सुनते थे कि झूठ के पाँव नहीं होते पर यह भी झूठ निकला।वह सरपट भाग रहा है या यूँ कहिए वह अपने पुराने प्रतिद्वंद्वी ‘सच’ से बहुत आगे है।इसकी रफ़्तार मन की गति से भी तीव्र है।झूठ की हमजोली ‘अफ़वाह’ इसे पलक झपकते गंतव्य तक पहुँचा देती है।असली ख़बर वही जो तेज़ी से फैले।बिना सनसनी और थ्रिल के ख़बर क्या मुई आग भी पड़ोसी के घर तक नहीं पहुँच सकती ! ’सच’ तो अपंग होता है।वह बिना गवाही के अपना बचाव तक नहीं कर पाता।जबकि झूठ को गवाह की नहीं अफ़वाह की ज़रूरत होती है।वह कई रहस्यों को ऐसे आत्मसात कर लेता है जैसे अगस्त्य मुनि ने सारा समुद्र सोख लिया था।झूठ की सत्ता हो तो सच सूली पर टँग जाता है।ऐसे बलशाली ‘झूठ’ को बिना पाँव कहकर इसकी महिमा को कम करने की चाल है।सच तो यह है कि झूठ की चाल इतनी तेज़ है कि विलायत से एक बटन दबाते ही वह हिंदुस्तान के ईवीएम में प्रकट हो जाता है।नक़ाब में रहकर वह सच को ‘बेनक़ाब’ करने का दावा करता है।कई बार तो सच को भी अपने ‘झूठे’ होने का अहसास होने लगता है।पर झूठ कभी भी सच नहीं होना चाहता क्योंकि इससे वह ‘गतिहीन’ हो जाएगा,प्रगति नहीं कर पाएगा।
सच और झूठ का ताज़ा क़िस्सा बड़ी तेज़ी से शहर में फैल रहा था।तभी सच को हमेशा आगे रखने वाले चैनल को अपना कर्तव्य याद आया।उसे पता था कि सच अपने आप झूठ से आगे नहीं जा सकता इसलिए उसने उसको कंधा दे दिया।चैनल के उत्साही एंकर को लगा कि सर्द मौसम में सच और झूठ का ‘महामुक़ाबला’ हो जाए तो उसकी सच्चाई की रेटिंग भी आगे बढ़े।सो उसने दोनों पक्षों को अपने दंगल में बुला लिया।शुरू में तो सच सामने आने से हिचक रहा था पर झूठ इतना ललकार चुका था कि उसे आना ही पड़ा।अब अखाड़े में सच और झूठ दोनों थे,एंकर निर्णायक की भूमिका में था।उसके सीटी बजाते ही ‘खेल’ शुरू हो गया।
पहला दाँव झूठ ने ही मारा ‘तुम अभी भी कबीरदास के समय में रह रहे हो।उन्होंने कहा था साँच बराबर तप नहीं इसलिए तपस्या करना तुम्हारा धर्म है और भोगना हमारा।तुम मशीन की छोटी प्रिंटेड पर्ची हो और हम कोरे काग़ज़ की असीम सम्भावनाएँ।चाहे जितना भी स्याह कर लो,दामन झक सफ़ेद बना रहेगा।तुम्हारा और मेरा क्या मुक़ाबला ?’
