महासमर शुरू हो चुका है।सभी योद्धा हुंकार भर रहे हैं।युद्धभूमि रक्त की नहीं ‘मत’ की प्यासी लग रही है।कुशल सेनापति अग्रिम मोर्चे पर डट चुके हैं।उनके तूणीर नुकीले,नशीले और ज़हरीले तीर उगल रहे हैं।इरादे बता रहे हैं कि हर तरह के वादे उनके पास जमा हैं।इन्हीं को गोला बनाकर वे दुश्मनों की ओर लगातार फेंक रहे हैं।कुछ गोले ग़लती से एक जागरूक मतदाता पर भी गिर पड़े।उसने इस बात का तनिक भी बुरा नहीं माना।दरअसल वह किसी भी बात का बुरा नहीं मानता।यहाँ तक कि उसका पूरा शरीर घोषणा-पत्र और संकल्प-पत्र से बिंध चुका है।चुनाव-रथी इस विनम्र मतदाता का इस तरह ख़याल रख रहे हैं कि जैसे ही वह दुखी होना चाहता है,उस पर आश्वासनों की बौछार हो जाती है।उसके चेहरे पर एक अदद हँसी के लिए दुनिया के सारे वादे,संकल्प क़ुर्बान हैं।ख़ुद पर गिरे गोले में लिखे संदेश को उस जागरूक मतदाता ने पढ़ लिया।उसमें साफ़ शब्दों में लिखा था,‘एक बार मुस्करा दो,नहीं तो अगले पाँच साल तक हँसना भूल जाओगे।यह चेतावनी नहीं विनम्र सलाह है।’
मतदाता भी आख़िर आदमी ठहरा। वह इस विनम्रता पर ऊपर से नीचे तक पसीज गया।अभी तक हर चुनाव में वह कुछ न कुछ पा ही रहा था।बदले में अपने अन्नदाता को कुछ दिया नहीं।दूसरी तरफ़ अन्नदाता ने हर बार उसे अपना अँगूठा समर्पित किया।वह बेचारा यह भी न कर सका।इस महासमर में उसे अपनी ओर से आहुति देनी है।उसने क़लम उठाई और अपने अन्नदाता को नमन करके लिखना शुरू किया:
मेरे प्रिय अन्नदाता,
आपके ‘घोषणा-पत्र’ और ‘संकल्प-पत्र’ से उत्पन्न अनुराग-स्वरूप यह ‘प्रेम-पत्र’ लिख रहा हूँ।उम्मीद है,विगत में किए गए आपके वादों की तरह मेरा पत्र भी आप तक पहुँच सकेगा।एक बात शुरू में ही साफ़ कर दूँ कि आपके अनेक रूपों को हम एक मानकर ही चल रहे हैं।अलग-अलग बँटना जनता का गुण होता है,राजा का नहीं।हम एक को यह पाती लिख रहे हैं पर यह सभी को संबोधित है।हम सदैव से आपके रहे हैं और रहेंगे।आप चाहे कितने भी रूप धरकर हमसे मिलने आएँ,हम अपने आराध्य को ज़रूर पहचान लेंगे।पहले भी प्रभु अपने भक्त से मिलने के लिए अनेक रूपों में प्रगट होते रहे हैं।यह हमारी धृष्टता होगी कि हम अपना रूप बदल लें।इस पर आपका ही अधिकार है।
सच मानिए,आपके वादों को पढ़ते समय हमारी आँखें भर आईं।भर तो जेब भी जाती पर वह पहले से ही इतनी लबालब है कि उसमें चने तक रखने की गुंजाइश नहीं है।हमारे हाथ को काम देने का संकल्प आपने लिया है तो बता दूँ,अभी वो ख़ाली नहीं हैं।किसी ने यह निरा अफ़वाह उड़ाई है।हम तो दिन-रात आपकी माला जपते हैं।पहले भजन-पूजन का समय अलग से निकालना पड़ता था।अब सोते-जागते सोशल मीडिया पर हम लगे रहते हैं।इतने अच्छे समय में भी कुछ लोग सवाल उठा रहे हैं।वे अज्ञानी हैं।हमें आपकी निष्ठा पर कभी संदेह नहीं रहा।हम सवाल उठाने वाले को ही संदिग्ध बना देते हैं।आप इससे निसाख़ातिर रहें।अपने वादे हमारे पास बिना संकोच भेजते रहें।हम इन्हें पवित्र वचन मानकर उदरस्थ कर लेंगे।ग़लती से भी डकार नहीं आएगी।
और हाँ,सुना है कि आप हमें ‘महीना’ देने जा रहे हैं।हम तो शुरू में समझ रहे थे कि जैसे आपने हमें इत्ते ‘साल’ दिए,वैसे ही अब ‘महीना’ देंगे पर हमारे लौंडे ने समझाया कि यह कोई छोटी-मोटी बात नहीं है।आप हमारी जेब ‘गरम’ करना चाहते हैं।सही पूछिए तो हम अभी तक केवल ख़बरों में ही सुनते थे कि फ़लाँ पुलिसवाला ‘महीना’ लेते पकड़ा गया है या फ़लाँ बाबू की जेब ‘गरम’ नहीं हुई तो काम नहीं हुआ।अब हम स्वयं इस सबकी अनुभूति करेंगे।यह सोचकर मन गदगद हो रहा है पर क्या करें,चुनाव आयोग द्वारा युद्ध-समाप्ति का शंख बजाने से पहले हम आपका पूजन भी नहीं कर सकते।बहरहाल,आपकी यह योजना क़ाबिले-तारीफ़ है।कम से कम इसी से हमें मीडिया दरबार में एक कोना मिलेगा।हम भी ख़बर बन सकेंगे।
हे सर्वशक्तिमान, हमारे आसपास बड़ा शोर है पर चिंता न करिए।अपनी आँखों की तरह कान भी हमने आपको समर्पित कर दिए हैं।जब भी मन उदास होता है,आपकी ‘मूरत’ देख लेता हूँ,जिसे आपने ‘जनता की इच्छा’ के लिए तपती धूप में खड़ा कर दिया है।जब भी मेहनत-मज़दूरी करके थक जाता हूँ,आपकी ‘तपती मूर्ति’ देखकर राहत मिलती है।जब आपको अपने परिवार के सत्ता-सुख के लिए संघर्ष करते देखता हूँ,सच जानिए,आँखें छलछला उठती हैं।इससे ख़ुद के परिवार को दो जून की रोटी खिला पाने का हौसला मिलता है।जब आप हमें इतना सब खिला रहे हैं तो हम ‘ग़ुल’ क्यों नहीं खिलाएँगे !
हे पालनहार,आपने हमारे सुख के लिए अपने दिन का चैन और रातों की नींद हराम की,इसकी भरपाई हम कभी नहीं कर सकते।आज हम भी वादा करते हैं कि मत देने के समय हमारी आँखों के सामने आपका ही चेहरा होगा।हम यह संकल्प भी करते हैं कि बटन दबाते वक़्त भले ‘पीं’ की आवाज़ आए,हम आपके रहते कभी ‘चीं’ नहीं बोलेंगे।
मतदाता अभी यह पत्र लिख ही रहा था,तभी सन्न से उसके ऊपर वादों की मिसाइल टूट पड़ी।वह अचेत हो गया।
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