कोरोना जी के जाने की अभी तक कोई भनक हमारे कानों में नहीं आई पर उनके ‘सामाजिक’ होने को लेकर रोज़ नए रहस्य कान खा रहे हैं।एक ताज़ा शोध बताता है कि वायरस जी में ‘मिलनसारिता’ का नायाब गुण है।ये जिनकी देह में सक्रिय होते हैं,उसमें सामने वाले ‘देहधारी’ से मिलने की अजब बेचैनी हो उठती है।ये महाशय उससे मिलने के लिए ‘धारक’ को उकसाते रहते हैं।या यूँ कह लीजिए,सामने वाले की ओर धकेलते हैं।इसलिए अगर इस तरह की ‘मिलाई’ से बीमारी की भलाई हो रही है तो इसका श्रेय केवल वायरस जी को जाता है,‘धारक’ को नहीं।इसका मतलब है कि ये तन को ही नहीं मन को भी डिगा रहे हैं।अपनी सक्रियता से अनूठे क़िस्म का ऐसा प्रेम-जाल फैलाते हैं कि सामने वाला मास्क-विहीन हो जाता है।इस लिहाज़ से कोरोना जी बड़े ही शातिर और दिलफेंक क़िस्म के निकले हैं।भले ही इनकी यह अदा किसी और की जान ले ले ! और जान का क्या है,कोरोना जी नहीं लेंगे तो बहुतेरे दूसरे हैं जो आम आदमी की जान के पीछे पड़े हैं।बहरहाल इस बहाने जान निकलेगी तो सरकार की ‘गिनती’ में तो आएगी !
उधर वैज्ञानिक हार मानने को तैयार नहीं हैं और इधर कोरोना जी भी ट्रंप चचा की तरह जीत की ज़िद पर अड़े हैं।देर-सबेर बीमारी का टीका तो बन जाएगा पर ज़िद का नहीं।वैज्ञानिक ट्रायल पर ट्रायल कर रहे हैं,पर कोरोना जी का अभी ‘ह्यूमन-ट्रायल’ पूरा नहीं हुआ है।पहले नाक से,फिर आँखों और मुँह से मनुष्य में इनकी घुसपैठ की पुख़्ता खबरें आईं,बाद में पता चला कि ये महोदय इतना कारसाज हैं कि हवा और कान से भी मानव-देह तोड़ सकते हैं।कभी-कभी तो ये ईश्वर जी से भी ऊँची चीज़ लगने लगते हैं।तुलसी बाबा ने ईश्वर जी के बारे में लिखा है, ‘बिनु पद चलइ,सुनइ बिनु काना।कर बिनु करम करइ बिधि नाना’।अब ख़ुद ही देखिए,लगभग इसी तरह के ‘लच्छन’ वायरस जी के भी लगते हैं।और तो और कोई आख़िरी फ़ैसला अभी तक इस बारे में हो ही नहीं पाया कि इनके ‘मानव-मिलन’ का बस यही एकमात्र उपाय है।वे अपने चाहने वालों से रंग-रूप-भेष बदलकर मिल रहे हैं।इससे साफ़ ज़ाहिर है कि इनके अंदर ‘मिलनसारिता’ का कितना बड़ा ‘डोज़’ है ! कुछ सरकारों का मानना है कि कोरोना जी ‘निशाचर’ हैं।इन्हें रात में ज़्यादा दिखता है क्योंकि ये चमगादड़ की पैदाइश हैं।इसलिए रात में कर्फ़्यू की मुनादी कर दी गई है।वैसे भी जब कोरोना जी को दिन-दहाड़े सबसे ‘मिलने’ की ‘गाइड-लाइन’ बन चुकी है तो इन्हें रात-बिरात मुँह मारने की ज़रूरत ही क्या ?
कोरोना जी ने समाज के अलावा साहित्य में भी गंभीर दख़ल दी है।कविवर पैदल तो हुए ही भावहीन भी हो गए।हमें तो शुरुआत से ही कोरोना जी प्रेम-शत्रु लगे थे।इनके रहते हर खूबसूरत चेहरे को मुए मास्क में क़ैद होना पड़ा।‘शारीरिक-दूरी’ और ‘मुँहबंदी’ जैसे आदिमकालीन टोटके तो प्रेम-पुजारियों के लिए क़हर बनकर टूटे हैं।लॉक-डाउन खुलने के बाद उम्मीद थी कि हसीन चेहरे भी बंद दरवाज़ों से बाहर झाँकेंगे पर तौबा तौबा ! इसके लिए जुर्माने तक की नौबत आ गई।ऐसे में कोई मुहब्बत करे भी तो कैसे ? आशिक़ और सिरफिरे लोग बेरोज़गार बैठे हैं,जबकि रोमांटिक कवि और शायर बेज़ार हैं।उन्हें अब ‘मैचिंग-मास्क’ से प्रेरणा लेनी पड़ रही है।कोरोना जी की तीसरी-चौथी लहर के बीच लगता है कवि जी की दिल की लहर कहीं ग़ुम हो गई है।बौद्धिक श्रोताओं को सूझ नहीं रहा कि ‘दिल में इक लहर-सी उठी है अभी’ सुनकर वे वायरस से डरें या ग़ज़ल से !
रही बात कोरोना जी के प्रभाव की,इस मामले कोई दो राय नहीं कि इनकी मारक क्षमता तब और बढ़ जाती है जब वह ‘राजधानी-रिटर्न’ हों ! सत्ता और साहित्य के वायरस को लादे जब ये सुदूर स्थानों पर पहुँचते हैं तो वहाँ भी सरकारों के मुँह में पड़े ताले खुलने लगते हैं।राजधानी से लौटा सामान्य आदमी एक ख़तरनाक वायरस में तब्दील हो जाता है।इसलिए उसकी जाँच-पड़ताल सब जगह हो रही है।सरकारों का मानना है कि वह एक यात्री नहीं,स्वर्गधाम का एजेंट भी हो सकता है।हमारे यहाँ ऐसे लोगों की संख्या अनगिनत है जो परलोक सुधारने के लिए अपना ‘लोक’ बिगाड़ रहे हैं।ऐसे लोग ‘स्वर्गिक-सुख’ पाने के लिए मरे जा रहे हैं।उनमें मुक्ति की इतनी तीव्र कामना है कि वे बाज़ारों,बारातों और रेलगाड़ियों में उमड़े पड़ रहे हैं।
स्वर्गवासी बनने की ऐसी चाहत हमारे यहाँ सब पर समान रूप से हावी है।एक-दूसरे से मिलने पर रोक ‘स्वर्गिक-सुख’ में बाधक बन सकती है।हम इस रोक से सहमत नहीं।मिलना-जुलना मनुष्य की स्वाभाविक प्रकृति है।हमें प्रकृति-विरुद्ध कोई काम करने से बचना चाहिए।बचने की असल ज़रूरत तो वायरस जी को होनी चाहिए।देश के दरवाजे पर चार-पाँच ‘वैक्सीनें’ दस्तक दे रही हैं।इससे यही साबित होता है कि वायरस जी का आख़िरी ठिकाना स्वर्ग ही है।उम्मीद है,जल्द ही ये ‘स्वर्गवासी’ भी होंगे।
इस बीच सरकार हलकान है।वह कोरोना जी से लड़ने का पुख़्ता प्लान बना ही रही थी कि बीच में किसान जी आ गए !अब जाने कौन पहले मुक्ति पाएगा !
संतोष त्रिवेदी
1 टिप्पणी:
लाजवाब :)
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