कभी प्रिय रहे तुम,
यह ख़त हम दुबई के बुर्ज ख़लीफ़ा की एक सौ आठवीं मंज़िल से लिख रहे हैं।जिस स्याही से लिख रहे हैं,पढ़ लेने के बाद वह भी हमारी तरह उड़ जाएगी।इसलिए तुम इसे सबूत मानने की ग़लती मत करना।यहाँ आने की तुम्हारी कोई कोशिश बेकार जाएगी क्योंकि इससे केवल घोटाले की रक़म और बढ़ेगी।तुम्हें खाते के बजाय ख़त मिल रहा है,यह कम नहीं है।सब जानते हैं कि विशुद्ध व्यापारी लेता है,देता कुछ नहीं।पर मैं अपने देश से प्यार भी करता हूँ।उसी की ख़ातिर अपने सिद्धांत तोड़कर तुम्हें यह जवाब दे रहा हूँ।तुमने हमें निराश किया है।हम पर घोटाले का आरोप लगाते तुम्हारी आत्मा नहीं काँपी ? आत्मीय रिश्तों के बीच ‘अर्थ’ कब घुस गया, जान ही नहीं पाया।फिर देश मेरा,देशवासी मेरे,उनका पैसा मेरा पैसा।इसमें घोटाला बीच में कहाँ से आ गया ! घोटाला तो तब होता जब हमारे खातों में न्यूनतम बैलेंस होता और हम उसका ‘चार्ज’ न भर पाते।पर हमारे सभी खाते तो अधिकतम बैलेंस से भरे हुए थे।तुम्हीं संभाल नहीं पाए।अब करोड़ों की भीख हमसे माँग रहे हो,जबकि उलटे तुम्हें इसका हर्ज़ाना हमें देना चाहिए।
तुम्हें नहीं पता,तुमने देश का कितना नुक़सान कर दिया है ! टेलिविज़न से लेकर अख़बार तक तुमने घोटाले का रायता फैला दिया।यहाँ तक कि कल दुबई में लंच के समय जब अख़बार पढ़ रहा था तो उसमें भी फैला हुआ था।बैरा लगातार हमें घूर रहा था।बेचारा बिना टिप लिए ही चला गया।पर मैं तुम्हें टिप ज़रूर दूँगा।तुम्हारी इन हरकतों से हमारी साख़ पर बट्टा लगा है।हम देश के हैं,इसलिए हमारी साख़ भी देश के बट्टे-खाते में।हज़ारों-करोड़ की साख़ तुम्हारी एक ‘चूक’ से चुक गई।तुमने देशवासियों के विश्वास और भरम को तोड़ा है।उनके गले में पड़े लाखों के हार पलक झपकते हज़ारों में बदल गए।लोगों ने उनकी जाँच करवा ली।अब पछता रहे हैं।गहने वही,गला वही पर क़ीमत दो कौड़ी की रह गई।असली घोटाला तो यह है।इसके ज़िम्मेदार तुम और तुम्हारा तंत्र है।यह केवल पैसे भर का मामला नहीं है।एक अच्छे-भले ब्रांड की हत्या है।जिसे तुम घोटाला कह रहे हो,वही असल कारोबार है।इसमें और ग्रोथ होता पर तुम्हारी नादानी की वजह से बर्बाद हो गया।शेयर बाज़ार टूट गया।आम आदमी का भरोसा टूटा।हमारी भावनाएँ आहत हुईं,साख़ टूटी सो अलग।इस सबके ज़िम्मेदार तुम्ही तो हो।तुम्हें नोटिस नहीं भेज रहा हूँ,यह हमारी सहृदयता है।
