कहते हैं पुतलों में जान नहीं होती पर अब ऐसा नहीं रहा।पहले लगातार मौन रहने वाले को लोग पुतला कह देते थे।मतलब यह होता कि बंदा पुतले जैसा बेजान है।अब खूब बोलने वाले पुतले बन रहे हैं।बातें बनाने वाले पुतलों की डिमांड में हैं।मतलब यह भी है कि जो बोलने से रोके नहीं रुक रहे हैं,उन्हें पुतला बना दिया जाय।इससे लोगों को उनके मुँह बंद रखने का भरम तो होगा ही बाकी दुनिया भी हमारी अनोखी उपलब्धि से महरूम नहीं होगी।इसलिए हम विलायत को लगातार पुतले सप्लाई कर रहे हैं।ये पुतले भले मोम के बने हैं पर इनकी ब्रांड वैल्यू मोम जैसी नहीं है।
देश में होली का माहौल है।इस वक्त कोई किसी बात का बुरा नहीं मान रहा।सो,नेताओं को भी कलाकारों और विदूषकों के साथ बुत बने रहने में कोई हर्ज़ नहीं।हम उस समय में जी रहे हैं जहाँ एक जीते-जागते इंसान से बुत बनना अधिक फ़ख्र की बात मानी जाती है।पुतले इतने ताकतवर हैं कि इसके लिए लोग नप रहे हैं।छोटा-मोटा आदमी अगर नप जाय तो जीते-जी उसकी मिटटी पलीद हो जाती है।यहाँ छप्पन-इंची छाती मोम बनकर पिघलने को आतुर है।वह नप कर भी दर्शनीय है।यही फर्क होता है छोटे और मोटे आदमी में,मिटटी और मोम में।
अच्छी खबर यह है कि हमारे पन्त-प्रधान के पुतले बन जाने के बाद मफलर-मैन को भी यह गौरव हासिल हो रहा है।यह बहुत अच्छी शुरुआत है।वास्तविक दुनिया में जो एक-दूसरे को फूटी आँख नहीं सुहाते,वे मोम के पुतले बने एक दूसरे के बगल में खड़े रहेंगे।जिनको लगता है कि ये कभी अपने आगे किसी की सुनते नहीं,पुतले बनाकर यह साबित किया जायेगा कि ऐसा नहीं है।वे इनसे अपने मन की बात कर सकते हैं।इस बात का भी पहले से इंतजाम कर लिया गया है कि इन्हें वहाँ घर का सा अपनापन मिले।इसीलिए मशहूर कॉमेडियन को भी इनके बीच जगह दी गई है।अब ‘बाबा जी के ठुल्लू’ के साथ ‘मेक इन इंडिया’ और ‘मैं ईमानदार हूँ’ की एक साथ प्रस्तुति होगी।ऐसे में हमारी देसी प्रतिभाओं से विलायत वाले भी जगमगा जायेंगे।
पहले नपना फिर मोम का पुतला बनना दोनों बातें प्रतिष्ठा की प्रतीक हैं।अब महापुरुष वही जो नपकर पुतला बन सके।होली तो आई है,चली जायेगी पर पुतलों के आपस में बुरा न मानने का मौसम बदस्तूर जारी रहेगा।किसी के पुतला बन जाने का आगे से हम भी बुरा नहीं मानेंगे।
देश में होली का माहौल है।इस वक्त कोई किसी बात का बुरा नहीं मान रहा।सो,नेताओं को भी कलाकारों और विदूषकों के साथ बुत बने रहने में कोई हर्ज़ नहीं।हम उस समय में जी रहे हैं जहाँ एक जीते-जागते इंसान से बुत बनना अधिक फ़ख्र की बात मानी जाती है।पुतले इतने ताकतवर हैं कि इसके लिए लोग नप रहे हैं।छोटा-मोटा आदमी अगर नप जाय तो जीते-जी उसकी मिटटी पलीद हो जाती है।यहाँ छप्पन-इंची छाती मोम बनकर पिघलने को आतुर है।वह नप कर भी दर्शनीय है।यही फर्क होता है छोटे और मोटे आदमी में,मिटटी और मोम में।
अच्छी खबर यह है कि हमारे पन्त-प्रधान के पुतले बन जाने के बाद मफलर-मैन को भी यह गौरव हासिल हो रहा है।यह बहुत अच्छी शुरुआत है।वास्तविक दुनिया में जो एक-दूसरे को फूटी आँख नहीं सुहाते,वे मोम के पुतले बने एक दूसरे के बगल में खड़े रहेंगे।जिनको लगता है कि ये कभी अपने आगे किसी की सुनते नहीं,पुतले बनाकर यह साबित किया जायेगा कि ऐसा नहीं है।वे इनसे अपने मन की बात कर सकते हैं।इस बात का भी पहले से इंतजाम कर लिया गया है कि इन्हें वहाँ घर का सा अपनापन मिले।इसीलिए मशहूर कॉमेडियन को भी इनके बीच जगह दी गई है।अब ‘बाबा जी के ठुल्लू’ के साथ ‘मेक इन इंडिया’ और ‘मैं ईमानदार हूँ’ की एक साथ प्रस्तुति होगी।ऐसे में हमारी देसी प्रतिभाओं से विलायत वाले भी जगमगा जायेंगे।
पहले नपना फिर मोम का पुतला बनना दोनों बातें प्रतिष्ठा की प्रतीक हैं।अब महापुरुष वही जो नपकर पुतला बन सके।होली तो आई है,चली जायेगी पर पुतलों के आपस में बुरा न मानने का मौसम बदस्तूर जारी रहेगा।किसी के पुतला बन जाने का आगे से हम भी बुरा नहीं मानेंगे।
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