रविवार, 28 फ़रवरी 2016

भारतमाता पर सबका हक़ !

देश को बर्बाद करने का हक केवल ख़ास लोगों को ही नहीं है।आम भी यह काम बखूबी कर सकते हैं।देश सबका है पर देश का कौन है,यह शोध का विषय है।इस समय आम बौराए हुए हैं।फल लटकने के भी पूरे चांस हैं।वे दिन गए जब छुप-छुपाकर अपनी बात मनवा ली जाती थी।अब छाती पर चढ़कर,दम ठोंककर अपना ‘हक’ वसूल लिया जाता है।तब इसे ‘ब्लैकमेल’ कहते थे क्योंकि परदा-दारी से ही काम करने का रिवाज था।डकैतों-लुटेरों में भी भलमनसाहत के कुछ कीटाणु बचे हुए थे।वे नीम अँधेरे में यह काम कर लेते थे। पहले ब्लैकमेल करने वाले को भी पता होता था कि यह काला कारनामा है।इसलिए कुछ लिहाज़ बाकी था।अब सरकार तक को भी तनिक आशंका नहीं होती कि यह ‘ब्लैक’ वाला मेल-मिलाप है।गला दबोचने वाले और बदले में उपहार उगलने वाले दोनों पक्ष अब व्यावहारिक हो चुके हैं।हुड़दंग और आगजनी पूरी तरह रिस्क-फ्री है।देशहित में ऐसा शौर्य-प्रदर्शन करते हुए मर-मरा गए तो मुआवजा निश्चित है।यह कर्म नई रोशनी में देशभक्ति-सा झक सफ़ेद हो गया है।

दिन-दहाड़े गरदन दबोचकर फिरौती वसूली जा सकती है अगरचे बंदे में दम हो।भारतमाता पर प्यार लुटाने वाले सड़कों और पटरियों पर जम गए हैं।वे पिछड़े हैं इसलिए आगे बढ़ना चाहते हैं।इसके लिए भारतमाता की गरदन से मुफीद कुछ और नहीं है।नारेबाजी से कुछ हासिल नहीं होता,बल्कि देशद्रोह का आरोप और लग जाता है।पूरी व्यवस्था को अपने हाथ में लेकर देशभक्त बना रहा जा सकता है।जल और जमीन उनके इशारों की मोहताज़ हो गई है।पिछड़े होकर वे इतने कारसाज हैं तो अगड़े बनते ही वे देश को कितना आगे ले जा सकते हैं,इसका अंदाज सरकार को भी नहीं है।वे अपने हाथों में आग लिए खड़े हैं।रास्ते वीरान हों तो आगे बढ़ें।हक की लड़ाई है।हक हमेशा रहना चाहिए,देश रहे न रहे।

देश से प्रेम करने वाले लोग पटरियों पर कब्जा कर लेते हैं,दूध-पानी रोक देते हैं,जगह-जगह आगजनी करते हैं।सरकार तो इससे बाद में निपट लेगी।उसे पहले अपने खिलाफ़ हो रही साजिश का पर्दाफ़ाश भी करना है।वह इतनी निरीह हो गई है कि स्वयं के राज में न काम कर पा रही है,न साजिश रोक पा रही है।सबसे बड़ी पीड़ित वही है।अब जब तक उसकी पीड़ा का निदान नहीं हो जाता,लोग धैर्य बनाए रखें।‘अच्छे दिन’ लाने की वजह से उसकी ऐसी हालत हुई है।उसे यह नहीं पता था कि लोगों को अच्छे दिन’ बैपरने का सलीका भी नहीं आता।


पिछड़ा होने का हक नहीं माँगा जा रहा है,बल्कि देश जुर्माना भर रहा है।माँगने से तो ठीक-ठाक भीख भी नहीं मिलती।आमरण अनशन से कुछ मिलता तो लोकपाल सबसे पहले मिलता।अब न अनशन है न लोकपाल पर देखिए,देश मजे से चल रहा है।सही बात तो यह है कि हक लेने की अर्हता उसी के पास है जो डंडे से हाँक सकता हो।एक किसान अपने शरीर को तो साध नहीं पाता।अपना फैशन पूरा करने के लिए उसे पेड़ से टांग और देता है।ऐसे लोग हक पाकर भी यही सब करेंगे जो अब कर रहे हैं।इसलिए सरकार को चाहिए कि वह उन्हें ही हक दे,जिनमें कम से कम डंडा उठाने की ताकत हो।

1 टिप्पणी:

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " "सठ सन विनय कुटिल सन प्रीती...." " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

अनुभवी अंतरात्मा का रहस्योद्घाटन

एक बड़े मैदान में बड़ा - सा तंबू तना था।लोग क़तार लगाए खड़े थे।कुछ बड़ा हो रहा है , यह सोचकर हमने तंबू में घुसने की को...