बुधवार, 28 अगस्त 2013

एक हसरत भरी निगाह चाहिए !

28/08/2013 को जनसंदेश में !

 

देश की अधिकांश फाइलें नाराज़ हैं।इसकी वजह यह है कि कुछ फाइलों पर ज़रूरत से ज़्यादा रोशनी डाली जा रही है,जबकि वे युगों से धूल-धक्कड़ खा रही हैं।उन्हें उड़ते-उड़ते खबर मिली है कि कोयला-फाइलों पर टॉर्च मारी जा रही है । इसकी तात्कालिक वज़ह यह है कि वे अपने मूल स्थान से निकलकर अज्ञातवास को चली गई हैं।बची हुई फाइलें इस बात का शोक मना रही हैं कि वे सालों से बाबुओं और अफसरों की नाक के नीचे पड़ी हैं पर उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है।उन पर कोई टॉर्च तो क्या एक हसरत भरी निगाह भी डालने को तैयार नहीं है।उनकी बेचैनी इसलिए भी है कि वे अच्छी-खासी चिकनी-चुपड़ी हैं,पर सबकी नज़र से बची हुई हैं।उनके अंदर कई विकास-कार्यों की योजनाएं भरी-पड़ी हैं।अगर उन्हें भी बाहर निकलने का मौका दिया जाए तो देश कहाँ से कहाँ पहुँच जाए ! फ़िलहाल तो सारा देश उन कोयला-मुँही फाइलों के पीछे पड़ा है।

इन दबी हुई फाइलों के दर्द अलग-अलग हैं।कोई सीमा पर शहीद हुए उस युवा सैनिक की फ़ाइल है,जिसे सरकार ने पेट्रोल-पम्प आवंटित किया था तो कोई बेरोजगार युवा की है जो अब वृद्धावस्था-पेंशन की पात्रता पा चुका है।ऐसी फाइलें तो अनगिन हैं पर किसी बाबू की नज़र उस पर पड़ती ही नहीं।जिस फाइल पर रुपया गिरता है,वही चलायमान हो जाती है।जो फाइलें अभी ढूंढी जा रही हैं,उन पर तो कोयला गिरा है।उसे काला सोना भी कहते हैं।इस समय जब रोज रूपया गिर रहा है,सोना उछल रहा है,फाइलें भी कोयला-मुँही होना चाहती हैं,पर सभी का नसीब ऐसा कहाँ ?

विपक्ष इस बात पर संसद नहीं चलने दे रहा है कि गुम हुई फाइलों पर प्रधानमंत्री वक्तव्य दें।जिन फाइलों को बाबू तक भाव नहीं देते,उन पर प्रधानमंत्री अपना कीमती मुँह क्यों खोलें ?गुम हुई फाइलें साधारण नहीं हैं।पुरानी कहावत है कि ‘काजल की कोठरी में कैसो हू सयानो जाय,एक लीक काजल की लागि है पै लागि है’।ऐसा नहीं हो सकता कि प्रधानमंत्री के चतुर सलाहकारों ने इस कहावत को उन तक नहीं पहुँचाया हो।विपक्ष बिलावजह हल्ला मचाये हुए है।प्रधानमंत्री समझदार हैं इसलिए ‘एक चुप,हज़ार सुख’ पर अमल कर रहे हैं।  फ़ाइल ढूँढना वैसे भी सरकार का नहीं बाबुओं का काम है। वे बेचारे गिरे हुए रुपये को उठाने में व्यस्त हैं। इससे समय मिले तो फाइलें आगे बढ़ें !

अँधेरी कोठरी में बंद पड़ी फाइलें गुमसुम हैं पर आशावान भी। उन्हें लगता है कि गुम हुई फाइलों का एक न एक दिन पता चल जायेगा,तब उनको भी एक हसरत-भरी निगाह नसीब होगी।  

हिंदुस्तान में ०३/०९/२०१३ को

आओ,सब मिलकर खाते हैं !

