चित्रगुप्त बेहद चिंतित नज़र आ रहे थे।बार-बार बहीखाता झाँक रहे थे।चेहरे पर मंदी का असर साफ़ दिख रहा था।भारतवर्ष की सड़कों से आत्माओं की आवक अचानक कम हो गई थी।अभी तक सबसे अधिक आपूर्ति वहीं से हो रही थी।‘ऐसा क्या हुआ कि मौत के सेक्टर में भी मंदी आ गई ? आदमी सड़क पर नहीं मरेंगे तो यमलोक का ‘टारगेट’ कैसे पूरा होगा ? बेचारे अस्पताल अकेले कितना सहयोग करेंगे !’ चित्रगुप्त मन ही मन बड़बड़ा रहे थे कि तभी यमराज प्रकट हुए।
‘क्या बात है चित्रगुप्त ? पृथ्वीलोक की कोई आत्मा कष्ट दे रही है क्या ?’ यमराज ने पूछा।‘नहीं प्रभु ! चिंता की बात यह है कि हमारे यहाँ घोर मंदी छा गई है।भारतवर्ष ने हमें सहयोग देना बंद कर दिया है।अगर यही सब चलता रहा तो हमारी व्यवस्था चौपट हो जाएगी।काम न मिलने की वजह से यमदूतों में असंतोष बढ़ रहा है।’ चित्रगुप्त ने अपनी चिंता ज़ाहिर की।
यह सुनकर यमराज सन्नाटे में आ गए।कहने लगे-‘हमारे प्रयासों में कहाँ कमी रह गई ? क्या जीवात्माओं में जीवन के प्रति आसक्ति बढ़ गई है ?अगर ऐसा है तो बेहद चिंताजनक बात है।पहले तुम प्रोत्साहन-पैकेज का ऐलान करो फिर मृत्युलोक में एक वरिष्ठ यमदूत भेजकर इस क्षति का वास्तविक कारण पता लगाओ।’ चित्रगुप्त ने सहमति में सिर हिलाया और तुरंत वरिष्ठ यमदूत को तलब किया।
यमदूत पर्याप्त वरिष्ठ था।कई ‘संभावनाशील’ युवाओं को नष्ट करने का उसे ख़ासा अनुभव था।दरबार का अनुरागी होने के साथ-साथ वह वफ़ादार भी था।जिसका खाता था,उसी का बजाता था।आते ही चित्रगुप्त ने उसे काम सौंप दिया।वरिष्ठ ने केवल एक शर्त रखी।वह इस ‘मिशन’ पर एक सहायक के साथ जाएगा।इससे उसका मन लगा रहेगा और उसे वरिष्ठता का लगातार अहसास भी होता रहेगा।मामले की गंभीरता को देखते हुए चित्रगुप्त ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।उन्होंने वरिष्ठ की पसंद के एक उभरते हुए दूत को उनके साथ भेज दिया।
अगले पल दोनों भारतवर्ष की राजधानी में थे।सड़क पर ही पंचायत लगी थी।रफ़्तार के सभी खिलाड़ी वहाँ मौजूद थे।भीड़ के बीच में ही यमलोक से आए दोनों प्रतिनिधि घुस गए।माहौल बड़ा गर्म था।बुज़ुर्ग ट्रक की अपील ज़बर्दस्त थी।मंच ढहाने में माहिर था।वह ज़ोर से भरभराने लगा,‘हम सड़क के राजा हैं।जब हम ओवरलोड होते हैं,तभी हमारा और हमारे मालिक का ‘मौसम’ बनता है।सड़क रौंदने के बाद ही हम में दम आता है।इससे पी॰डबल्यू॰डी॰ वालों को भी काम मिलता है।फिर भी सरकार हम पर जुर्माना ठोंक रही है।ठोंकने का काम तो हमारा है भाइयो,बहनो ! हम सरकार को रोज़गार छीनने नहीं देंगे।’ ऐसा प्रेरणादायक संदेश पाकर भीड़ में जान आ गई।इससे दूसरों की जान लेने का जज़्बा और मज़बूत हो गया।पंचायत में मौजूद रंगीनमिज़ाज ट्रैक्टर से रहा नहीं गया।अपनी ट्राली की ओर देखते हुए वह बोला,‘क़सम तिराहे वाली देवी माँ की,हम इंसानों की बलि लेकर रहेंगे।जुताई-बुआई में वो रोमांच कहाँ जो किसी का परिवार उजाड़ने में है।हम मुफ़्त में लोगों को मुक्ति प्रदान कर रहे हैं।यह भी इस सरकार से सहन नहीं हो रहा।’ इतना सुनते ही चारों ओर से हूटर बजने शुरू हो गए।
इसी शोर में नए मॉडल की कार ने एक्सिलरेटर लहराते हुए कहा, ‘हमें मोबाइल देखने तक की मनाही है।चैटिंग और स्टेटस अपडेट करते हुए क्या-क्या कट जाता था,पता ही नहीं चलता था।यू नो,अब इस पर भी चालान कट रहा है।ऐसे में अर्थव्यवस्था की चाल तो बिगड़ेगी ही।मंदी का ठीकरा हम पर क्यों ? सड़क-मार्ग को हम ‘स्वर्ग-मार्ग’ बनाकर रहेंगे।फुटपाथ को हमने पहले ही पार्किंग बना डाला है।आख़िर सरकार और कितना सैक्रिफाइस चाहती है हमसे ?’
यह सुनकर पास में खड़ी युवा बाइक धड़धड़ाने लगी-‘हम मरजीवड़े हैं।मौत का साफ़ा बाँध के चलते हैं तो हेलमेट क्यों पहनें ? सड़क पर भी नियम मानेंगे तो हो गया लोकतंत्र का भला ! चारों तरफ़ मंदी का राग गाया जा रहा है पर असली वजह हम बताते हैं।हेलमेट बाँधने के बाद क्या फटफटिया,क्या हवाई बाइक,कोई फ़र्क़ ही नहीं दिखता।जब मुँह ही नहीं कोई देखेगा तो फिर कोई लाखों रुपए हम पर क्यों ख़र्च करे ? दो पैसे की फटफटिया न ले ले !’ इतना सुनते ही साथ खड़ी स्कूटी ने इस बात को सीधे दिल में ले लिया।बोल उठी-‘दिखने में भले दुबली-पतली हूँ,एवरेज के मामले में टॉप पर हूँ।स्ट्राइक-रेट तुमसे थोड़ा ही कम है।और हाँ,दस-बारह साल के बच्चे हमें ही पसंद करते हैं।’
माहौल देखकर दूर खड़ी साइकिल ने भी बोलना चाहा।कार ने उसे तुरंत हड़क दिया,‘तुम्हारे बिकने न बिकने से अर्थव्यवस्था पर असर नहीं पड़ता।तुम राजधानी की सड़क के बाहर ही रहो।गाँव-गली में घूमो।किसानों की सेहत सही करो।शहर की सेहत संभालने के लिए हम हैं।’
इस बीच ख़बर आई कि इस ‘जुर्माना रोको’ आंदोलन को पक्ष-विपक्ष दोनों का समर्थन प्राप्त है।यह समाचार पाते ही यमलोक से आए दोनों दूत अंतर्धान हो गए।उन्होंने यमलोक पहुँचते ही चित्रगुप्त के कान में यह ख़ुशख़बरी उड़ेल दी ;
‘हमें अब कुछ करने की ज़रूरत नहीं है।पहले की ही तरह सड़क पर मरने-मारने के लिए आम सहमति बन गई है।’
संतोष त्रिवेदी
1 टिप्पणी:
बढ़िया :)
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