रविवार, 19 मार्च 2017

हारे हुए नेताजी से एक्सक्लूसिव बातचीत !

चुनाव ख़त्म हो चुके थे।सब जगह हार-जीत का पोस्टमार्टम चल रहा था।ऐसे में एक जागरूक पत्रकार होने के नाते हमने भी अपनी ज़िम्मेदारी समझी।सोचा,जीतने वाले नेताजी का इण्टरव्यू ले लिया जाय।मौक़ा भी था और दस्तूर भी।निजी सम्पर्कों से पता किया तो मालूम हुआ कि उनके पास 2019 के पहले तक की डेट ही नहीं है।हमें इस समस्या का विकल्प भी मिल गया।हम चुनाव हारने वाले नेताजी से मिलने चल दिए।इसके लिए उनसे समय माँगने की ज़रूरत भी नहीं पड़ी।उनकी बहुमूल्य काया के पास ले-दे के यही एक चीज़ इस चुनाव बाद बची थी।चुनावी-मशीन से निकले मतों ने उनका सारा 'काम' तमाम कर दिया था।उनकी विज्ञापनी-उपलब्धियाँ हवा में बाइज़्ज़त उड़ गईं थीं।नेताजी की हार ऐतिहासिक थी,इस लिहाज़ से उनसे इंटरव्यू लेना भी छोटी उपलब्धि नहीं थी।

हम उनके ठिकाने पर पहुँच गए।नेताजी खाट बिछाए बैठे हुए थे।एकदम ख़ाली थे।हमें देखकर उनकी जान में जान आई।अभिवादन के बाद हमने सभी ग़ैर-ज़रूरी सवाल किए।उन्होंने भी उनके अप्रत्याशित जवाब दिए।पूरे समय हार को मजबूती से गले से लगाए बैठे रहे।नेताजी के साथ हुआ संवाद अविकल रूप से यहाँ प्रस्तुत है :

सवाल : चुनावों में आप की खटिया खड़ी हो गई फिर भी आप इतने भरोसे के साथ बैठे हुए हैं।आख़िर इसका राज क्या है ?

जवाब :देखिए,राज तो हमारे पास नहीं रहा,पर राज की बात तो बता ही सकता हूँ।यही कि उनकी जीत अब राज नहीं रही।यह हम आगे बताएँगे।इस चुनाव में हमारी खटिया खड़ी करने की भरपूर कोशिश की गई पर हम टस से मस नहीं हुए।यह खटिया हमारे परिवार का हिस्सा रही है और आगे भी खड़ी रहेगी।हमारे राज में यह समाजवाद की गवाह रही है।यही कारण है कि अब तक हमारे परिवार में समाजवाद बचा हुआ है।हम लड़ते-झगड़ते और लूटते-लुटते एक साथ हैं।हमें ख़ुशी है कि चुनाव में आत्मसम्मान बचाने में हम सफल रहे।हारकर भी हम जीते हैं क्योंकि यह लड़ाई हारने के लिए ही हम लड़ रहे थे।इसकी प्रक्रिया हमने चुनाव से काफ़ी पहले शुरू कर दी थी।हमें संतोष है कि हमारी लड़ाई पूरी तरह पारदर्शी रही।

सवाल:यह सब आपने संभव कैसे किया ? क्या आपने हारने के लिए ही गठबंधन किया था ?

जवाब:यह बहुत ज़रूरी सवाल पूछा है आपने।दरअसल हमने हारकर अपनी एकजुटता साबित की है।हम अपने गठबंधन के सहित समान-भाव और समान स्ट्राइक रेट से हारे हैं।हमारे हार जाने से परिवार में एकता बरक़रार है।हम शुरू से ही हार जाने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ थे।जीत जाने पर 'मुलायम' बन जाने की आशंका थी।गठबंधन हमारे लिए हमेशा की मजबूरी बन जाता।अब हम भी मुक्त हैं और वो भी।इसीलिए हम जानबूझकर नहीं जीते।लगातार जीत पार्टी के लिए नुक़सानदेह साबित होती।हमारे सभी कार्यकर्ताओं को 'हार' पसंद है।इसीलिए हमें ये 'साथ' पसंद था। सरकार में रहकर हमारे 'हल्ला-बोल' प्रोग्राम में थोड़ा मुश्किल हो रही थी।हार ने इसे आसान बना दिया है।हम अपने प्रदर्शन से क़तई ख़ुश हैं।

सवाल:आपने यह महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल कैसे की ? इसका श्रेय आप किसे देते हैं ?

ज़वाब :सारा श्रेय हमारे काम को जाता है।पूरे पाँच साल काम बोलता रहा पर आख़िरी समय में टें बोल गया।इसमें विरोधियों की भूमिका रही।यही वजह रही कि चुनावों के दौरान हमारे 'काम' को फ़रार होना पड़ा।उन्होंने भरे चुनाव में उसे पटरी से उतार दिया।हमारे मजबूत काम को बिजली का करंट मारा।हाईवे और सड़कें हमने बनवाईं ताकि लोग उन पर चलकर मतदान-केंद्र तक हमें हराने के लिए आ सकें। रोड हमारी थी पर शो 'उनका' हुआ।हारने में कोई कसर न बाक़ी रहे,इसके लिए हमने मिली-जुली रैलियाँ की।परिणाम गवाह हैं कि उन जगहों में हम ज़मानत-ज़ब्त कर बाइज़्ज़त हारे।हमारे अफ़सरों ने भी इसमें बख़ूबी हमारा साथ दिया।मौक़ा पाते ही वोटिंग मशीनों में हवा भर दी।फागुन का फ़ायदा उठाकर मशीनों से सफलतापूर्वक छेड़छाड़ भी की गई।इससे मतगणना के समय सारी मशीनें बौरा गईं।मौसम ने भी हमसे साज़िश की।बसंत में फूल उनका खिला और पत्ते हमारे झड़ गए।
सवाल : अब आगे की आपकी कार्ययोजना क्या है ?

उत्तर:कुछ नहीं।बस हम जनता को अपनी हार से होने वाले फ़ायदे गिनाएँगे।पूरे पाँच साल हार की ऐसी माला जपेंगे कि विरोधी ख़ुद-ब-ख़ुद हार माँगने लगेंगे।लेकिन इतनी आसानी से इस 'अमर-मंत्र' को हम उन्हें नहीं देंगे।पिछले पाँच सालों में हमने विकास का जो खनन किया है,उसी से वे रेत के महल बनाएँगे।

सवाल: इस हार से जनता को क्या संदेश देना चाहेंगे ?

ज़वाब : हम तो हारे हैं जी।जो भी देना होगा,जीतने वाले देंगे।अब तो नई सरकार से हमारी माँग है कि उन्होंने जो वादा किया था कि सभी किसानों का क़र्ज़ माफ़ कर देंगे,उसे जल्द पूरा करें।हम तो बेसिकली किसान ही हैं।हमारा सारा क़र्ज़ा माफ़ किया जाय।नोटबंदी और वोटबंदी से हुए नुक़सान की भरपाई की जाय।'मनरेगा' के तहत बुलेट ट्रेन का टेंडर भी हमें दिया जाय।हारने के बाद इतना हक़ तो हमारा भी बनता है।

1 टिप्पणी:

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "पेन्सिल,रबर और ज़िन्दगी “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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