28/08/2013 को जनवाणी में

 
 
खाना हर आदमी की ज़रूरत है ,इसे आखिरकार सरकार ने समझ लिया है इसीलिए उसने सबके खाने के लिए ‘खाद्य-सुरक्षा कानून ’पास होने को प्राथमिकता दी है।जल्द ही देश के सारे लोग खाते-पीते वर्ग में शुमार होने लगेंगे।वैसे यह योजना केवल गरीबों के लिए है क्योंकि सरकार को भी पता है कि बाकी लोग ख़ूब खा रहे हैं।ऐसे में समाज का कोई तबका खाने से वंचित रह जाय,यह जनता की सेवा के लिए मरी जा रही सरकार को कैसे सहन होता ?अपने नौ साल के कार्यकाल में पहली बार सरकार ने समाजवाद पर अमल किया है।अब सब मिलकर खायेंगे।
हमारे देश का विपक्ष किसी गैर-दुनिया में रहता है।उसे हर मुद्दे पर नाक-भौं सिकोड़ने की आदत हो गई है।उसे इस बात पर आपत्ति है कि यह ‘खाद्य-सुरक्षा’ नहीं बल्कि ‘वोट-सुरक्षा’ है।अब उसे कौन समझाए कि सरकार कोई भी काम बिना वोट के क्यों करेगी ? उसने कोई भंडारा थोड़ी ना खोल रखा है ! पेट तो सबके पास है,चाहे सरकार हो,नेता हो,पार्टी हो या आम आदमी।यह सरकार ज़्यादा समझदार है।वह पहले वोट खाएगी फ़िर और कुछ।विपक्ष चाह रहा है कि सरकार भूखी रहे ताकि उसका हिस्सा वो खा सके।सरकार अब इतनी अनुभवी तो हो चुकी है कि उसे यह काम स्वयं करना है।जनता को भी उसकी काबिलियत पर अब शक नहीं रहा।वह खाना ही नहीं कंकड-पत्थर,कोयला सब पचा सकती है।ऐसे हाजमे वाले की ही देश को ज़रूरत है।
हमारे देश में आज़ादी के बाद से सब खा रहे हैं।जहाँ नेता,माफिया,डीलर,अफ़सर,बाबू निर्विकार भाव से अपने पेट भर रहे हैं वहीँ गरीब आदमी लगातार लात खा रहा है।इस बात को सरकार ने गंभीरता से लिया है और इसीलिए यह योजना बनाई है।उसे यह घाटे का सौदा नहीं लगता।सरकार को पता है कि गरीब की थाली का खाना भी उसी का है।वह उसे अपनी जेब में डालने का जतन जानती है।विपक्ष को यही खटका है मगर वह चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहा है।सरकार के सहयोगी दल अभी से खाने की सुगंध पाकर पेट पर हाथ फेरने लगे हैं।गरीब आदमी भी दो-जून की रोटी के लिए अभी से सपने देखने लगा है।मगर इसके लिए उसे मतदान-केन्द्र तक आना होगा।आजकल सब कुछ वहीँ से तय होता है।
कुछ विशेषज्ञों को आशंका है कि इतने भूखों के लिए खाने का बजट कहाँ से आयेगा ? यह बिलकुल आधारहीन सवाल है।उन्होंने शायद वर्तमान हालात और मौसम का सही अध्ययन नहीं किया है।अबकी बारिश ख़ूब गिरी है और रुपया उससे भी तेजी से।अभी भी रुपया रोज़ गिर रहा है।सरकार रूपया बटोरकर उसका सदुपयोग करना चाहती है,इससे उसका और गरीबों,दोनों का भला होगा।आगे चुनावी-मौसम है,उसमें वोटों की बारिश की भरपूर सम्भावना है।सरकार मूर्ख नहीं है।वह सबको खिलाकर मुँह बंद करना चाहती है।भरे पेट मुँह खुलेगा ही नहीं।जब सत्ता-पक्ष और विपक्ष मिलकर अपने दाग और हिसाब साफ़ कर सकते हैं,तो मिलकर खा क्यों नहीं सकते ?हम तो यही आह्वान करते हैं कि आओ,अब हम सब मिलकर खाएं ! 

बुधवार, 21 अगस्त 2013

मंत्रजाप करें, टारगेट पूरा होगा !




                                                           21/08/2013 को जनसंदेश में !
 