तुमने हम पर जो छापेमारी की,उसको हम ‘नोटिस’ नहीं लेते।हाँ,इसके पहले अगर तुम हमें नोटिस भेज देते तो तुम्हारा ही भला होता।फागुन का महीना चल रहा है।खातों में थोड़ा अबीर-गुलाल धरवा देते ताकि वे भरे-भरे दिखते।इससे कुछ बरामदगी दर्ज होती और तुम कुछ अपने मुँह की क़ालिख रंगीन कर लेते।हम पर चूना लगाने का जो आरोप लगा रहे हो वह महज़ त्योहारी-सफ़ाई है।चूना पोतने के अलावा अगर कुछ और करते तो जवाबदेह होते ! हम फिर भी जवाब दे रहे हैं।तुम्हारी ढिठाई के बावजूद हम तुम्हें होलिका-दहन की बधाई दे रहे हैं।आओ,हम मिल-जुलकर सारे आर्थिक-पाप इस होली में जला डालें।तुमने भी पढ़ा होगा,भारतीय संस्कृति में आत्मा अमर होती है,पाप नहीं।उन्हें एक दिन नष्ट होना ही है।तुम्हें हो न हो,हमें इस मान्यता पर पूरी आस्था है।इसलिए हमारे सभी वादा-पत्रों को होली की पवित्र अग्नि में समर्पित कर दो।सम्बंध पुनः मधुर हो जाएँगे।
और हाँ,तुम्हारे कुछ लोग हमारे धंधे को फ़्रॉड कह रहे हैं,कुछ स्कैम।खातों की तरह इसे भी मैं साफ़ करता हूँ।यह न तो फ़्रॉड है,न ही स्कैम।इसे उदाहरण देकर समझाता हूँ क्योंकि तुम्हारी ‘समझदारी’ अब संदेह से परे है।इतने सालों से यह तुम सबकी नाक के नीचे हुआ।नाक खुली भी थी।इसका सबूत यह कि सभी अब तक जीवित हैं।फ़्रॉड तो चोरी-चोरी अंधेरे में किया जाता है।सो,यह फ़्रॉड क़तई ना है।रही बात स्कैम की,सो वे पिछली सरकार के समय होते थे।यह ख़ुलासा चूँकि इस सरकार के समय हुआ है,इसलिए स्कैम नहीं हैज।किसी मंत्री का इस्तीफ़ा भी नहीं आया,इसलिए भी यह स्कैम नहीं हो सकता।दरअसल,यह आँकड़ों की ग़लतफ़हमी भर है।इसे हम यूँ ही एक ‘मेल’ से दूर कर सकते थे पर तुमने वह मौक़ा भी गँवा दिया।पहले के कई मेल-मिलाप ही याद कर लेते।पर यह सब नहीं हुआ।अब तुम पर हमारी कोई देनदारी नहीं बनती।हमने अपने वक़ील से भी पूछ लिया है।तुम चाहो तो हमारे पुराने फ़ॉर्म हाउस से पुदीना उखाड़ सकते हो ! हम नोटिस भी नहीं भेजेंगे।
तुम्हें नहीं पता कि तुम्हारे इस क़दम से कितने लोग बेरोज़गार हुए हैं ! उन सबकी बद्दुआएँ तुम पर ज़रूर बरपेंगी।हम तो इंटरनेशनल व्यापारी ठहरे।धंधा बदल जाएगा,पर ठहरेगा नहीं।‘हीरा है सदा के लिए’ यूँ ही नहीं कहा गया है।हम इसका ईमानदारी से पालन भी करते हैं।हीरा कभी कोयला बनकर राख नहीं होता।कटकर और क़ीमती हो जाता है।तुम हमारी साख़ में जितनी भी क़ालिख पोत रहे हो,हम उसे फागुन-इफ़ेक्ट मानकर माफ़ करते हैं।होली के रंगों के साथ यह भी उतर जाएगा।
रही बात देश में आने की,तो तुमने इतनी ‘चरस बो दी’ है कि हम उसकी फ़सल देश के बाहर से ही काट रहे हैं।फ़िलहाल,हम तुम्हें पान-बीड़ी और सुरती के ख़र्चे का नोटिस नहीं दे रहे हैं,यह हमारी ओर से तुम्हें ‘होली-गिफ़्ट’ है !
तुम्हारा अब नहीं
हीरा सुनार
1 टिप्पणी:
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन वीर सावरकर और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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