उधर जैसे ही विश्व-कप में हमारे खिलाड़ियों के उम्दा प्रदर्शन की ख़बर विलायत से आई,इधर देश के अंदर छुपे होनहार ‘खिलाड़ी’ छटपटा उठे।उन्हें अपने हुनर को आजमाने का अच्छा अवसर दिखाई दिया।हमारे यहाँ राजनीति का क्षेत्र कभी भी प्रतिभा-शून्य नहीं रहा।जब भी लगा कि देश ‘ग़लत’ दिशा में आगे बढ़ रहा है,राजनीति हमें ‘सही’ राह पर ले आती है।जनसेवक जी इस काम के लिए सबसे आगे आए।वे ‘बल्लेबाज़ी’ के लिए इतना आतुर हुए कि एक राजसेवक के पैरों को ही स्टम्प समझकर उखाड़ने लगे।बुरा हो ऐसी व्यवस्था का,जिसने ऐसी प्रतिभा को सम्मानित करने के बजाय हवालात में डाल दिया।यह तो अच्छा हुआ कि ‘जनसेवा’ करने के तुरंत बाद हवालात जाने से पहले वे हमसे बातचीत को तैयार हो गए।हवा में ही हुई उस दुर्लभ मुलाक़ात में पहला सवाल हमने यही पूछा कि आपको ऐसी बल्लेबाज़ी की प्रेरणा कैसे मिली ? सवाल सुनकर वे शून्य की ओर ताकने लगे।फिर धीरे-धीरे कहना शुरू किया-‘दरअसल,हम बचपन से ही बल्लेबाज़ बनना चाहते थे।स्कूल की टीम में हमने सिर्फ़ दो साथियों के सिर फोड़े थे फिर भी हमारा चयन नहीं हुआ था।चयनकर्ता चाहते थे कि जब तक हम टाँग-तोड़ने की कला विकसित नहीं कर लेते,कामयाब खिलाड़ी नहीं हो सकते।तब तो हम मन मसोसकर रह गए थे।अब जब जनता ने ही हमें अपनी सेवा करने का अवसर दिया है तो हम क्यों चूकते ! प्रतिभा भले कुछ दिन के लिए छुप जाय,कभी न कभी बाहर आती ही है।हमें ख़ुशी है कि नई पीढ़ी के लिए हम प्रेरणास्रोत बने।हमारी इस उपलब्धि से अन्य खिलाड़ियों का मनोबल भी बढ़ेगा।’
‘पर ‘लेग-स्टम्प’ उखाड़ने का काम तो क्रिकेट में गेंदबाज़ करता है,आपने ‘बल्लेबाज़ी’ से यह अद्भुत कारनामा कैसे किया ?’हमने भी ‘दूसरा’ फेंकते हुए उन्हें चौंकाया।
वे क़तई नहीं चौंके।बड़ी सहजता से खेल गए।कहने लगे,‘हम हमेशा नए प्रयोग करने के हामी रहे हैं।गोली-बंदूक़ से मारने की परंपरा अब पुरानी हो चुकी है।हम इस तरह की हिंसा के ख़िलाफ़ हैं।यहाँ तक कि ‘जूतामार’ कला भी आउटडेटेड हो चुकी है।पुरानी तरकीबों से न हनक बढ़ती है,न ‘टीआरपी’।ले-दे के हमारे पास यही एक विकल्प बचा था।सामयिक होने के नाते भी ‘बल्ला’ हमारी प्राथमिकता में था।इसलिए नई तकनीक का सहारा लिया।कलाई के बेहतर प्रयोग के कारण ‘बैटमार’ एक उन्नत कला है।यह सबको ठीक से आती भी नहीं।’ उनका यह जवाब सुनकर हमारी उम्मीदें और बढ़ गईं।हमने ‘यार्कर’ डालने की कोशिश की-‘पर कुछ लोगों का कहना है कि आपके इस तरह ‘बल्लेबाज़ी’ करने से विकास अवरुद्ध हो सकता है।उसके कदम रुक भी सकते हैं ?’
