैंडओवर कर दूँगा।
मैं उनके दर्द को अब अंदर से समझने की कोशिश करने में जुट गया पर सीबीआई की तरह मेरे हाथ अभी तक खाली थे।जब उनसे यह मुश्किल बताई तो कहने लगे-ऐसे ही थोड़ी दर्द की अनुभूति होगी ! इसके लिए आपको व्यक्तिगत होना होगा।आप इस दर्द को तभी महसूस कर सकते हैं जब मेरी दशा को प्राप्त होंगे ।‘मैंने अपनी इस व्यक्तिगत कमी को तुरंत पकड़ लिया।उनके पास दर्द था और मेरे पास दवा की बनी-बनाई पुड़िया।इसीलिए उनके दर्द की उच्चता को समझ नहीं पा रहा था।मैंने दवा वाली पुड़िया अपने से परे धकेलते हुए उनको अहसास दिलाया-अब हम आपके दर्द के बराबर के भागीदार हैं।मेरे पास दवा नहीं है और आपके पास भी नहीं है।अब तो बता दें कि दर्द देने वाले को कैसे दर्द दिया जाएगा ताकि हमें भी फौरी राहत मिल सके।‘
वे जोर से कराहे-आप हमारे दर्द को हल्के में ले रहे हैं।आप हमदर्द हो ही नहीं सकते।हमें बयान देने पड़ते हैं और आप केवल बयान लेते हैं।लीजिये,एकठो बयान हम अभी दिए देते हैं।हमारा मुँह भले ही खुला हुआ है,पर हाथ बँधे हुए हैं।जिस दिन हाथ खुलेंगे,उनसे दो-दो हाथ कर लेंगे।आज का ताजा बयान यही है।‘
‘पर अब तो बहत्तर घंटे से भी ज्यादा हो चुके हैं।मुँह बंद करके हाथ चलाइये।हम आपके साथ हैं।’मैंने उनके दर्द को अंतिम रूप से निपटाने की गरज से प्राइम टाइम की स्टोरी में पेश कर दिया।
‘आप हम जैसे कभी नहीं हो सकते।मैं कुर्सी से बंधा हुआ जीव हूँ और आप ठहरे छुट्टा विचरण करने वाले विशेष जन्तु।जिस दिन हम कुर्सी से मुक्त होंगे,आपकी तरह केवल सवाल पूछेंगे,उस दिन दुश्मन की कमर भी तोड़ देंगे।कुर्सी से हमारे हाथ बँधे हैं,सिर्फ मुँह खुले हैं इसलिए केवल मुँहतोड़ जवाब दे रहे हैं।कुर्सी पाने का दर्द तुम क्या जानो पत्रकार बाबू ?’
मुझे मेरे दर्द की दवा मिल गई थी।उनके पास अभी भी भारी मात्रा में दर्द मौजूद था।जिस दिन उन्हें उपयुक्त समय और जगह मिल जायेगी,उनके दर्द का भी स्थाई इलाज हो जायेगा।दर्द को तभी तक आराम है,जब तक वो व्यक्तिगत नहीं हो जाते।खबर लिखे जाने तक दर्द को हिरासत में लिया जा चुका था।उम्मीद है कि दर्द को जल्द ही जमानत की दवा मिल जाएगी।
मैं उनके दर्द को अब अंदर से समझने की कोशिश करने में जुट गया पर सीबीआई की तरह मेरे हाथ अभी तक खाली थे।जब उनसे यह मुश्किल बताई तो कहने लगे-ऐसे ही थोड़ी दर्द की अनुभूति होगी ! इसके लिए आपको व्यक्तिगत होना होगा।आप इस दर्द को तभी महसूस कर सकते हैं जब मेरी दशा को प्राप्त होंगे ।‘मैंने अपनी इस व्यक्तिगत कमी को तुरंत पकड़ लिया।उनके पास दर्द था और मेरे पास दवा की बनी-बनाई पुड़िया।इसीलिए उनके दर्द की उच्चता को समझ नहीं पा रहा था।मैंने दवा वाली पुड़िया अपने से परे धकेलते हुए उनको अहसास दिलाया-अब हम आपके दर्द के बराबर के भागीदार हैं।मेरे पास दवा नहीं है और आपके पास भी नहीं है।अब तो बता दें कि दर्द देने वाले को कैसे दर्द दिया जाएगा ताकि हमें भी फौरी राहत मिल सके।‘
वे जोर से कराहे-आप हमारे दर्द को हल्के में ले रहे हैं।आप हमदर्द हो ही नहीं सकते।हमें बयान देने पड़ते हैं और आप केवल बयान लेते हैं।लीजिये,एकठो बयान हम अभी दिए देते हैं।हमारा मुँह भले ही खुला हुआ है,पर हाथ बँधे हुए हैं।जिस दिन हाथ खुलेंगे,उनसे दो-दो हाथ कर लेंगे।आज का ताजा बयान यही है।‘
‘पर अब तो बहत्तर घंटे से भी ज्यादा हो चुके हैं।मुँह बंद करके हाथ चलाइये।हम आपके साथ हैं।’मैंने उनके दर्द को अंतिम रूप से निपटाने की गरज से प्राइम टाइम की स्टोरी में पेश कर दिया।
‘आप हम जैसे कभी नहीं हो सकते।मैं कुर्सी से बंधा हुआ जीव हूँ और आप ठहरे छुट्टा विचरण करने वाले विशेष जन्तु।जिस दिन हम कुर्सी से मुक्त होंगे,आपकी तरह केवल सवाल पूछेंगे,उस दिन दुश्मन की कमर भी तोड़ देंगे।कुर्सी से हमारे हाथ बँधे हैं,सिर्फ मुँह खुले हैं इसलिए केवल मुँहतोड़ जवाब दे रहे हैं।कुर्सी पाने का दर्द तुम क्या जानो पत्रकार बाबू ?’
मुझे मेरे दर्द की दवा मिल गई थी।उनके पास अभी भी भारी मात्रा में दर्द मौजूद था।जिस दिन उन्हें उपयुक्त समय और जगह मिल जायेगी,उनके दर्द का भी स्थाई इलाज हो जायेगा।दर्द को तभी तक आराम है,जब तक वो व्यक्तिगत नहीं हो जाते।खबर लिखे जाने तक दर्द को हिरासत में लिया जा चुका था।उम्मीद है कि दर्द को जल्द ही जमानत की दवा मिल जाएगी।
2 टिप्पणियां:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "एक कटु सत्य - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जहाँ से दर्द हो रहा हो, वहाँ से कहाँ निकलेगी भला दवा।
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