सच ने झूठ को उसी दाँव से मारते हुए कहा-‘तुमने कबीर को पढ़ा है,यह झूठ है।फिर भी यदि पढ़ा है तो पूरा पढ़ो।उन्होंने झूठ को पाप बताया है।तुम्हारी दिक़्क़त यही है कि तुम आधी बात पकड़कर उसे ही चिल्लाने लगते हो।किसी बात को समझने के लिए तुम्हारे पास समय नहीं है।बार-बार कहने से झूठ सत्य नहीं बन जाता।हम कबीर के समय भी थे,आज भी हैं और कल भी रहेंगे।सत्य परेशान हो सकता है,पराजित नहीं।’
‘हा हा हा।’ झूठ अचानक अट्टहास करने लगा-तुम हमें आधी बात कहकर घेर रहे हो,यह भी नादानी है।महाभारत भूल गए ? युधिष्ठिर का बोला गया आधा झूठ आज तक लोगों को याद है।सच के कई क़िस्से इतिहास के हिस्से बन गए पर असल इतिहास बनाने का काम हमने ही किया।रही बात तुम्हारे पराजित न होने की,तो परिणाम की चिंता हम करते भी नहीं।तुमसे अधिक ‘गीता’ के अनुयायी तो हम हैं।केवल कर्म में विश्वास करते हैं।हमारा मुख्य काम है कि सामने वाले को ‘संदिग्ध’ बना दो।इससे आधी से ज़्यादा लड़ाई पहले ही जीती जा सकती है।जब तक लोगों को तुम्हारी आहट आए,हम अपना काम कर चुके होते हैं।इसीलिए तुम्हारा ‘सतयुग’ नितांत अकेला है और हम हर युग में हैं।हमें कभी कोई परीक्षा नहीं पास करनी पड़ती जबकि तुम रोज़ ‘अग्निपरीक्षा’ से गुज़रते हो।और हाँ,बाज़ार में तुम्हारी क़ीमत कुछ नहीं।चारों तरफ़ झूठ का बाज़ार है।ड्रॉइंग-रूम से लेकर कोर्टरूम तक मैं ही बिक रहा हूँ।अब तुम्हीं बताओ,कौन बड़ा ?’
झूठ के इस ताबड़तोड़ हमले से सच एक पल को दहल गया।फिर पछाड़ मारते हुए बोला, ‘माना कि तुम्हारे पास सत्ता है,संसाधन हैं,दाँव है पर हमारे पास आत्म-सम्मान है,प्रतिष्ठा है,प्रतिरोध है।हम साधन-हीन भले हों पर दीन-हीन नहीं।रही बात बिकने की,हम बिकते नहीं टिकते हैं।बाज़ार हमसे है,हम बाज़ार से नहीं।अपन ‘दो रोटी’ खाते हैं और चैन से सोते हैं।’ यह सुनते ही झूठ ज़ोर से झूम उठा।जीभ निकालते हुए कहने लगा-‘खाने की बात से ख़ूब याद आया।तुम केवल शपथ खाते हो।उसके बाद जो भी खाना है,हमीं खाते हैं।कोयला,खाद,बालू हम सभी कुछ खा जाते हैं और मजाल कि हमारा हाज़मा ख़राब हो ! एक और बात,सच उगलवाना पड़ता है पर झूठ ज़ोर से चिल्लाता है।तुम्हारी सबसे बड़ी हार यही है कि सब कुछ तुम्हारे नाम से होता है पर काम हमारा होता है।’ यह सुनकर सच सन्न रह गया।उसकी स्थापनाएँ हिलने लगीं।
इस बीच एंकर को याद आया कि उसकी भी कोई भूमिका है।उसने झट से ‘ब्रेक’ ले लिया।
संतोष त्रिवेदी
सच और झूठ का ताज़ा क़िस्सा बड़ी तेज़ी से शहर में फैल रहा था।तभी सच को हमेशा आगे रखने वाले चैनल को अपना कर्तव्य याद आया।उसे पता था कि सच अपने आप झूठ से आगे नहीं जा सकता इसलिए उसने उसको कंधा दे दिया।चैनल के उत्साही एंकर को लगा कि सर्द मौसम में सच और झूठ का ‘महामुक़ाबला’ हो जाए तो उसकी सच्चाई की रेटिंग भी आगे बढ़े।सो उसने दोनों पक्षों को अपने दंगल में बुला लिया।शुरू में तो सच सामने आने से हिचक रहा था पर झूठ इतना ललकार चुका था कि उसे आना ही पड़ा।अब अखाड़े में सच और झूठ दोनों थे,एंकर निर्णायक की भूमिका में था।उसके सीटी बजाते ही ‘खेल’ शुरू हो गया।
पहला दाँव झूठ ने ही मारा ‘तुम अभी भी कबीरदास के समय में रह रहे हो।उन्होंने कहा था साँच बराबर तप नहीं इसलिए तपस्या करना तुम्हारा धर्म है और भोगना हमारा।तुम मशीन की छोटी प्रिंटेड पर्ची हो और हम कोरे काग़ज़ की असीम सम्भावनाएँ।चाहे जितना भी स्याह कर लो,दामन झक सफ़ेद बना रहेगा।तुम्हारा और मेरा क्या मुक़ाबला ?’