वे बड़ी जल्दी में हैं.उन्होंने समय का इंतजार करने से बेहतर यह समझा कि लोग उनका ही इंतजार करने लगें.इसके लिए भले ही उनको लाल किला न मिला हो पर उन्होंने अपना भाषण लालन कॉलेज से देकर देश चलाने की अपनी प्रतिभा का परिचय दे दिया है.उन्होंने बोलने से पहले ही कह दिया था कि लोग दिल्ली और गुजरात की तुलना करेंगे.उन्होंने लोगों को समझा दिया है कि गुजरात का शेष भारत से सिर्फ तुलनात्मक महत्त्व है, गोया वह इस देश का हिस्सा न हो !

उनके भाषण पर खूब तालियाँ मिलीं .उनके ही बुजुर्ग नसीहत की छींक उनके लालकिला-अभियान को रोक पाने में असफल दिख रही है.इसीलिए जल्दी में ही एक सम्मिलित बैठक भी आयोजित कर ली गई ताकि टोकाटाकी करने वाले सावधान हो जांय .देश को बदहाली और मंहगाई से मुक्ति दिलाने के नाम पर जो लोग इकठ्ठा हुए थे वे जब बैठक से बाहर निकले तो सबके पास एक टारगेट था.उन्होंने अपने टारगेट को तो आज़ादी के दिन ही सबके सामने प्रकट कर दिया था पर बाकियों के लिए 272 का मन्त्र-जाप था.इसे हर सदस्य और कार्यकर्त्ता को चुनावों तक जपना है ताकि वे गिरते हुए देश को अपनी गोदी में उठा सकें .

कहते हैं कि किसी बात को यदि बार-बार कहा जाय तो वह सच हो जाती है,भले ही वह झूठ क्यों न हो.यही मान्यता मन्त्रों को लेकर चली आ रही है.भारतीय संस्कृति और धर्म के मानने वाले सबसे बड़े समर्थक उनके ही लोग हैं .ऐसे में नए मन्त्र ईजाद करना,पुरानों को झाड-पोंछकर जपने लायक बनाना इन सबकी कुशलता है.वे अपने दल के नए नायक हैं सो मन्त्र भी नए बनेंगे.मंदिर का मन्त्र अब निष्प्रभावी हो चुका है इसलिए राष्ट्रवाद का शंख सुनाई दे रहा है.आम चर्चा यही है कि वो आएंगे और जादू की छड़ी घुमाते ही पाकिस्तान और डॉन ,मंहगाई और भ्रष्टाचार सब उनके चरणों में लोटने लगेंगे.इस बात को उनके ही वरिष्ठ साथी नहीं मानते पर जनता यदि यह मंत्रजाप शुरू कर दे तो वे यह सब पलक झपकते ही कर डालेंगे.

अब इस देश और उसके रहने वालों को सोचना है कि उन्हें क्या चाहिए ?उन्होंने देश के सामने अपना एजेंडा तय कर दिया है.देश में विकास करने का वादा उन्होंने इसीलिए नहीं लिया है क्योंकि ऐसा तो कई लोग कर चुके हैं और उनका हो भी गया है.जनता यदि देश बचाना चाहती है तो उसे 272 की गिनती याद रखनी चाहिए.मंहगाई या भ्रष्टाचार दूर करना उनके टारगेट में नहीं है.वे तो बस चाहते हैं कि जनता उनके खीसे में 272 का नजराना डाल दे और वे देश-सेवा शुरू कर दें.उनकी इस सेवाभक्ति की आतुरता से जनता पूरी तरह ओत-प्रोत हो चुकी है और इस इंतजार में है कि कब चुनाव आयें और वह अपना काम कर सके.

अब वे करोड़ों की जनता का टारगेट बन चुके हैं और उनका टारगेट महज़ 272 है.यह बात अगर किसी को समझ नहीं आ रही है तो उनका मन्त्र-जाप करके देखे ,तुरंत काम करता है.


 

पालतू न होने के नुकसान

कल सुबह जब हम सैर पर निकले , रास्ते में बरगद के पेड़ के नीचे कई कुत्ते जमा थे।पहले तो मैं डरा फिर आशंका हुई कि हो न...