रविवार, 6 दिसंबर 2020

ज़िद पर अड़ा मिलनसार वायरस !

कोरोना जी के जाने की अभी तक कोई भनक हमारे कानों में नहीं आई पर उनकेसामाजिकहोने को लेकर रोज़ नए रहस्य कान खा रहे हैं।एक ताज़ा शोध बताता है कि वायरस जी मेंमिलनसारिताका नायाब गुण है।ये जिनकी देह में सक्रिय होते हैं,उसमें सामने वालेदेहधारीसे मिलने की अजब बेचैनी हो उठती है।ये महाशय उससे मिलने के लिएधारकको उकसाते रहते हैं।या यूँ कह लीजिए,सामने वाले की ओर धकेलते हैं।इसलिए अगर इस तरह कीमिलाईसे बीमारी की भलाई हो रही है तो इसका श्रेय केवल वायरस जी को जाता है,‘धारकको नहीं।इसका मतलब है कि ये तन को ही नहीं मन को भी डिगा रहे हैं।अपनी सक्रियता से अनूठे क़िस्म का ऐसा प्रेम-जाल फैलाते हैं कि सामने वाला मास्क-विहीन हो जाता है।इस लिहाज़ से कोरोना जी बड़े ही शातिर और दिलफेंक क़िस्म के निकले हैं।भले ही इनकी यह अदा किसी और की जान ले ले ! और जान का क्या है,कोरोना जी नहीं लेंगे तो बहुतेरे दूसरे हैं जो आम आदमी की जान के पीछे पड़े हैं।बहरहाल इस बहाने जान निकलेगी तो सरकार कीगिनतीमें तो आएगी !


उधर वैज्ञानिक हार मानने को तैयार नहीं हैं और इधर कोरोना जी भी ट्रंप चचा की तरह जीत की ज़िद पर अड़े हैं।देर-सबेर बीमारी का टीका तो बन जाएगा पर ज़िद का नहीं।वैज्ञानिक ट्रायल पर ट्रायल कर रहे हैं,पर कोरोना जी का अभीह्यूमन-ट्रायलपूरा नहीं हुआ है।पहले नाक से,फिर आँखों और मुँह से मनुष्य में इनकी घुसपैठ की पुख़्ता खबरें आईं,बाद में पता चला कि ये महोदय इतना कारसाज हैं कि हवा और कान से भी मानव-देह तोड़ सकते हैं।कभी-कभी तो ये ईश्वर जी से भी ऊँची चीज़ लगने लगते हैं।तुलसी बाबा ने ईश्वर जी के बारे में लिखा है, ‘बिनु पद चलइ,सुनइ बिनु काना।कर बिनु करम करइ बिधि नाना।अब ख़ुद ही देखिए,लगभग इसी तरह केलच्छनवायरस जी के भी लगते हैं।और तो और कोई आख़िरी फ़ैसला अभी तक इस बारे में हो ही नहीं पाया कि इनकेमानव-मिलनका बस यही एकमात्र उपाय है।वे अपने चाहने वालों से रंग-रूप-भेष बदलकर मिल रहे हैं।इससे साफ़ ज़ाहिर है कि इनके अंदरमिलनसारिताका कितना बड़ाडोज़है ! कुछ सरकारों का मानना है कि कोरोना जीनिशाचरहैं।इन्हें रात में ज़्यादा दिखता है क्योंकि ये चमगादड़ की पैदाइश हैं।इसलिए रात में कर्फ़्यू की मुनादी कर दी गई है।वैसे भी जब कोरोना जी को दिन-दहाड़े सबसेमिलनेकीगाइड-लाइनबन चुकी है तो इन्हें रात-बिरात मुँह मारने की ज़रूरत ही क्या ?


कोरोना जी ने समाज के अलावा साहित्य में भी गंभीर दख़ल दी है।कविवर पैदल तो हुए ही भावहीन भी हो गए।हमें तो शुरुआत से ही कोरोना जी प्रेम-शत्रु लगे थे।इनके रहते हर खूबसूरत चेहरे को मुए मास्क में क़ैद होना पड़ा।शारीरिक-दूरीऔरमुँहबंदीजैसे आदिमकालीन टोटके तो प्रेम-पुजारियों के लिए क़हर बनकर टूटे हैं।लॉक-डाउन खुलने के बाद उम्मीद थी कि हसीन चेहरे भी बंद दरवाज़ों से बाहर झाँकेंगे पर तौबा तौबा ! इसके लिए जुर्माने तक की नौबत गई।ऐसे में कोई मुहब्बत करे भी तो कैसे ? आशिक़ और सिरफिरे लोग बेरोज़गार बैठे हैं,जबकि रोमांटिक कवि और शायर बेज़ार हैं।उन्हें अबमैचिंग-मास्कसे प्रेरणा लेनी पड़ रही है।कोरोना जी की तीसरी-चौथी लहर के बीच लगता है कवि जी की दिल की लहर कहीं ग़ुम हो गई है।बौद्धिक श्रोताओं को सूझ नहीं रहा किदिल में इक लहर-सी उठी है अभीसुनकर वे वायरस से डरें या ग़ज़ल से !


रही बात कोरोना जी के प्रभाव की,इस मामले कोई दो राय नहीं कि इनकी मारक क्षमता तब और बढ़ जाती है जब वहराजधानी-रिटर्नहों ! सत्ता और साहित्य के वायरस को लादे जब ये सुदूर स्थानों पर पहुँचते हैं तो वहाँ भी सरकारों के मुँह में पड़े ताले खुलने लगते हैं।राजधानी से लौटा सामान्य आदमी एक ख़तरनाक वायरस में तब्दील हो जाता है।इसलिए उसकी जाँच-पड़ताल सब जगह हो रही है।सरकारों का मानना है कि वह एक यात्री नहीं,स्वर्गधाम का एजेंट भी हो सकता है।हमारे यहाँ ऐसे लोगों की संख्या अनगिनत है जो परलोक सुधारने के लिए अपनालोकबिगाड़ रहे हैं।ऐसे लोगस्वर्गिक-सुखपाने के लिए मरे जा रहे हैं।उनमें मुक्ति की इतनी तीव्र कामना है कि वे बाज़ारों,बारातों और रेलगाड़ियों में उमड़े पड़ रहे हैं।


स्वर्गवासी बनने की ऐसी चाहत हमारे यहाँ सब पर समान रूप से हावी है।एक-दूसरे से मिलने पर रोकस्वर्गिक-सुखमें बाधक बन सकती है।हम इस रोक से सहमत नहीं।मिलना-जुलना मनुष्य की स्वाभाविक प्रकृति है।हमें प्रकृति-विरुद्ध कोई काम करने से बचना चाहिए।बचने की असल ज़रूरत तो वायरस जी को होनी चाहिए।देश के दरवाजे पर चार-पाँचवैक्सीनेंदस्तक दे रही हैं।इससे यही साबित होता है कि वायरस जी का आख़िरी ठिकाना स्वर्ग ही है।उम्मीद है,जल्द ही येस्वर्गवासीभी होंगे।

 

इस बीच सरकार हलकान है।वह कोरोना जी से लड़ने का पुख़्ता प्लान बना ही रही थी कि बीच में किसान जी गए !अब जाने कौन पहले मुक्ति पाएगा !


संतोष त्रिवेदी 


धुंध भरे दिन

इस बार ठंड ठीक से शुरू भी नहीं हुई थी कि राजधानी ने काला कंबल ओढ़ लिया।वह पहले कूड़े के पहाड़ों के लिए जानी जाती थी...