सोमवार, 13 फ़रवरी 2017

चुनावी हरियाली और छुट्टा साँड़ !

उनका टिकट फिर कट गया है।इस बार पूरी उम्मीद थी कि जनता की सेवा करने का टिकट उन्हें ही मिलेगा।पर नहीं मिला।इस अन्याय पर वे फूट-फूटकर रोने लगे।उनके सब्र का बाँध ढह गया।इससे ऐसी बाढ़ मची कि वे बहकर दूसरे दल तक पहुँच गए।दूसरे दल वाले ने अपने पुराने और जमे हुए प्रत्याशी को ज़ोर का धक्का दिया।वह समर्पित-टाइप का था पर दल को अब उसके समर्पण की नहीं तर्पण की ज़रूरत थी।उसको मुक्ति मिली और दल को नई शक्ति।इस नवल ऊर्जा को नए दल ने सर पर बिठा लिया।इस तरह उन्हें सेवा करने का लाइसेन्स मिल गया।आँसू काम आ गए।सेवा के लिए ख़ून नहीं बहाना पड़ा।यह उनकी समझदारी का परिचायक है।दिमाग़ से लिया फ़ैसला ऐसे ही होता है।टिकट पाने के लिए वो बंधनमुक्त हो जाते हैं,कहीं भी बह सकते हैं।फ़िलहाल वे चुनावी-हवा में बह रहे हैं।

दूसरे दल ने उन्हें तुरंत लपककर बड़ा पुण्य-कार्य किया है।वे अभी तक नख-शिख भ्रष्टाचार की गंगा में डूबे हुए थे।हर तरह के पाप उनके सिर पर थे।उनकी काया भले ही मलिन हो गई हो,पर अंतरात्मा बिलकुल बेदाग़ है।उसी ने आवाज़ दी और वो नए घर में शिफ़्ट हो गए।वैसे भी कोई कहाँ ज़िंदगी भर एक घर में टिकता है ! सेवा करने के लिए पैदाइशी घर छोड़ना ही पड़ता है।नए घर में आते ही उनका परकाया-प्रवेश पूर्ण हुआ।कपड़े बदलने भर से जब कोई साधु बन जाता है तो दल और दिल बदलकर जनसेवक क्यों नहीं बना जा सकता ? इसी दिन के लिए तो उन्होंने बरसों भूख और प्यास सही।लोगों के ताने सुने।अब ऐसे सुहाने मौसम में भी वो न बहें तो कब बहेंगे ! चुनावी-मौसम में सब बह रहे हैं।जहाँ भी टिकट की मनुहार के साथ थोड़ा प्यार मिल जाता है,जनसेवक वहीं टिक जाता है।जिनको ऐसी हरियाली में भी मुँह मारने को नहीं मिलता,वे छुट्टा साँड़ हो जाते हैं।हर जगह मुँह मारते हैं।

डिजिटल इंडिया में जनसेवा का यह आधुनिक संस्करण है।समझदार लोग अपने को जल्दी अपडेट कर लेते हैं।जिनके टिकट कटते हैं,भगवान उनके हाथ-पैर पहले ही मज़बूत कर देता है।हाथ विरोधी से टिकट झपटता है और पैर दल-दल में टहलता है।वह सबको साधने की कला जानता है।ऐसा साधक ही कलिकाल में लम्बे समय तक कुर्सी पर टिकता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

साहित्य-महोत्सव और नया वाला विमर्श

पिछले दिनों शहर में हो रहे एक ‘ साहित्य - महोत्सव ’ के पास से गुजरना हुआ।इस दौरान एक बड़े - से पोस्टर पर मेरी नज़र ठिठक ...