इधर कई दिनों से प्रधानसेवक जी के राष्ट्रीय-दर्शन नहीं हुए।वे जब भी दिखते हैं,अच्छा लगता है।वो जब बोलते हैं तो मंत्रमुग्ध होकर सुनता हूँ।क्या पता,तनिक चूक हो जाए और ज़िंदगी भर हाथ मलता रह जाऊँ ! देखिए न,नोटबंदी को गंभीरता से न लेने वाले आज तक भुगत रहे हैं।भ्रष्टाचार और कालेधन का नामलेवा नहीं बचा आज।इसलिए उनके आने की आहट से भी चौंक उठता हूँ।वैसे तो उनका आना तय-सा है।वे या तो आपदा के समय आते हैं या उनके आने के बाद आपदा आती है।वे जब सबके सामने नहीं आते हैं, इसका मतलब यह नहीं कि वे ‘डिस्कवरी चैनल’ की शूटिंग में ही व्यस्त हों।उस वक्त वे किसी सेलिब्रिटी को जन्मदिन की शुभकामनाएँ ट्वीट कर रहे होते हैं।फिर जो काम बिना बोले हो जाए,उसके लिए ट्वीट क्यों खर्च की जाए,इसलिए बाज दफ़ा वे चुप ही रहते हैं।बड़े मसलों पर चुप्पी साधना बेहतर रणनीति होती है।अब विरोधियों को उनकी इस ‘नीति’ पर भी एतराज़ है।अगर वे विपक्ष के हिसाब से चलते तो वे आज देश चलाने के बजाय प्रदेशों में अपनी सरकारें बचा रहे होते !
यह तो हमारा सौभाग्य है कि हमें ऐसी सकारात्मक सोच वाली सरकार मिली है।लेकिन दुर्भाग्य यह है कि मनपसंद विपक्ष नहीं मिला है।बिलकुल नकारा और नकारात्मक प्रवृत्ति के लोग हैं।जब देखो तब केवल सवाल करते रहते हैं।यह पहली ऐसी लोकतांत्रिक सरकार है जिसने विपक्ष को भी कुछ करने का अवसर दिया है।चुनौती उछाली है।उसे काम करने की श्रेणी में डाला है।ऐसे में विपक्ष यदि कोई काम नहीं करता है तो उसकी ज़िम्मेदार सरकार कैसे है ? सच तो यह है कि मूढ़ों को आपदा को अवसर में बदलना नहीं आता।कुछ तो इतने नादान हैं कि ‘कड़ी निंदा’ वाले पुराने ट्वीट तक खोदकर ला रहे हैं।इन नासमझों को नहीं पता कि वे अपनी ही ज़मीन खोद रहे हैं।यह भी भूल गए कि गुजरा वक़्त कभी लौटकर नहीं आता।विपक्ष को जहाँ ठीक से मास्क तक ख़रीदना नहीं आता,वहीं सत्ता-पक्ष पराए जनसेवकों को गले लगा रहा है।यह सरकार का सर्व-समावेशी कार्यक्रम है।मुसीबत में मज़बूत होना इसी को कहते हैं।लोकतंत्र में इससे बेहतर ‘समर्पण’ और क्या होगा !