जनसेवक जी एकदम से संवेदनशील हो गए।भावुक होते हुए बोले-‘अगर विकास दो-चार टाँगें टूटना भी ‘अफ़ोर्ड’ नहीं कर सकता तो ख़ुद सोचिए,उसकी नींव कितनी खोखली है।हम ऐसा ‘विकास’ नहीं चाहते।किसी देश का इतिहास यूँ ही नहीं बनता।वह प्रतिक्षण बलिदान माँगता है।इस बारे में हमारी कार्यप्रणाली एकदम स्पष्ट है।पहले आवेदन फिर निवेदन,इसके बाद दे-दनादन।कुछ लोग भीड़ का हिस्सा बनकर ‘भारत-निर्माण’ में लगे हैं,हम अकेले ही इस परियोजना को संपन्न कर रहे हैं।विरोधियों को यह नहीं सुहा रहा है।’ इतना कहकर वे अपना बल्ला सीधा करने लगे।‘आप पर क़ानून को हाथ में लेने का आरोप लगाया जा रहा है।क्या यह बात सही है ?’हमने इस बार गुगली आजमाई।
अब वे हँस पड़े।बोले-‘यह वाला आरोप तो एकदम निराधार है।क़ानून को हाथ में लेने का सवाल ही नहीं है।हम इसे ससम्मान अपनी जेब में रखते हैं।और हाँ,क़ानून को अपने हाथ में रखने वाले आजकल ख़ाली हाथ घूम रहे हैं।अब तो जनता भी उनके साथ नहीं है।सबने देखा है कि हमारे हाथ में केवल ‘बल्ला’ था।हम तो सिर्फ़ ‘आक्रामक बल्लेबाज़ी’ कर रहे थे।’ उनकी इस बाल-सुलभ मासूमियत देखकर हम भी अपनी ‘औक़ात’ भूल बैठे।उसी मासूमियत से पूछ बैठे-‘आपको इतना तो याद होगा कि ‘बैटिंग’ करते हुए आपने कितना ‘स्कोर’ बनाया था ?’ वे छूटते ही बोल पड़े-‘हमें बल्ले के अलावा कुछ भी याद नहीं।हमारा ‘स्कोर’ तो जनता चुनावों में बताएगी।एक और पते की बात बताता हूँ।किसी ग़रीब का दुःख हमसे देखा नहीं जाता।उसी दुःख को दूर करने की यह छोटी-सी कोशिश थी,बस।फिर मौक़ा मिलने पर हम जनसेवा से पीछे नहीं हटेंगे।’
‘अच्छा आख़िरी बात।आपको हवालात जाने का कितना दुःख है ?’ हमने छोटी बॉल डालकर उन्हें ललचाया।वे जैसे इसी इंतज़ार में थे।बॉल को सीमापार भेजते हुए बोले-‘लगता है आपकी भी हिन्दी ख़राब है ! अरे भाई,चोर और उचक्के ‘हवालात’ जाते हैं।जनसेवक हवालात नहीं कारागार जाते हैं।कारागार तो हमारी उन्नति का मार्ग प्रशस्त करते हैं।हमारे कई महापुरुषों ने यहीं रहते हुए महत्वपूर्ण साहित्य रचा।हम यहीं से चुनाव लड़कर इतिहास रचेंगे।अतीत से हम यही सबक़ तो ले रहे हैं,पर ‘बिकाऊ-मीडिया’ यह सब नहीं बताएगा।आप अपनी हिन्दी दुरुस्त कीजिए।हम देश को दुरुस्त कर रहे हैं।’
ऐसा कहकर उन्होंने बल्ला उठा लिया।हम ख़ुद पर और अपनी हिन्दी पर तरस खाते हुए लौट आए।
संतोष त्रिवेदी
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