रविवार, 9 फ़रवरी 2020

प्रिय लेखक के अवसान का दुःख !

साधक जी गहरे सदमे में थे।उनके प्रिय लेखक का निधन हो गया था और यह ख़बर उन्हें पूरे बत्तीस मिनट की देरी से मिली थी।अब तक तो सोशल मीडिया में कई लोग बाज़ी मार ले गए होंगे।यह उनकी अपूरणीय क्षति थी।फिर भी उन्होंने ख़ुद को संभाला।ऐसा करना ज़रूरी था नहीं तो क्षति और व्यापक हो सकती थी।पहले तो उन्होंने इस ख़बर की पुष्टि की।इस बार पक्की सूचना थी कि उनकेप्रिय लेखक’ साहित्यिक-यात्रा के बजाय अंतिम-यात्रा पर ही निकले हैं।इससे इत्मिनान हुआ।पहले वे दो बारफ़ेक-न्यूज़से गच्चा खा चुके थे।वरिष्ठ लेखक से नज़दीकी दिखाने की जल्दबाज़ी में उनके स्वर्गारोहण से पहले ही सोशल मीडिया कीदीवारपर वे उनकाशोकोत्सवमना चुके थे।पाँच मिनट में पचास श्रद्धांजलियाँ भी समर्पित हो गई थीं।अचानक लेखक जी की निग़ाह जब अपनी ही ‘जीवित-श्रद्धांजलि’ पर पड़ी तो सोशल मीडिया पर साधक जी  द्वारा अर्जित की गई सारी संपत्ति पल भर में स्वाहा हो गईलेखक जी बेहद संवेदनशील थे और सालाना होने वाले कवि-सम्मेलन के अध्यक्ष भी।इस छोटी-सी नादानी ने साधक जी का बड़ा नुक़सान कर दिया था।उस साल के कवि-सम्मेलन का उनका लिफ़ाफ़ा भी उनसे रूठ गया था।ऐसी अक्षम्य ग़लती वे फिर नहींअफ़ोर्डकर सकते थे।इस बार लेखक जी सचमुच निपट गए थे।मौत को उन्होंने मौक़े की तरह लपका।

साधक जी ने तुरंत सोशल मीडिया में लॉग-इन किया।वहाँ कोहराम मचा हुआ था।एक नवोदित कवि सबसे ज़्यादाट्रेंडकर रहा था।उसने लेखक जी की लाश के साथ ही सेल्फ़ी ले ली थी।वह ख़ूब वायरल हो रही थी।यह देखकर उनका दिल बैठ गया पर उन्हें अपनी प्रतिभा पर पूरा भरोसा था।ऐसे कई झटके खाने का उनका लम्बा तजुरबा रहा है।उन्होंने जल्द से पुराने अल्बम खँगाले।कभी वे लेखक के बड़े ख़ास थे।सो उनके साथ खींचे गए चित्रों का अच्छा-ख़ासा स्टॉक उनके मेमोरी-कॉर्ड में जमा था।उसमें एक तस्वीर ऐसी भी थी,जिसमें वे अपने प्रिय लेखक से अस्पताल के आईसीयू में मिले थे।वे अपनी प्रतिभा पर गर्वित हो उठे।जैसे ही उन्होंने उस दुर्लभ फ़ोटो को प्रिय लेखक से आख़िरी आशीर्वाद का सौभाग्य इस नाचीज़ को’ कैप्शन के साथ परोसा,पूरी साहित्यिक बिरादरी उस पर टूट पड़ी।लोगों ने अंततः उनके दुःख को मान्यता दे दी।वे बराबर हर श्रद्धांजलि को ‘लाइक’ कर रहे थे।इससे उनका दुःख लगातार ‘अपडेट’ हो रहा था।यहाँ तक कि उनका यह ‘दुःख’ ट्विटर पर भी ‘ट्रेंड’ करने लगा।बहरहाल,उन्होंने एक घंटे में ही उस नवोदित कवि के दुःख को पटकनी दे दी।

स्वर्गवासी लेखक की ऐसी श्रद्धांजलि देखकर कई वरिष्ठ अंदर ही अंदरकलपनेलगे।सोचने लगे कि साहित्य में ऐसे जीवित रहने से अच्छा है कि इस तरह की मौत ही जाए ! कम से कम एक दिन के लिए ही सही,वे चर्चित तो होंगे।पर प्रकटतः यह सब तो नहीं कह सकते थे।आख़िर लोकलाज भी कोई चीज़ होती है ! साहित्यकार होने के नाते सभी पर्याप्त संवेदनशील थे।जिस लेखक का शोक इतना वायरल हो चुका हो,उस पर कुछ तो लिखना होगा।यही सोचकर एक वरिष्ठ ने मर्मांतक संस्मरण लिखा, ‘वे बड़े हठी लेखक थे।हमेशा लिखते रहे।हमने एकाध मौक़ों पर उनके लेखन पर टोका भी तो कहते कि हमसे प्रेरणा पा रहे हैं।साहित्य की सद्गति होने तक लिखते रहेंगे।अब किसको पता था कि साहित्य से पहले उनको ही सद्गति मिलेगी ! जीवन भर वे जाने कहाँ-कहाँ पड़े रहे ,किस-किसको पकड़े रहे ! ईश्वर अब उन्हें अपने चरणों में जगह दे !’

दूसरे वरिष्ठ और उनसे ज़्यादा आहत दिखे।स्वर्गीय लेखक के समकालीन थे पर अभी हृष्ट-पुष्ट थे।पिछले महीने हीपचहत्तर पारका उत्सव मनाया था।उन्होंने मारक टिप्पणी की , ‘वे समकालीन साहित्य की पूँजी थे।मेरा उनसे घनिष्ठ लगाव था।जब वे नवोदित लेखक थे,मेरे ही किरायेदार थे।किराया तो छोड़िए,हमने कभी भी उनको उधारी देने से मना नहीं किया।माँगने के मामले में वे शुरू से ही उदार थे।यहीं से साहित्य मेंउदारवादकी नींव पड़ी।उन्होंने किसी से भेदभाव नहीं किया।सबसे उधार माँगते थे।ऐसी पूँजी के बिना साहित्य आज अपने को अनाथ महसूस कर रहा है।

ऐसे-ऐसे संस्मरण पढ़कर साधक जी घबराने लगे।नवोदित कवि को तो वे निपटा चुके थे पर ये तो उनकी ही तरह प्रतिभा सेलैसथे।उन्होंने अतिरिक्त दुःख से आख़िरी वार किया,‘अपने प्रिय लेखक की याद में हम हर वर्षलेखक उठाओ सम्मानदेंगे।इसके लिए हमारे साहित्यिक-गिरोह के दस सदस्य त्याग करने के लिए तैयार हैं।ये अगले दस सालों तक एक-दूसरे को यह सम्मान लेते-देते रहेंगे।इससे साहित्य में आपसी सद्भाव भी बना रहेगा।जीवन भर उनको जो सम्मान नहीं मिले,हम सब उन्हें हथियाने का संकल्प लेते हैं।उस पुण्यात्मा के लिए यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

आख़िरकार साधक जी नेमौतको सुपरहिट कर दिया।उधर लेखक जी की आत्मा स्वर्ग से यह सब देखकर तड़प रही थी कि आभासी दुनिया में मिले इतनेसम्मानको काश वह भीलाइककर पाती !
संतोष त्रिवेदी 

2 टिप्‍पणियां:

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (10-02-2020) को 'खंडहर में उग आयी है काई' (चर्चा अंक 3607) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
रवीन्द्र सिंह यादव

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

लाईक तो बनता है। :)

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