शास्त्रों में भी ‘दर्शन’ का बड़ा महत्व बताया गया है।इसलिए ‘दर्शन’ पर मेरी अटूट निष्ठा है।अब इसमें बाधा पड़ रही है।हालिया दिनों में दूरदर्शन में प्रधानसेवक जी के न दिखने से उसे देखने का रोमांच भी जाता रहा है।उसकी रेटिंग पहले जैसी नहीं रही।‘रामायण’ और ‘महाभारत’ की विदाई के बाद ‘राष्ट्रीय संबोधन’ का बिछोह असहनीय हो रहा है।प्रधानसेवक जी के दूरदर्शन पर प्रकट न होने की कई वजहें हो सकती हैं।हो सकता है कि वे किसी मास्टर-स्ट्रोक की तलाश में हों।उनको नज़दीक से जानने वाले जानते हैं कि ऐसे समय में वे कुछ एकदम से नया कर देते हैं।मीडिया से ज़्यादा उनके नज़दीक इस वक़्त कोई नहीं है।वे कभी भी ‘हाउडी-हाउडी’ या ‘ताली-थाली’ जैसा आह्वान करके अपने आलोचकों का मुँह बंद कर सकते हैं।इस काम में थोड़ी-सी अड़चन अभी यह है कि कोरोना-कृपा से सभी के मुँह ‘ऑलरेडी’ बंद हैं।वे देश के बारे में अहर्निश चिंतन करते हैं।इसमें किसी को शक नहीं।ऐसे समय में जब लोग अपने घरों से निकलने में डर रहे हैं,वे बाहर जाने का जोख़िम उठा सकते हैं।सुना है,दो मज़बूत जहाजों का इंतज़ाम भी हो गया है।ये प्रवासी मज़दूरों के लिए तो नहीं हो सकते।उनका वज़न इतना है भी नहीं।उन्हें अपने देश में ही ‘पदयात्रा’ और पर्यटन का मौक़ा भी इसी सरकार ने मुहैया कराया है।
विपक्ष तो ख़ाली बैठा है।दिन-प्रतिदिन ‘ख़ाली’ हो रहा है।उसके आरोप अनर्गल हैं।यदि सरकार कुछ देर के लिए सो भी गयी तो यह हमारी ही बेहतरी के लिए है।इम्यूनिटी के लिए बेहतर नींद की दरकार होती है।इस बात की सलाह तो डॉक्टरों ने भी दी है।सरकार सोकर बस अपनी इम्यूनिटी बढ़ा रही है।उल्टे विपक्ष को नींद की सख़्त ज़रूरत है।अगले चुनावों तक उसे गहरी नींद की दरकार है।सरकार की तरह वह भी ट्विटर पर दिखती है।और हाँ,सरकार पर बेरोज़गारी फैलाने का आरोप निहायत ग़लत है।वह इतना काम कर रही है कि सवाल करने तक के लिए लोग बिठा रखे हैं।
रही बात वायरस की,उससे तो सभी निपट रहे हैं।आगे भी निपटते रहेंगे।फ़िलहाल कोरोना को छोड़कर ‘वर्चुअल-रैलियाँ’ शुरू हो गई हैं।बहस में वायरस के बजाय बयान आ गए हैं।पक्ष और विपक्ष के प्रवक्ता जब प्राइम-टाइम में एक-दूसरे पर टूट पड़ें,तब जाकर लगता है कि देश के हालात बिलकुल सामान्य हैं।कुछ लोग बेवजह वायरस से डर रहे हैं,जबकि उनके सामने डरने के पर्याप्त विकल्प मौजूद हैं।
प्रधानसेवक जी भले ही सामने न आएँ हों,पर इस बीच हम सबके लिए एक ख़त ज़रूर लिखा है।इससे हमें ख़ूब हौसला मिला।ऐसे समय में जब सबका जीवन दांव पर लगा है,प्यार से ख़त लिखना कोई छोटी बात नहीं।उनकी इस सदाशयता के लिए कई दिनों से उनको आभार देना चाह रहा था।पर क्या करूँ,मैं भी ख़ाली नहीं था।सोशल-मीडिया में फँस गया था।उधर अपन के दो-तीन ‘पिरोग्राम’ लग गए थे।इधर मंचों में काम ख़त्म होने से बड़ी कड़की है।सोशल-मीडिया में कुछ मुद्रा तो नहीं प्राप्त हुई पर काव्य-पाठ करते हुए अपनी वास्तविक मुद्रा को पहली बार देखा।इत्ता बुरा भी नहीं लगता।काव्य-पाठ भी खूब लंबा चला।तभी रुका जब ‘डेटा-पैक’ समाप्त हो गया।पहले रचनाएँ सामने आती थीं,अब रचनाकार प्रकट हो रहे हैं।कोरोना-काल में आत्म-दर्शन हो रहा है,इतना कम है क्या ?
संतोष त्रिवेदी
1 टिप्पणी:
बहुत बढ़िया और चुटिला व्यंग्य!
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