परीक्षाओं का समय है।बच्चों की होने वाली हैं,सरकार की हो रही है।स्कूली परीक्षा देने का मौक़ा जिन्दगी में एकाध बार ही आता है पर सरकार आए दिन देती रहती है।ऐसी भी क्या परीक्षा जिसे देकर ज़िन्दगी भर के लिए सर्टिफिकेट मिल जाता है।इसमें फल-सुधार की गुंजाइश भी बहुत कम होती है।अति सयाने लोग रट्टा मार कर मैदान मार लेते हैं पर अमूमन परीक्षार्थी के पास सीमित विकल्प होते हैं।ऐसी परीक्षाएं बच्चे एक बार देते हैं और उसका फल ज़िन्दगी भर भोगते हैं।
सरकार की परीक्षा जरा अलग टाइप की होती है।इसमें पेपर देने वाला खुदई पेपर सेट कर लेता है।उसकी जाँच भी खुद करता है पर फल का टोकरा दूसरों के ऊपर गिरता है।यह झुमका भी नहीं है जो केवल बरेली में ही गिरता हो।इसकी जद में बरेली और रायबरेली सब आते हैं।बार-बार आते हैं।बच्चे पेपर देने से पहले खाना-पानी तक भूल जाते हैं पर सरकार परीक्षा-भवन जाने से पहले कड़ाही भर हलवा उदरस्थ करती है।हलवे में पड़े काजू और चिलगोजे अपनी परीक्षा में पहले ही पास हो जाते हैं।जनता खाली हुई कड़ाही की छन्न से ही अपने छिन्न-भिन्न होने का ज़श्न मना लेती है।
इस परीक्षा की सबसे बड़ी खासियत है कि इसमें पेपर देने वाला पहले से ही पास होता है।वह सवालों को आगे पास भर करता है।परीक्षार्थी के पास एक नहीं हज़ार मौके होते हैं सुधरने के लिए।अव्वल तो उसे फेल होने की आशंका तक नहीं होती।अगर ऐसी कोई साजिश हुई भी तो वह एक ट्वीट से ‘सत्यमेव जयते’ का बिगुल बजा देता है।
डर कर परीक्षा देने वाले कायर होते हैं।उनको दुबारा मौक़ा देना मतलब कायरता को प्रतिष्ठित करना है।सरकार बहादुर होती है इसीलिए उसकी परीक्षा रोज होती है।वो इन परीक्षाओं से घबराती भी नहीं।उसे पता होता है कि उसकी अच्छी पढाई का असर तो उस पर पड़ता है,खराब का नहीं।
किसी सरकार का फेल होना देशहित में नहीं होता।उसकी परीक्षा देश की परीक्षा होती है।इसलिए बच्चे अपनी परीक्षाओं में पास हों न हों,सरकार का पास होना उतना ही निश्चित है,जितना झुमके का बरेली में गिरना।
सरकार की परीक्षा जरा अलग टाइप की होती है।इसमें पेपर देने वाला खुदई पेपर सेट कर लेता है।उसकी जाँच भी खुद करता है पर फल का टोकरा दूसरों के ऊपर गिरता है।यह झुमका भी नहीं है जो केवल बरेली में ही गिरता हो।इसकी जद में बरेली और रायबरेली सब आते हैं।बार-बार आते हैं।बच्चे पेपर देने से पहले खाना-पानी तक भूल जाते हैं पर सरकार परीक्षा-भवन जाने से पहले कड़ाही भर हलवा उदरस्थ करती है।हलवे में पड़े काजू और चिलगोजे अपनी परीक्षा में पहले ही पास हो जाते हैं।जनता खाली हुई कड़ाही की छन्न से ही अपने छिन्न-भिन्न होने का ज़श्न मना लेती है।
इस परीक्षा की सबसे बड़ी खासियत है कि इसमें पेपर देने वाला पहले से ही पास होता है।वह सवालों को आगे पास भर करता है।परीक्षार्थी के पास एक नहीं हज़ार मौके होते हैं सुधरने के लिए।अव्वल तो उसे फेल होने की आशंका तक नहीं होती।अगर ऐसी कोई साजिश हुई भी तो वह एक ट्वीट से ‘सत्यमेव जयते’ का बिगुल बजा देता है।
डर कर परीक्षा देने वाले कायर होते हैं।उनको दुबारा मौक़ा देना मतलब कायरता को प्रतिष्ठित करना है।सरकार बहादुर होती है इसीलिए उसकी परीक्षा रोज होती है।वो इन परीक्षाओं से घबराती भी नहीं।उसे पता होता है कि उसकी अच्छी पढाई का असर तो उस पर पड़ता है,खराब का नहीं।
किसी सरकार का फेल होना देशहित में नहीं होता।उसकी परीक्षा देश की परीक्षा होती है।इसलिए बच्चे अपनी परीक्षाओं में पास हों न हों,सरकार का पास होना उतना ही निश्चित है,जितना झुमके का बरेली में गिरना।
1 टिप्पणी:
बच्चे अपनी परीक्षाओं में पास हों न हों,सरकार का पास होना उतना ही निश्चित है,जितना झुमके का बरेली में गिरना।.... बहुत सही ..लेकिन सरकार तो झुमके में ही उलझकर रह जाती हैं पांच साल ....
आजकल हमारे बच्चों के साथ ही हमारी भी परीक्षाएं चल रही हैं .....
बहुत बढ़िया सामयिक प्रस्तुति ..
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