शुक्रवार, 4 मार्च 2016

बाज़ार हमारे ऊपर चढ़ेगा,तभी विकास दिखेगा !

नया बजट आ गया है।चौतरफ़ा प्रगति हुई है।इससे एक बात साफ़ हुई है कि सरकार भेदभाव-विरोधी है।उसने सबके साथ समान व्यवहार किया है।बीड़ी को छोड़कर सबने छलाँग लगाई है।सिगरेट और सिगार की तरह वह मोटे पेट वाली नहीं है।उसे आगे धकेलने के लिए किसी पैकेज की दरकार भी नहीं है।वह आत्मनिर्भर है इसलिए पहले की तरह सस्ती बनी रहेगी।हाँ इस बहाने सरकार ने दिलजलों का ख़ास ख्याल रखा है।अब वे सारा काम-धाम छोड़कर महुए के पेड़ के नीचे बैठकर ‘बीड़ी जलइले जिगर से पिया’ का बेमियादी आलाप कर सकते हैं।इससे तन,मन और धन तीनों को परम शांति मिल सकती है।

बाहर खाना-पीना मँहगा करके सरकार आम आदमी का खर्च तो घटा ही रही है,वह अपने परिवार के साथ घर पर ज्यादा से ज्यादा समय बिताए,इसका भी ख्याल रख रही है।मोबाइल बिल मँहगा होने से आदमी घर से बाहर बात करना अवॉयड करेगा।यानी अब वह खाने-पीने और बात करने के लिए घर पर ही पूरी तरह निर्भर होगा।इस लिहाज़ से यह बजट महिला-समर्थक भी है।

मॉल और होटल अब कहीं अधिक सुकून देंगे।मिडिल क्लास की भीड़ सम्पन्न लोगों के ऐश में अब खलल नहीं डाल पाएगी।पूरा विपक्ष सरकार पर यह आरोप लगा रहा है कि उसने आम आदमी पर ध्यान नहीं दिया है,पर यह बात सही नहीं है।उसे बखूबी पता है कि अब आम आदमी वैसा नहीं रहा।उसकी तो दिल्ली में सरकार भी चल रही है।इसीलिए वह गरीब आदमी ढूँढने गाँव में घुस गई है।सरकार ने लाखों कुएँ खुदवाने का इंतजाम कर दिया है।देश भर में जब इतने गड्ढे खोदे जायेंगे,बेरोजगारी अपने आप दफ्न हो जाएगी।

मिडिल क्लास अब बजट की चिन्ता नहीं है।उस पर अगले चुनाव से ठीक पहले बात करना ठीक होगा।दाल-रोटी गम्भीर चिन्तन का विषय कभी रहा भी नहीं।उल्टे दाल-रोटी खाकर प्रभु के गुण गाने से चिंता दूर होती है ।वैसे भी दाल अब घर की नहीं संग्रहालय की वस्तु हो गई है।विदेशी-निवेश के जमाने में दाल-रोटी का जाप करना पिछड़ेपन की निशानी है।मध्यवर्ग के पास अब बहुत काम हो गए हैं।काम करने से अधिक वह सरकारें बनाने-बिगाड़ने के खेल में लगा है।इसलिए उसकी ज़रूरतें देखते हुए सरकार उसे अतिरिक्त हाथ (कर) मुहैया कराने जा रही है।

बजट के बाद बाज़ार चढ़ा है।आम आदमी नीचे है और विकास ऊपर।सोचिये,विकास ने अपने कंधे पर कितना बोझ उठा रखा है और आपको केवल बाज़ार दिखता है !

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