सच ने झूठ को उसी दाँव से मारते हुए कहा-‘तुमने कबीर को पढ़ा है,यह झूठ है।फिर भी यदि पढ़ा है तो पूरा पढ़ो।उन्होंने झूठ को पाप बताया है।तुम्हारी दिक़्क़त यही है कि तुम आधी बात पकड़कर उसे ही चिल्लाने लगते हो।किसी बात को समझने के लिए तुम्हारे पास समय नहीं है।बार-बार कहने से झूठ सत्य नहीं बन जाता।हम कबीर के समय भी थे,आज भी हैं और कल भी रहेंगे।सत्य परेशान हो सकता है,पराजित नहीं।’
‘हा हा हा।’ झूठ अचानक अट्टहास करने लगा-तुम हमें आधी बात कहकर घेर रहे हो,यह भी नादानी है।महाभारत भूल गए ? युधिष्ठिर का बोला गया आधा झूठ आज तक लोगों को याद है।सच के कई क़िस्से इतिहास के हिस्से बन गए पर असल इतिहास बनाने का काम हमने ही किया।रही बात तुम्हारे पराजित न होने की,तो परिणाम की चिंता हम करते भी नहीं।तुमसे अधिक ‘गीता’ के अनुयायी तो हम हैं।केवल कर्म में विश्वास करते हैं।हमारा मुख्य काम है कि सामने वाले को ‘संदिग्ध’ बना दो।इससे आधी से ज़्यादा लड़ाई पहले ही जीती जा सकती है।जब तक लोगों को तुम्हारी आहट आए,हम अपना काम कर चुके होते हैं।इसीलिए तुम्हारा ‘सतयुग’ नितांत अकेला है और हम हर युग में हैं।हमें कभी कोई परीक्षा नहीं पास करनी पड़ती जबकि तुम रोज़ ‘अग्निपरीक्षा’ से गुज़रते हो।और हाँ,बाज़ार में तुम्हारी क़ीमत कुछ नहीं।चारों तरफ़ झूठ का बाज़ार है।ड्रॉइंग-रूम से लेकर कोर्टरूम तक मैं ही बिक रहा हूँ।अब तुम्हीं बताओ,कौन बड़ा ?’
झूठ के इस ताबड़तोड़ हमले से सच एक पल को दहल गया।फिर पछाड़ मारते हुए बोला, ‘माना कि तुम्हारे पास सत्ता है,संसाधन हैं,दाँव है पर हमारे पास आत्म-सम्मान है,प्रतिष्ठा है,प्रतिरोध है।हम साधन-हीन भले हों पर दीन-हीन नहीं।रही बात बिकने की,हम बिकते नहीं टिकते हैं।बाज़ार हमसे है,हम बाज़ार से नहीं।अपन ‘दो रोटी’ खाते हैं और चैन से सोते हैं।’ यह सुनते ही झूठ ज़ोर से झूम उठा।जीभ निकालते हुए कहने लगा-‘खाने की बात से ख़ूब याद आया।तुम केवल शपथ खाते हो।उसके बाद जो भी खाना है,हमीं खाते हैं।कोयला,खाद,बालू हम सभी कुछ खा जाते हैं और मजाल कि हमारा हाज़मा ख़राब हो ! एक और बात,सच उगलवाना पड़ता है पर झूठ ज़ोर से चिल्लाता है।तुम्हारी सबसे बड़ी हार यही है कि सब कुछ तुम्हारे नाम से होता है पर काम हमारा होता है।’ यह सुनकर सच सन्न रह गया।उसकी स्थापनाएँ हिलने लगीं।
इस बीच एंकर को याद आया कि उसकी भी कोई भूमिका है।उसने झट से ‘ब्रेक’ ले लिया।
संतोष त्रिवेदी
2 टिप्पणियां:
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 28/01/2019 की बुलेटिन, " १२० वीं जयंती पर फ़ील्ड मार्शल करिअप्पा को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
झूठ जीतता हुआ लगता है जीतता नहीं..और यह जीत भी तभी तक है जब तक लोग उसे सच मानते हैं..
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