डीएलए में ०५/१०/२०१२ को ! |
जनसंदेश टाइम्स में १९/०९/२०१२ को ! |
भई,मैं देख रहा हूँ कि पिछले काफ़ी समय से मेरे बोलने को लेकर तरह-तरह के सवाल
उठाये जा रहे हैं,इस पर मुझे घनी आपत्ति दर्ज़ करानी है। मैं आज केवल यह बताने आया हूँ कि मेरा चयन बोलने के
लिए नहीं करने के लिए हुआ है और
वह मैं बखूबी कर रहा हूँ।कुछ नकारात्मक प्रवृत्तियाँ इस देश में हमेशा से रही हैं
और आज भी हैं।इस वर्ग के पास कोई सकारात्मक दृष्टि नहीं है और ऐसे लोग हर काम में
मीन-मेख निकालने में माहिर हैं क्योंकि उन्हें खुद मक्खन निकालना तो आता ही नहीं ।
मैंने जब पदभार संभाला था,तो जहाँ तक मुझे याद है कि उसमें प्रत्यक्ष या
अप्रत्यक्ष रूप से किसी को कुछ सूचित या संसूचित नहीं करने की हलफ़ उठाई थी।मुझे बस
इतना ही याद है और मैं वह पूरे समर्पण के साथ कर रहा हूँ।लोगों का मुझ पर बराबर यह
आरोप कि मैं मौन हूँ,सरासर बेजा और राजनीति से प्रेरित है।मैं मौन हूँ मगर
क्रियाशील हूँ।काम करने के पहले और बाद में जवाब देने लिए मेरे पास पूरी टीम
है,वही सब कुछ देखती है।मैं तो बस करने में मशगूल हूँ।इस बारे में अगर कोई चाहे तो
तथ्य और इतिहास इसकी गवाही देंगे।सच पूछिए,मैं जितना क्रियाशील इस समय हूँ,कभी
नहीं रहा।पिछले दिनों ताबड़तोड़ फैसले लेकर मैंने विरोधियों के मुँह भी बंद कर दिए
हैं।मेरे बोलने के पीछे पड़े हैं,जबकि उन्हें बोलते हुए आंकड़े नहीं दिखते।
मैं पिछले आठ साल से लगातार बिना कुछ कहे,सब कुछ सहते हुए केवल अपने कर्म में
रत हूँ।इस दौरान भले ही मेरा मुँह बंद रहा हो,पर हमारे सेनापतियों ने हर मोर्चे पर
अपना काम जारी रखा है।देश
के ज़्यादा से ज़्यादा लोग बोल सकें,इसके लिए संचार के सेक्टर में टूजी का इतना बड़ा
काम किया।हमारे एक सेनापति ने हजारों करोड़ रुपयों का टर्न-ओवर करके कुछ भूखे लोगों
का पेट भरा।इस मामले में हमने आज़ादी से पहले की परम्परा बहाल रखी और देशहित की
खातिर वह सेनानी जेल भी गया।मैं यह पूछता हूँ कि जिन लोगों को फायदा पहुँचा क्या
वे हमारे देश के नागरिक नहीं हैं ?
जेल जाने की बार-बार आशंकाओं के बावजूद हमारी पूरी टीम इस काम में लगी हुई है।अब
तो हमने देश में एफडीआई को मंज़ूरी देकर कमाई के और संसाधन जुटाने की जुगत कर ली है।
मैं अपने किसी भी सेनापति से कुछ नहीं बोलता क्योंकि ऐसी मैंने शपथ ले रखी है।वे
भी पूरे ज़ोर-शोर से और पहले के रिकॉर्ड तोड़ते हुए अपने काम में लगे हुए हैं।देश
सेवा से कोई सेक्टर वंचित हो जाय,ऐसा मैं नहीं चाहता,इसीलिए हमारी निगाह हर जगह पर
है।खेल,अनाज और खाद जैसे पारंपरिक सेक्टर तो हमने छोड़े नहीं,वरन कोयले जैसे
सम्भावना-पूर्ण सेक्टर को भी हमने अपना टारगेट बनाया। आज सेंसेक्स आसमान छूने को
बेताब है और जनता है कि ज़मीन पर ही पड़ी है ।डीज़ल,गैस और एफडीआई को लेकर कुछ लोग
संवेदनशील हो रहे हैं पर धीरे-धीरे उनकी संवेदना हमारी तरह ही हो जायेगी,जहाँ न
कुछ दिखता है,न सुनता है।ऐसे में फ़िर उन्हें भी बोलने की ज़रूरत पड़ेगी भला...?जब
बिना बोले ही देश नित नए प्रतिमान बना रहा हो,तब लोग हमारे बोलने को लेकर क्यों
मुद्दा बना रहे हैं?अब सारी दुनिया देखेगी कि यह ‘अंडर अचीवर’ कितना बड़ा ‘रिसीवर’
है !
1 टिप्पणी:
अब सारी दुनिया देखेगी कि यह ‘अंडर अचीवर’ कितना बड़ा ‘रिसीवर’ है ! ..देखते हैं जी। फिलवक्त आपको छपने की बधाई।:)
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