छोटी कार ने बड़ी कार को ओवरटेक किया,इससे बड़ी वाली बुरा मान गई।छोटी कार में छोटा आदमी था,बड़ी कार में बड़ा।कार बड़ी होती है तो सरकार बन जाती है,यह छोटी को नहीं पता था।छोटा आदमी जल्दी बुरा मानता नहीं।कभी मान गया तो जल्द मान भी जाता है।बड़े आदमी का बुरा मानना ठीक नहीं।उसे इसकी आदत नहीं होती।सड़क पर तो उसकी कार भी बुरा मान जाती है।
बड़े आदमी को अपनी बड़ी कार की इज्जत बचाने के लिए सड़क पर मजबूरन उतरना पड़ता है।वह छोटी कार वाले की जान लेता है।उसके पास देने के लिए गालियाँ और लेने के लिए जान होती है।यह सुविधा उसको इस व्यवस्था से मिली हुई है।वह क्या करे ? वह यही कर सकता है।
बड़े आदमी की खुली पहचान होती है।उसे किसी आई-कार्ड की ज़रूरत नहीं होती।उसकी हनक हमेशा उसके साथ चलती है।जिसने उसकी हनक के साथ छेड़छाड़ की,ऐसे ही मारा जाएगा।उसे सड़क भी पहचानती है और सरकार भी।फुटपाथ पर सोने वाले इसीलिए रौंदे जाते हैं।छोटे लोग सौन्दर्य-विरोधी हैं।गति और प्रगति के दुश्मन हैं।सोचिए,ऐसे लोग फुटपाथ पर रुकावट न डालें और छोटी कारें ओवरटेक न करें तो बड़ा आदमी बड़ी सड़क से बड़ी गाड़ी को सम्मानजनक गति से ले जा सकता है।
यह विकास की तेजी का समय है।वह कहीं चढ़ रहा है,कहीं बढ़ रहा है।छोटे आदमी को इस सीन को दूर से देखना चाहिए।वह इसके बीच में घुसेगा तो नाहक मारा ही जाएगा।बड़ा आदमी हमेशा सीन में रहता है।भीड़ में होगा,तो भी फोकस उसी पर होता है।कभी ऐसा न हुआ तो कैमरेवाले का बलिदान निश्चित है।बड़ों के लिए छोटे हमेशा बलिदान देते रहे हैं।वे तो छोटे हैं ही,कितना बढ़ पायेंगे ? अच्छा है कि बड़ों के काम आएँ।इससे परमार्थ भी सधेगा और समाज में अशांति भी नहीं फैलेगी।यह बात हर छोटे आदमी को समझ आनी चाहिए।सरकार इसीलिए साक्षरता पर इतना जोर दे रही है।
हमें बड़ों के रास्ते पर चलने को यूँ ही नहीं कहा गया है।वे आगे चलें,हम उनके पीछे-पीछे।यही शाश्वत नियम है।हमने अपना रास्ता बनाने की भूल की,या उन्हें ओवरटेक किया तो हमारी ज़िन्दगी की फिल्म का वह आखिरी ‘टेक’ होगा।हम ‘सीन’ बनाने वाले हैं,’सीन’ में दिखने वाले नहीं।सरकार को चाहिए कि बड़ों के ‘हूटर’ वापिस कर दे,नहीं तो बेचारों को सड़क पर मजबूरन ‘शूटर’ बनना पड़ता है।
बड़े आदमी को अपनी बड़ी कार की इज्जत बचाने के लिए सड़क पर मजबूरन उतरना पड़ता है।वह छोटी कार वाले की जान लेता है।उसके पास देने के लिए गालियाँ और लेने के लिए जान होती है।यह सुविधा उसको इस व्यवस्था से मिली हुई है।वह क्या करे ? वह यही कर सकता है।
बड़े आदमी की खुली पहचान होती है।उसे किसी आई-कार्ड की ज़रूरत नहीं होती।उसकी हनक हमेशा उसके साथ चलती है।जिसने उसकी हनक के साथ छेड़छाड़ की,ऐसे ही मारा जाएगा।उसे सड़क भी पहचानती है और सरकार भी।फुटपाथ पर सोने वाले इसीलिए रौंदे जाते हैं।छोटे लोग सौन्दर्य-विरोधी हैं।गति और प्रगति के दुश्मन हैं।सोचिए,ऐसे लोग फुटपाथ पर रुकावट न डालें और छोटी कारें ओवरटेक न करें तो बड़ा आदमी बड़ी सड़क से बड़ी गाड़ी को सम्मानजनक गति से ले जा सकता है।
यह विकास की तेजी का समय है।वह कहीं चढ़ रहा है,कहीं बढ़ रहा है।छोटे आदमी को इस सीन को दूर से देखना चाहिए।वह इसके बीच में घुसेगा तो नाहक मारा ही जाएगा।बड़ा आदमी हमेशा सीन में रहता है।भीड़ में होगा,तो भी फोकस उसी पर होता है।कभी ऐसा न हुआ तो कैमरेवाले का बलिदान निश्चित है।बड़ों के लिए छोटे हमेशा बलिदान देते रहे हैं।वे तो छोटे हैं ही,कितना बढ़ पायेंगे ? अच्छा है कि बड़ों के काम आएँ।इससे परमार्थ भी सधेगा और समाज में अशांति भी नहीं फैलेगी।यह बात हर छोटे आदमी को समझ आनी चाहिए।सरकार इसीलिए साक्षरता पर इतना जोर दे रही है।
हमें बड़ों के रास्ते पर चलने को यूँ ही नहीं कहा गया है।वे आगे चलें,हम उनके पीछे-पीछे।यही शाश्वत नियम है।हमने अपना रास्ता बनाने की भूल की,या उन्हें ओवरटेक किया तो हमारी ज़िन्दगी की फिल्म का वह आखिरी ‘टेक’ होगा।हम ‘सीन’ बनाने वाले हैं,’सीन’ में दिखने वाले नहीं।सरकार को चाहिए कि बड़ों के ‘हूटर’ वापिस कर दे,नहीं तो बेचारों को सड़क पर मजबूरन ‘शूटर’ बनना पड़ता है।
1 टिप्पणी:
यही दुनियाँ की रीत है।
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